‘कुलदेवीकथामाहात्म्य’
सुन्धापर्वत की सुन्धामाता
इतिहास
राजस्थान के जालौर जिले की भीनमाल तहसील में जसवन्तपुरा से 12 कि.मी. दूर, दांतलावास गाँव के पास सुन्धानामक पहाड़ है। इसे संस्कृतसाहित्य में सौगन्धिक पर्वत, सुगन्धाद्रि, सुगन्धगिरि आदि नामों से कहा गया है। सुन्धापर्वत के शिखर पर स्थित चामुण्डामाता को पर्वतशिखर के नाम से सुन्धामाता ही कहा जाता है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार जालौर के प्रतापी शासक उदयसिंह के पुत्र जालौरनरेश चाचिगदेव ने इस चामुण्डामन्दिर में मण्डप का निर्माण कराया। नैणसी की ख्यात में इस तथ्य का इस प्रकार उल्लेख है –
रावल चाचगदे करमसी रो।
चाचगदे सुंधा रै भाखरे देहुरो।
चावंडाजी रो करायो। संमत 1312
सुन्धामाता के मन्दिर में लगे शिलालेख में इस तथ्य का उल्लेख इस प्रकार किया गया है –
मरौ मेरोस्तुल्यस्त्रिदशललनाकेलि सदृशं
सुगन्धाद्रिर्ना नातरुनिकटसन्नाहसुभगः।
तन्मूर्घ्नि त्रिदशेन्द्रपूजितपदाम्भोजद्वयां देवतां।
चामुण्डामघटेश्वरीति विदितामभ्यर्चितां पूर्वजैः,
नत्वाऽभ्यर्च्य नरेश्वरोऽथ विदधेऽस्या मन्दिरे मण्डपम् ।।
अर्थात् मरुभूमि में सुमेरुपर्वत के समान, देवाङ्गनाओं की क्रीडास्थली सा सुगन्धगिरि ( सुन्धापर्वत ) है जो अनेक प्रकार के वृक्षों के समूह से रमणीय है। उस ( सुन्धापर्वत ) के शिखर पर राजा ( चाचिगदेव ) ने देवराज द्वारा पूजित चरणकमलों वाली, अघटेश्वरी नाम से विख्यात, एवं अपने पूर्वजों द्वारा पूजित चामुण्डा की अर्चना करके इसके मन्दिर में मण्डप बनवाया।
सुन्धाशिलालेख के अनुसार राजा चाचिगदेव गुजरात के राजा वीरम को मारने वाला, शत्रु शल्य को नीचा दिखाने वाला तथा संग और पातुक को हराने वाला था। इनमें वीरम गुजरात का कोई प्रतापी राजा था। धभोई के शिलालेख में शल्य नामक राजा का उल्लेख है। वंथली के शासक संग का भी उल्लेख है। …
सुन्धामाता पर अन्य लेख भी देखें – माता सती का शीश – सुन्धामाता
… अजमेर के संग्रहालय में रखे एक लेख से ज्ञात होता है कि चाचिगदेव की रानी का नाम लक्ष्मीदेवी तथा कन्या का नाम रूपादेवी था। रूपादेवी का विवाह राजा तेजसिंह के साथ हुआ।
सुन्धामाता का मन्दिर सुन्धापर्वत की एक प्राचीन गुफा में स्थित है। लोकमान्यता में सुन्धामाता को अघटेश्वरी कहा जाता है। इस विषय में डॉ. राघवेन्द्र सिंह मनोहर लिखते हैं – अघटेश्वरी से तात्पर्य वह धड़रहित देवी है, जिसका केवल सिर पूजा जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार दक्ष के यज्ञ के विध्वंस के बाद शिव ने सती के शव को कन्धे पर उठाकर ताण्डवनृत्य किया। तब भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उनके शरीर के अंग भिन्न-भिन्न स्थानों पर जहाँ गिरे वहाँ शक्तिपीठ स्थापित हो गये। सम्भवतः इस सुन्धापर्वत पर सती का सिर गिरा जिससे वे अघटेश्वरी कहलायीं।
सुन्धामाता के अवतरण के विषय में प्रचलित एक जनश्रुति उल्लेख करते हुए इतिहासकारों ने लिखा है कि ‘बकासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए चामुण्डा अपनी सात शक्तियों सहित यहाँ अवतरित हुई, जिनकी मूर्तियाँ चामुण्डा (सुन्धामाता) प्रतिमा के पार्श्व में प्रतिष्ठापित हैं।’
