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‘कुलदेवी नमो नमः’ भार्गव समाज – श्रवण कुमार उपाध्याय

Kuldevi Namo Namah : मानव ने आदिकाल से पूजा का कोई-न -कोई विषय अपना रखा है। दुनिया के सभी देशों में देवियों की पूजा होती है। भारतवर्ष में निवास करने वाले प्रत्येक व्यक्ति की अपनी एक कुलदेवी है। कुलदेवी उस व्यक्ति की रक्षा करती है। हमारे यहाँ पर कुलदेवी पूजा की जड़ें बहुत ही गहरी है। प्रत्येक जाति की अपनी कुलदेवी हैं। कुलदेवी उसे कहते है जिसे अपने कुल के पूर्वज पूजते आये है। भारत में कुलों की महत्ता प्राचीन काल से रही है। इस कुल से ही ‘कुलीन’ शब्द बना है। धर्मशास्त्र के अनुसार ‘कुलीन’ व्यक्ति वह होता है जिसके परिवार में लगातार कई पीढ़ियों से वेद-वेदांग का अध्ययन होता आया हो। वर्तमान में कुलीन व्यक्ति वह कहलाता है जिसके कुल में विशिष्ट आचारों का पालन किया जाता है।

                भारत में शक्ति पूजन की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। जब किसी कुल द्वारा इष्ट देवी के रूप में निरन्तर पूजा करने लगता है तो वह देवी उस परिवार की कुलदेवी हो जाती है। उस कुल में उस देवी के पूजन की परम्परा पड़ जाती है। कुलदेवी केवल उस कुल की हितकारक ही नहीं वह उस कुल की संरक्षक भी होती है। इस प्रकार कुलदेवी का दायित्व अन्य देवताओं से अधिक होता है। कुलदेवी उस कुल की रक्षा और अभिवृद्धि करती है, इस कारण उस कुल की आस्था उसके प्रति अधिक होती है।

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हर कुलदेवी का कोई न कोई, कहीं न कहीं मुख्य अथवा मूल स्थान होता है। उस स्थान पर जाकर उसके दर्शन करने से वह प्रसन्न होती है। व्यक्ति को अपनी कुलदेवी के स्थान पर जाकर जात-जडूला करना चाहिए। कुलदेवी की मान्यता व्यक्ति की आस्था पर निर्भर होती है। यदि व्यक्ति को अपनी कुलदेवी के स्थान की जानकारी नहीं है या वहां पर जाना सम्भव नहीं है तो उस स्वरूप को दूसरे स्थान पर भी पूजा जा सकता है। कुलदेवी पूजन के साथ हमें लोकमाताओं या लोकदेवियों का पूजन करना होता है। लोकमाताएं हमारी आधि-व्याधि, रोग-निवारण, कष्ट-निवारक, प्रेत-बाधा एवं अन्य मारक मन्त्रों से रक्षा करती है। लोकदेवियों के अतिरिक्त हम मानव अंशावतार शक्तियों की भी पूजा करते हैं। मानव अंशावतार शक्ति हैं – सती माता, बायासा, भौमिया जी, यह पहले मानव रूप में थे और बाद में अपने शुभ कर्मों से शक्तियाँ प्राप्त कर जन-कल्याण करते हैं। यह शक्तियाँ जल्दी रूष्ट एवं तुष्ट होती हैं, क्योंकि इनमें कोई-न-कोई मानव स्वभाव के अंश रहते हैं। शक्ति आदि स्वरूपा है। इनका निवास पेड़ों में भी बताया गया है। पेड़ों में निवास करने वाली यक्षिणी होती है। समाज के अनेक गौत्रों की कुलदेवियाँ यक्षिणियाँ भी हैं। पीपल में निवास करने वाली पीपलासन देवी जिसका नाम वन्दनीया, वह वृक्ष में निवास करने वाली वृक्ष यक्षिणी, कल्पवृक्ष में निवास करने वाली धनदा यक्षिणी, नीम में निवास करने वाली, आम के वृक्ष में निवास करने वाली देवियाँ यक्षियाँ कहलाती हैं। भार्गव जाति की कुलदेवी सूची में अंकित जाखन माता यक्षिणी ही है।

