त्रागड सोनी ब्राह्मण समाज का इतिहास व कुलदेवी व्याघ्रेश्वरी माता Tragad Soni History

Tragad Brahmin | Tragad Soni History in Hindi |

भगवती लक्ष्मी ने श्रीमालनगर का निर्माण कराकर वहाँ श्रीमाली ब्राह्मण बसाये। उन ब्राह्मणों की पत्नियों के लिए स्वर्णाभूषण बनाने के लिए त्रागड सोनी उत्पन्न किए। उनके लिए स्वर्णाभूषण की कला ही आजीविका का साधन बनी इसलिए वे कलाद भी कहलाए –

देव्युवाच –

              एकं तु जीवनोपायं शृणुहवं तद्वदामि वः |

              कलया वर्तितव्यं हि भवद्भिः स्वर्णपद्मजैः ||

              श्रीमाले च ततो यूयं कलादा वै भविष्यथ |

              भूषणानि द्विजेन्द्राणां पत्नीभ्योरत्नवंतियत् ||

              स्वाध्यायाग्नि कलादाः त्र्यागडा स्मृताः |

              स्वर्णरत्नादि घटका रमावाक्प्रतिपालकाः ||(ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड)

             लक्ष्मीजी ने कहा, तुम सबके लिए जीविका साधन बताती हूँ। उसे सुनो। तुम्हें स्वर्ण से संबंधित कला का रोजगार करना है इसलिए तुम्हें कलाद कहा जाएगा। तुम ब्राह्मण-पत्नियों के लिए रत्नजड़ित स्वर्णाभूषण बनाना। वेदाध्ययन अग्निहोत्र के साथ स्वर्णकला का भी काम करने से तुम त्र्यागड कहलाओगे।

जब देवी लक्ष्मी ने पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी; वरुण देवता ने उस समय देवी लक्ष्मी को 1008 स्वर्ण के कमलों की माला पहनाई। माला के पत्रों में स्त्री-पुरुषों के प्रतिबिंब दिखने लगे। और वह प्रतिबिंब के स्त्री-पुरुष भगवती की इच्छा से कमलों से बाहर प्रकट हो गए।उन्होंने लक्ष्मी से पूछा कि हमारा नाम और कर्म क्या है ? भगवती बोली, हे प्रतिबिम्बोत्पन्न ब्राह्मणों ! तुम नित्य सामगान किया करो, और श्रीमाल क्षेत्र में कलाद नाम वाले (जिनको त्रागड सोनी कहते हैं) होंगे; और ब्राम्हणों की स्त्रियों के आभूषण बनाना तुम्हारा काम होगा।

इस प्रकार यह प्रतिबिंब से उत्पन्न ने 8064 कलाद त्रागड ब्राह्मण हुए। उनमें से वैश्यधर्मी, बसोनी हुए, यह पठानी सूरती अहमदाबादी खम्बाती ऐसे अनेक भेद वाले हुए। यह जिन ब्राह्मणों के पास रहे उन्हीं के नाम से कलाद त्रागड ब्राह्मणों का गोत्र चला इस प्रकार यह त्रागड ब्राह्मण भी अध्ययन करते और भूषण बनाते। फिर ब्राह्मणों के धन आदि की रक्षा के लिए विष्णु ने अपनी जंघा से गूलर, दण्डधारी दो वैश्य उत्पन्न किए और उनको ब्राह्मणों की सेवा में लगाया। गोपालन व्यापार उनका कार्य हुआ और 90 हजार वैश्यों ने वहां निवास किया और उनके स्वामी ब्राह्मणों के गोत्र से उन वैश्यों के गोत्र हुए।

गोत्र व कुलदेवी व्याघ्रेश्वरी / वाघेश्वरी माता (Vyaghreshwari Mata/ Vagheshwari Mata)

त्रागड ब्राह्मणों / सोनियों के श्रीमाली ब्राह्मणों अनुरूप 18 गोत्र है ।वर्तमान में चौदह गोत्र हैं, किन्तु मूल रूप में अठारह गोत्रों का वर्णन है। ये गोत्र हैं – कौशिक, शाण्डिल्य,  मौदगल, लौडवान, हरितस, औपमन्यव, गौतम, कपिंजल, भारद्वाज, वत्सस, चान्द्रास, काश्यप, पाराशर तथा सनकस।  कुलदेवी व्याघ्रेश्वरी है –

              तेषां व्यघ्रेश्वरी देवी योगक्षेमस्य कारिणी |

              तेषां गोत्रविधानं च स्वस्वेज्याध्यायसंगतम् ||

Vyaghreshwari Devi
Vyaghreshwari Devi

मूलतः व्याघ्रेश्वरी / वाघेश्वरी माता कालिका माता के मंदिर के स्थान पर एक आवासीय क्षेत्र था। इस क्षेत्र में एक घर में एक बूढ़ी औरत रहती थी। वह बहुत धार्मिक थीं। वह बहुत श्रद्धा से अपने घर में व्याघ्रेश्वरी माता की पूजा अर्चना करती थी। उस समय, मुस्लिम राजा महमूद गजनी ने इस क्षेत्र पर शासन किया। उसके शासन में हिंदू मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जा रहा था। इस डर के कारण बूढ़ी औरत ने अपने घर के पास एक कुए में व्याघ्रेश्वरी माता की मूर्ति को छिपा दिया। यह जानकर क्षेत्र के कंसारा जाति के लोग भी आए और कुए में अपनी इष्ट देवी कालिका माता की मूर्ति को छिपा दिया।

कई सालों के बाद, त्रागड सोनी लोगों ने व्याघ्रेश्वरी और कालिका माता की प्रतिमाओं को उस कुए से निकाल लिया और संवत् 1936 में एक मन्दिर बनाकर उनकी स्थापना की। मूर्तियों को कुए से निकालकर मंदिर में स्थापना नवरात्रि सप्तमी को की गई थी अतः यह दिन व्याघ्रेश्वरी माता कालिका माता के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह स्थान सोनी नई वाड़ी के नाम से जाना जाता है।

बाद में कई वर्षों के बाद कंसारा जाति (Kansara Caste) ने कालिका माता की उनकी मूर्ति वापस करने के लिए अनुरोध किया।लेकिन उन्हें अपनी मूर्ति वापस करने से इनकार कर दिया क्योंकि सोनी लोगों ने वाघेश्वरी माता और कालिकामाता दोनों को कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया था। कंसारा समुदाय इसे स्वीकार करते हैं। अब कंसारा जाति भी इसी मंदिर में अपनी कालिका माता की पूजा करने आते हैं।

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