सुन्धामाता के मन्दिर-परिसर के प्रथम भाग में भूर्भुवः स्वरीश्वर महादेव का मन्दिर है। मन्दिर में शिवलिंग स्थापित है। द्वितीय भाग में सर्वप्रथम सुन्धामाता के मन्दिर में प्रवेश करने हेतु विशाल एवं कलात्मक प्रवेशद्वार बना है। सीढियाँ चढ़ने पर आगे विशालकाय स्तम्भों पर स्थित सभामण्डप है। मन्दिर में मुख्य गुफा में चामुण्डामाता (सुन्धामाता) की भव्य प्रतिमा विराजमान है। उनके पार्श्व में ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ब्रह्माणी और शाम्भवी ये सात शक्तियाँ प्रतिष्ठापित हैं। अन्य अनेक प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठापित हैं।
भूर्भुवः स्वरीश्वर महादेव
भूर्भुवः सवरीश्वर महादेव की महिमा का उल्लेख करते हुए डॉ. शालिनी सक्सेना लिखती हैं – श्रीमालमाहात्म्य एवं उपलब्ध शिलालेखों के अनुसार यहाँ प्राचीन समय से ही आदिदेव शिव की उपस्थिति मानी जाती है। यहाँ वर्तमान में जो ‘भूरेश्वर महादेव’ के नाम से विख्यात मन्दिर है, वह श्रीमालमाहात्म्य के भूर्भुवः सवरीश्वर महादेव ही हैं। भू, र्भुवः स्व तीनों लोकों की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव लिंगरूप में प्रकट हुए। वह लिंग भूर्भुवः सवरीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ। वही शिवलिंग सुन्धामाता मन्दिर परिसर में प्रतिष्ठापित है।
जालौर राजवंश की कुलदेवी सुन्धामाता
सुन्धामाता जालौर के राजवंश की कुलदेवी है। यहाँ स्थापित शिलालेख में उन्हें चाचिगदेव के पूर्वजों द्वारा अभ्यर्चित कहा गया है। अनेक समाजों के विभिन्न गोत्रों में वे कुलदेवी के रूप में पूजित हैं। डॉ. राघवेन्द्रसिंह मनोहर के शब्दों में सुन्धामाता का लोक में बहुत माहात्म्य है। वैसे तो प्रतिदिन श्रद्धालु यहाँ आते हैं, पर वर्ष में तीन बार वैशाख, भाद्रपद एवं कार्तिक मास के शुक्लपक्ष में यहाँ मेला भरता है, जिसमे प्रदेशों के विभिन्न भागों से श्रद्धालु देवी-दर्शन कर उनकी अनुकम्पा तथा वांछित फल पाने यहाँ आते हैं।
रामकुमार दाधीच रचित सुन्धामाता कथामाहात्म्य का हिंदी अनुवाद।
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कथा
॥ ॐ कुलदेव्यै नमः ॥
- आदिशक्ति भुवनेश्वरी जगदम्बा चामुण्डा सुन्धापर्वत पर ‘अघटेश्वरी’ नाम से विख्यात होकर विराजमान हैं।
- प्राचीनकाल में इस लोक में बकासुर नामक महादैत्य हुआ। उसने अत्याचारों की दानवी लीला की, जिससे त्रस्त होकर पृथ्वी कम्पायमान हो गई।
- बकासुर को मारने के लिए महादेवी आदिशक्ति अपनी सात शक्तियों (ऐन्द्री, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, ब्रह्माणी और शाम्भवी) के साथ सुन्धापर्वत पर अवतरित हुईं।
- सुन्धापर्वत पर अवतरित होने के कारण माता का सुन्धामाता यह प्रिय नाम लोकविख्यात हो गया। उस पर्वत पर भगवान् त्रिलोकीश शिव भी ‘भूर्भुवः स्वः ईश्वर’ नाम से विराजमान हैं।
- भगवान् शिव और भगवती आद्याशक्ति के विराजने से महिमामय हुआ सुन्धातीर्थ मनुष्यों को कल्याण और शक्ति प्रदान करने वाला है। यह कलियुग में इस लोक के प्रत्येक कुल के लिए श्रद्धा का दिव्य केन्द्र है।
- वहाँ प्राचीनकाल में जालौर ( जाबालीपुर ) नामक राज्य में उदयसिंह नामक अतुलपराक्रम वाला राजा था।
- उदयसिंह का ज्येष्ठ पुत्र चाचिगदेव महान् बलवान् उदारहृदय और बुद्धिमान था।
- चामुण्डा माता के अनन्य और परम भक्त प्रजा के प्रिय और महान् योद्धा चाचिगदेव ने युवराज पद प्राप्त किया।
- चाचिगदेव के माता-पिता नियम से श्रद्धापूर्वक सुन्धापर्वत पर चामुण्डामाता के शक्तिपीठ में जाया करते थे।
- पूर्वजन्म में किये गए पुण्यों से प्रेरित महामना चाचिगदेव अपने माता-पिता के साथ जैसे बचपन में सुन्धामाता के दरबार में जाता था…..
