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गडरिया समाज: परिचय, इतिहास, रीती-रिवाज व योगदान | Gadariya Samaj History in Hindi

गडरिया/गाडरी समाज का परिचय:

Gadariya Samaj History in Hindi: भारतीय समाज में विभिन्न जाति, समुदाय और संघों का अस्तित्व है जो अपने आदिकाल से ही विशेष व्यवसायों और कार्यों में लगे रहे हैं। गडरिया समाज भी इनमें से एक है, जो मुख्य रूप से पशु पालन और बकरी पालन में लगा हुआ है। यह लेख गडरिया समाज के इतिहास, संरचना, पेशेवरता और उनके योगदान के बारे में विस्तृतता से विचार करता है। इन्हें गाडरी के नाम से भी जाना जाता है ये जाति गाँवों में ही निवास करती है।

गडरिया/गाडरी समाज का इतिहास:

गडरिया समाज अपने उद्भव से पहले से ही विद्यमान था और यह भारतीय समाज का एक प्रमुख हिस्सा है। यह समाज पशु पालन का व्यवसाय करता है और मुख्य रूप से गाय, भैंस, बकरी आदि की देखभाल करता है। गडरिया समाज के सदस्यों का आंदोलनिक इतिहास नहीं है, लेकिन उनका अस्तित्व विभिन्न भागों में पशु पालकों और उनके परिवारों के बीच सम्बंधों के माध्यम से दर्ज होता है।

गडरिया/गाडरी समाज की पेशेवरता:

गडरिया समाज के सदस्य मुख्य रूप से पशु पालन और बकरी पालन के व्यवसाय में लगे रहते हैं। वे गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा आदि की देखभाल करते हैं और इन पशुओं के उत्पादों को बेचकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधारते हैं। यह समाज अपने पशुओं की देखभाल के लिए क्षेत्रों और खुले मैदानों में घुमक्कड़ी करता है और पशुओं को उचित खाद्य, पानी और आवास प्रदान करता है। ये ऊन का व्यापार भी करते हैं। ये लोग खेतीहार मजदूर भी होते हैं।

गडरिया/गाडरी समाज का योगदान:

गडरिया समाज भारतीय समाज के लिए महत्वपूर्ण योगदान प्रदान करता है। उनका पशु पालन का क्षेत्र देश की गाय, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा आदि की प्रजातियों के संरक्षण और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके साथ ही, यह समाज देश की गाय के दूध और मांस, बकरी और भेड़ के दूध और मांस, और पशुओं के तंबाकू, चमड़ा और ऊन की आपूर्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, यह समाज गडरिया संघ के रूप में संगठित हो सकता है और अपने सदस्यों के हितों की रक्षा कर सकता है।

गडरिया/गाडरी समाज के रीती-रिवाज :-

ये लोग अनेक देवी-देवताओं को मानते है तथा मूर्ति पूजा के उपासक होते हैं। इस जाति के लोग विवाह सात फेरों द्वारा संपन्न करते हैं। इसमें दुल्हन के पिता दहेज़ में भेड़ बकरी जरूर देते हैं। इसमें नाता प्रथा भी प्रचलित है। ये विवाह एवं नाता सम्बन्ध में अपने गोत्र को टालते हैं। इस जाति में मुर्दे को जलाया जाता है और मृत्यु के तीन दिन पश्चात तीसरा तथा बारह दिन बाद बारहवाँ किया है। सारे काम ब्राह्मण द्वारा ही करवाए जाते हैं। इनका रहन सहन सादा होता है। राजस्थान में गाडारियों की अधिक आबादी मेवाड़ में हैं।

समापन:

गडरिया समाज भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण और आवश्यक हिस्सा है जो पशु पालन और बकरी पालन के क्षेत्र में लगा हुआ है। इस समाज के सदस्य पशु पालन और उनके उत्पादों के विकास और संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इस समाज का महत्व सिर्फ पशु पालन और उनके उत्पादों के क्षेत्र में ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका समाज संगठन और एकजुटता का भी महत्वपूर्ण योगदान है। गडरिया समाज के सदस्य अपने व्यवसाय को मान्यता और सम्मान के साथ संचालित करते हैं और इसके माध्यम से अपने जीवन की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इसलिए, गडरिया समाज भारतीय समाज के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है और उसके योगदान को महत्वपूर्णता से देखा जाना चाहिए।

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