भार्गव जाति समस्त भारतवर्ष में फैली हुई है। इस जाति के छः गोत्र हैं –

  1. कश्यप (शुद्ध नाम काश्यपि)
  2. कुचलस (शुद्ध नाम कोचहस्ति)
  3. बंदलस (शुद्ध नाम विद्)
  4. गागलस (शुद्ध नाम गांगेय)
  5. गालाव (गालव)
  6. बछलस (शुद्ध नाम वत्स)

भार्गव जाति के सभी गौत्रों की कुलदेवियाँ 74 हैं। इन सभी कुलदेवियों के स्वरूप व स्थान की जानकारी उपलब्ध नहीं है। श्री प्रभात मुकुल भार्गव जी से मुझे जो कुलदेवियों की सूची प्राप्त हुई है, उस सूची के अनुसार मुझे जिन कुलदेवियों की जानकारी है उन देवियों की संक्षिप्त जानकारी आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।

  1. नागन माता – नागन माता को मनसा माता भी कहा जाता है। यक्षों की एक जाति नाग भी है। मनसा देवी दक्ष की पुत्री कद्रू से उत्पन्न कश्यप ऋषि की सन्तान है। जिसके कमर के ऊपर का भाग मनुष्य का तथा नीचे का हिस्सा सर्प का है। मनसा माता सर्पों से आच्छादित तथा कमल पर विराजमान है। मनसा माता के बारे में जानकारी महाभारत, विष्णु पुराण, तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलती है। मनसा देवी का मन्दिर हरिद्वार, चंडीगढ़, राजस्थान में मनसा माता का शक्तिपीठ शेखावाटी अंचल में खेतड़ी और हर्ष के बीच अरावली पर्वतमाला के बीच स्थित हैं। मनसा माता का एक मन्दिर चूरू जिले में स्थित है। मनसा माता का एक मन्दिर झुन्झुनू में भी बताया जाता है।
  2. अम्बा माता – अम्बा माता भय एवं संशय का नाश करती है। यह अपने भक्तों की सभी मनोकामना पूर्ण करती है। ‘अम्बा’ शब्द माँ का पर्यायवाची है। इसे प्रकृति,सर्वेशरी, त्रिदेवजननी, नित्या और मूल कारण कहा गया है। अम्बा माता भगवान श्री कृष्ण की कुलदेवी है। अम्बा माता के प्राकट्य की अनेक कथाएँ धर्म-ग्रन्थों में मिलती हैं। अम्बा माता के प्रसिद्ध मन्दिर उदयपुर से दक्षिण-पूर्व में जगत गाँव, जयपुर से उत्तर की ओर लगभग 64 कि.मी. बैराठ में, आम्बेर में, अम्बाजी आर्नत (गुजरात) में, गुजरात के आरासुरी स्थान पर, बडौदा, कुण्डलपुर, अमरावती, कोल्हापुर, मद्रास, सूरत, पंजाब के अलावा भी अनेक मन्दिर हैं जहाँ पर भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
  3.  ब्रह्माणी माता – नागौर जिले के मेड़ता रोड़ रेलवे स्टेशन से 1-2 किलोमीटर दूरी पर ब्रह्माणी माता का मन्दिर है। प्राचीनकाल में इस कस्बे को फलौदी कहा जाता था। ब्रह्माणी माता का यह मन्दिर वि.सं. 1013 में बना। मारवाड़ का राजा नाहड ने जिस समय पुष्कर राज में ब्रह्मा मन्दिर की स्थापना की उस समय उसने सम्पूर्ण मारवाड़ में 900 तालाब, बेरा, बावड़ियों का निर्माण करवाया। उस समय फलौदी कस्बे, मेड़ता रोड़ में एक तालाब और ब्रह्माणी माता का मन्दिर बनवाया। पहले इस ब्रह्माणी माता को फलवर्धिका माता कहा जाता था। यहाँ पर प्रतिवर्ष बसन्त पंचमी को मेला भरता है। एक मन्दिर खेरांबाद में भी है। ब्रह्माणी माता के सारनन आदि स्थानों पर मन्दिर हैं।