- वैसे ही युवावस्था में भी सदा जाता रहा। अनन्य भक्तों की भक्ति रात – दिन बढ़ती ही रहती है।
- पिता की आज्ञा से वह सदा अपने राज्य में भ्रमण करता रहता था। दान, कृपा और प्रेम से वह प्रजा को प्रसन्न रखता था।
- लड़ाई के शौकीन, धूर्त, हिंसक और क्रूर सिन्धुराज ने यवन लुटेरों के साथ जालौर राज्य पर आक्रमण कर दिया।
- चाचिगदेव ने पिता के साथ बहुत बड़ी सेना लेकर शत्रु को आगे बढ़ने से रोक दिया। उसने भीषण युद्ध किया।
- सुन्धापर्वत पर विराजमान जगदम्बा चामुण्डा ने जालौरनरेश पर अनुग्रह किया। युद्ध में आक्रमणकारी सिन्धुराज मारा गया। उसकी सेना भाग खड़ी हुई।
- चाचिगदेव ने सुन्धापर्वत पर चामुण्डामन्दिर में जाकर भक्तिभाव से माता को प्रणाम किया। उसने वहाँ मन्दिर में सुन्दर मण्डप बनवाया।
- पिता उदयसिंह ने राज्य चाचिगदेव को देकर वानप्रस्थव्रत धारण कर लिया। वह चामुण्डामाता की भक्ति में लीन रहता हुआ सुन्धापर्वत पर ही रहने लगा।
- एक बार प्रजा की सेवा करने वाला चाचिगदेव जगदम्बा चामुण्डा और अपने पिता के दर्शन के लिए सुन्धापर्वत पर गया।
- वहाँ उसे अपने बुद्धिमान महामात्य का सन्देश मिला – ‘हे राजन् ! अपनी ताकत के नशे में चूर रहने वाला और जालौर राज्य से द्रोह करने वाला गुजरातनरेश वीरम जालौर पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुका है। उसके साथ उसका मित्र शल्य भी है। तथा दूसरी दिशा से वंथली का राजा संग उसकी सहायता के लिए जालौर पर आक्रमण हेतु तेजी से चला आ रहा है। ‘
- यह सन्देश सुनकर अविचल श्रद्धा वाला, अनन्यभक्त महामति चाचिगदेव सुन्धापर्वतवासिनी माता चामुण्डा की स्तुति करने लगा।
- हे माता ! भक्तों का संकट मिटाने वाली तुम्हीं हो। शरण में आए प्राणियों की वात्सल्यभाव से रक्षा करने वाली तुम्हीं हो।
- प्राणियों की विपात्ति मिटाने वाले तुम्हारे ‘चामुण्डा’ नाम का जो जप करते हैं, उनके लिए कहीं कोई भय नहीं है।
- राजा चाचिगदेव इस प्रकार स्तुति करता हुआ समाधिस्थ हो गया। तब भक्तवत्सल देवी ने सन्तुष्ट होकर उस पर कृपा की।
- सुन्धामाता का प्रसाद पाकर एक ओर वह दुश्मन के सामने चल पड़ा। दूसरी ओर उसका सामंतसिंह नामक पुत्र चला।
- शत्रुनाशिनी सुन्धामाता ने अनुकम्पा की। सामन्त ने राजा संग को मार गिराया। उसकी सेना भाग गई।
- दूसरी तरफ राजा चाचिगदेव के नेतृत्व में जालौर की सेना ने प्रचण्ड शौर्य का प्रदर्शन किया। दुश्मन का मनोरथ भंग हो गया।
- राजकुमार सामंतसिंह भी सेना के साथ पिता चाचिगदेव की सहायता के लिए आ गया। भीषण युद्ध हुआ। रणभूमि खून से लाल हो गई।
- रणभूमि खण्डित हथियारों और क्षत-विक्षत शवों से पट गई। वीरम अपने मित्र शल्य और सेना के साथ युद्ध में मारा गया।
- विजयी राजा चाचिगदेव कृतज्ञता से सुन्धामाता के मन्दिर में गया। उस देवी -भक्त राजा ने भक्तिभाव से वहाँ महान् उत्सव का आयोजन किया।
- सुन्धापर्वतनिवासिनी करुणामयी चामुण्डामाता लोकव्यवहार की बोलचाल में सुन्धामाता नाम से ही विख्यात हो गई।
- जो परात्पर आदिशक्ति है, वह महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीन रूपों में पूजी जाती हैं।
- जो चित्स्वरूप वाली माता कात्यायनी, महामाया, दुर्गा, पापविनाशिनी, छत्रधारिणी तथा घोरदानवों की विनाशिनी है।
- वही महेश्वरी जगदम्बा सुन्धामाता कहलाती है। उसकी कृपा से इस लोक और परलोक के सब फल प्राप्त होते हैं।
Jay MATA DI MAA MERI BHI ARAZ SUN LO
Shunesha Mehta ki kuldevi
Kon se he
I have found some interesting things to go through. In my village, there is a Shivaling which was excavated from the earth. The interesting fact is the Shivaling has the same shila lekh as the Sundha mata temple has.
Hello Nick, Can you please tell me about your village
JAI SUNDHA CHAMUNDA
MAINE JO SAPNA DEKHA HAI VO PURO KARO MAA
bhai ate lakhva su tharo sapno naa puro hovego.