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कुलदेवियों का स्थानाश्रित नामकरण

Kuldeviyo ka Sthaan ke Anusar Naamkaran : पिछली पोस्ट में आपने कुलदेवी की अवधारणा का दार्शनिक आधार विषय पर लेख पढ़ा। इस लेख में आप जानेंगे – कुलदेवियों का स्थानाश्रित नामकरण।

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भगवती जगदम्बा अपनी संतान की रक्षा के लिए अपने विभिन्न कलावतारों के रूप में गाँव-गाँव, नगर-नगर में विराजमान है। उन गाँवों के विभिन्न कुल अपने गाँव की देवी को कुलदेवी मानते हैं।

कला या याः समुद्भूताः पूजितास्ताश्च भारते। 
पूजिता ग्रामदेव्यश्च ग्रामे च नगरे मुने।। 

भगवती के इन कलावतारों का नामकरण उन गाँवों या नगरों के नाम से ही होता है। देवीभागवत में भगवती ने कुलदेवियों की स्थानानुसारी पहचान का उल्लेख किया है। जैसे –

कोलापुरं महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता।
मातुःपुरं द्वितीयं च रेणुकाधिष्ठितं परम् ।।

कालक्रम से नए-नए गाँव और नगर बसते गए। गाँवों और नगरों के नाम भी बदलते रहे पर स्थानानुसारी नामकरण की परंपरा जारी है। आज भी कुलदेवियों की पहचान गाँवों व नगरों के नाम से ही होती है। जैसे अग्रोहा की लक्ष्मीमाता, गोठ-मांगलोद की दधिमथी माता इत्यादि। कुछ नाम तो केवल स्थानाश्रित ही हैं। जैसे ओसियां माताफलौदी माता, गुडगाँव माता, करौली माता इत्यादि।

कुछ देवीमन्दिर तो ऋषियों के आश्रमों में स्थित थे। देवीभागवतपुराण के अनुसार सब ऋषियों के स्थानों में देवीमन्दिर होते थे-

एवं पुण्यानि स्थानानि ह्यसंख्यातानि भूतले।
एषु स्थानेषु सर्वत्र देवीस्थानानि भूपते।।

मन्दिर में प्रतिष्ठापित देवीप्रतिमा के साथ-साथ जिस गाँव या नगर में वह स्थित थी उसके माहात्म्य का वर्णन मिलता है। देवीभागवत के अनुसार वे स्थान भी देवी को अत्यंत प्रिय हैं अतः किसी स्थान पर जाकर देवीपूजन करने से पहले उस स्थान का माहात्म्य भी सुनना चाहिए। स्थान के दर्शन देवी के जप तथा उसके चरणकमलों का ध्यान इन तीनों क्रियाओं का मेल होने से व्यक्ति दुःख के बंधन से मुक्त हो जाता है।

प्रोक्तानीमानि स्थानानि देव्याः प्रियतमानि च।
ततत्क्षेत्रस्य माहात्म्यं श्रुत्वा पूर्वं नगोत्तम।।
तदुक्तेन विधानेन पश्चाद्देवीं प्रपुजयेत्।
ध्यायंस्तच्चरणाम्भोजं मुक्तो भवति बन्धनात्।।

स्थान की महिमा के कारण ही इन स्थानों की कुलदेवियाँ गाँवों के नाम से ही प्रसिद्ध हो गई। यही कारण है कि फलौदी की ब्रह्माणी माता फलौदीमाता के नाम से, भंवाल की काली माता भँवालमाता के नाम से सुन्धापर्वत की चामुण्डा माता सुन्धामाता के नाम से ही जानी जाती है।

कुलों का स्थानान्तरण और कुलदेवी

किसी कुल का कोई व्यक्ति अन्यत्र बस जाता तब भी अपने कुल द्वारा स्वीकृत कुलदेवी की ही मान्यता रखता था। फलस्वरूप कुलदेवियों की मान्यता का क्षेत्र व्यापक होने लगा। मान्यता रखने वाले व्यक्ति मनौती, जात जडूले आदि के लिए अपने गाँव की कुलदेवी के मंदिर पर ही जाते थे।

15 thoughts on “कुलदेवियों का स्थानाश्रित नामकरण”

  1. मुरटासीण माताजी की मूर्ति फोटो मन्दिर गांव जगह विस्तार से बतावे आप
    रामकुमार जी सा सादर प्रणाम

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  2. Deedwana mei suraliya mata ji ke mandir ke gaaNV sthan ka pata bataven ji aapki bahot kripa hogi ji

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  3. BANG JATI KE GOTRA KE KULDEVI KA NAM KHANDAL HE PER STHAN NAHI THA PER 2002 ME MUNDWA KE KUCH BANG MEL KE KHANDAL MATA MUNDWA ME STHPANA KE HE YE SAHI NAHI HE

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  4. I want to knnow who is our kuldevi we belongs to thakrar family our old village is khambhodar, porbandar,gujarat

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