  4. चामुण्डा माता – चामुण्डा माता का विशद वर्णन हमें मार्कण्डेय पुराण, मत्स्य पुराण, देवी भागवत पुराण एवं दुर्गासप्तशती में मिलता है। चण्ड-मुण्ड नामक दैत्यों का वध करने के कारण इसका नाम चामुण्डा पड़ा। चामुण्डा माता भयानक मुख वाली, तलवार व पाश लेकर प्रकट हुई इसका रंग काला है एवं वाहन प्रेत हैं। इसके दश भुजायें हैं। चामुण्डा के मन्दिर भारतवर्ष में सबसे अधिक हैं। मारवाड़ में चामुण्डा के सैकड़ों मन्दिर हैं चामुण्डा का मुख्य शक्तिपीठ हिमाचल प्रदेश में है। इसके अतिरिक्त चामुण्डा माता के मन्दिर खण्डेला, लकसर (उ.प्र.) मथुरा, महोबा (म.प्र.) मुंगेर, करेडी, सात मात्रा, देवास, भद्रावती, सिरसी, खेड़ाब्रहत (गुजरात) चणोद (गुजरात) मालवा के दशपुर के मनासा तहसील में महिषासुर मर्दिनी मन्दिर हैं। मथुरा के गिरिधर में महिषमर्दिनी मर्दिनी है। चामुण्डा (पठानकोट), मैसूर (कर्नाटक), बाणगंगा तट पर, जोधपुर (मेहरानगढ़) इन स्थानों पर माता पूजित होकर भक्तों के कष्ट दूर करती हैं।
  5. भैंसा चढ़ी (वाराही) – भैंसा पर सवारी करने वाली देवी वाराही माता है। विशाल उदरवाली माता वाराही भैंसे पर सवार होती है। इसका रंग काला है। इनका मुख सूकर के समान है। ये अपने दाहिने हाथों में वरमुद्रा, दण्ड, और खड्ग धारण करती हैं। तथा इनकी बायीं भुजायें ढाल, पात्र और अभय मुद्रा से सुशोभित है। वाराही माता के मन्दिर उज्जैन, जयपुर, और सिरोही जिले में है।
  6. जाखण माता – जाखण माता यक्षिणी माता है। यह धन प्रदान करने वाली माता है। यक्ष की शक्ति को यक्षिणी कहा जाता है। इनका निवास जल और वृक्षों में है। यह अर्ध देवयोनि है। भगवती आदि शक्ति कुलदेवी के रूप में यक्षिणी के रूप में पूजी जाती है। जाखन माता का मन्दिर भीलवाड़ा से 14 किमी दूर माण्डल कस्बे के बाहर पहाड़ी के शिखर पर हैं इस स्थान को मिनारा कहा जाता है। एक मन्दिर नागौर जिले के रैन में है। इनके अतिरिक्त यक्षिणी माता का मन्दिर वाराणसी में है।
  7. भैंसा – इस कुलदेवी का स्वरूप महिषासुर मर्दिनी का है। भगवती ने महिषासुर दैत्य का संहार किया इस कारण देवी का नाम महिषासुर मर्दिनी हुआ। श्री दुर्गासप्तशती के दूसरे व तीसरे अध्याय में इसका चरित्र वर्णित है। मैसूर (कर्नाटक) से लगभग 4 मील दूरी पर चामुण्डा पर्वत पर भगवती चामुण्डा का पीठ है। वहां पर महिषासुर मर्दिनी का मन्दिर है। योगिनियों की संख्या 64 बताई गई है। केदारनाथ मार्ग पर गुप्त काशी से करीब 10 किमी. उत्तर मैखंडा थानी नामक स्थान पर भगवती महिषासुरमर्दिनी माँ का प्राचीन मन्दिर है। यहीं माँ ने महिषासुर को मारा था। मंदसौर जिले के रामगढ नगर में महिषासुर मर्दिनी का मन्दिर है। गुजरात के ब्रहत खेड़ में महिषासुर मर्दिनी मन्दिर है। मालवा के दशपुर के मनासा तहसील में महिषासुर मर्दिनी मन्दिर है। मथुरा के गिरधरपुर में महिष मर्दिनी मन्दिर है।
  8. कुंडा देवी – यह कुण्डेश्वरी देवी है। कुण्डेश्वरी अनेक जाति के गौत्र की कुलदेवी है। इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं होती है। कुण्डेश्वरी देवी के अधिकांश स्थान लुप्त हैं। वाराणसी में एक मन्दिर की जानकारी होती है। मेरे विचार से कुण्डा देवी कुण्डलिनी देवी है जिसका मन्दिर राजस्थान में कोटा में है।
  9. मुडेरी देवी – दुर्गासप्तशती के उत्तर चरित्र के अनुसार ‘चण्ड-मुण्ड’ नामक असुरों का वध करने से वही शक्ति चामुण्डा नाम से विख्यात हुई। चामुण्डा का संक्षिप्त रूप मुण्डेश्वरी नाम से विख्यात है। बिहार प्रदेश के रोहतास जिले में चैनपुर भभुआ से कुछ दूर दक्षिण की तरफ पर्वत शिखर पर मुण्डेश्वरी भवानी का प्राचीन मन्दिर है।
  10. चंडिका – मुदगल ऋषि की तपोमयी पावन पुण्य भूमि मुदगल गिरी ‘मुंगेर’ नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ गंगा के तट पर नगर के पूर्व में शक्तिपीठ चण्डिका माता का विख्यात मन्दिर है। पौराणिक आधार पर सती के नेत्र इसी चण्डिका स्थान पर गिरे। आज भी यहाँ पर नेत्र की पूजा होती है। इस शक्ति का सम्बन्ध दानवीर कर्ण और विक्रमादित्य से भी बताते हैं। उत्तराखण्ड के गोपेश्वर में नगर के एक ओर माता चण्डिका का स्थान है।
  11. शाकम्भरी – उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर शिवलिक पर्वतमालाओं में यह पवित्र तीर्थ स्थित है। शाकम्भरी की गणना प्रसिद्ध शक्तिपीठ में की जाती है। यहाँ पर सती का शीश गिरा था। नावा शहर उपखण्ड मुख्यालय  शाकम्भरी माता का मन्दिर है। उदयपुरवाटी से पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर माँ शाकम्बरी (सकराय) प्राचीन मन्दिर है।

‘कुलदेवी ज्ञान चर्चा संगम’ से साभार, लेखक- मथुरा प्रसाद भार्गव

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5 thoughts on “‘कुलदेवी नमो नमः’ भार्गव समाज – श्रवण कुमार उपाध्याय”

  1. Dear sir ji aapse ek request hai Bhriguvanshi shandilya gotra ki kulddvi ka name kya hai kyon hai bhriguvanshi shandilya gotra ki kul Devi maata please batana mujhe jai maharishi bhrigu jai bhriguvanshi parashurama jai shukrachaeya jai chyavan

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  2. sabhi bhargav h to ham kon h
    bhargav jati h gotra
    vats or bhargav gotra ke to riste hote h
    fir aap vats ko bhargav kyon bta rahe ho
    gumrah rah ho

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