द्वादश ज्योतिर्लिंग भारत में भगवान शिव के बारह पवित्र और महत्वपूर्ण मंदिरों का समूह है। इन ज्योतिर्लिंगों की पूजा विशेष रूप से शिवभक्तों द्वारा की जाती है और इनका धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिंगों की पौराणिक कथा के अनुसार, यह सभी ज्योतिर्लिंग शिव भगवान के अलग-अलग स्वरूपों का प्रतीक हैं। यह भी कहा जाता है कि जो भक्त इन बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (गुजरात) | Somnath Jyotirlinga

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत का पहला और सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग माना जाता है। यह गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा महाभारत और स्कंद पुराण में भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहाँ चंद्रमा को श्राप से मुक्त किया था।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रथम और सर्वाधिक पूजनीय है। यह मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में प्रभास पाटन में स्थित है और इसकी महिमा अनंत है। कहा जाता है कि स्वयं चंद्रदेव ने यहां भगवान शिव की तपस्या कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था, जिससे यह स्थान “सोमनाथ” कहलाया।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, चंद्रदेव (सोम) ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था, लेकिन वे रोहिणी को अधिक प्रेम करते थे। इससे नाराज होकर दक्ष ने चंद्रदेव को श्राप दिया कि उनकी चमक धीरे-धीरे क्षीण हो जाएगी। इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए चंद्रदेव ने प्रभास क्षेत्र में आकर कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया।
भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्ति देते हुए यह वरदान दिया कि वे प्रत्यक्ष रूप से यहां विराजमान रहेंगे और यह स्थान “सोमनाथ” के रूप में विख्यात होगा। तब से यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए मोक्ष प्रदान करने वाला स्थल माना जाता है।
इतिहास और पुनर्निर्माण
इस मंदिर का इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। इसे कई बार विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट किया, लेकिन हर बार इसका पुनर्निर्माण हुआ। महमूद गजनवी ने इसे 1025 ईस्वी में लूटा, बाद में दिल्ली के सुल्तानों और औरंगजेब ने भी इसे ध्वस्त किया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद, सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से इसे फिर से भव्य रूप में स्थापित किया गया।
वास्तुकला और विशेषताएँ
वर्तमान सोमनाथ मंदिर चालुक्य स्थापत्य शैली में निर्मित है। इसकी ऊँचाई 155 फीट है और शीर्ष पर एक विशाल स्वर्ण कलश स्थापित है। यह मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है और एक शिलालेख के अनुसार, इसके दक्षिण में कोई भूमि नहीं है, जो इसकी भौगोलिक विशेषता को दर्शाता है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
मंदिर के पास त्रिवेणी संगम स्थित है, जहाँ कपिला, हिरण और सरस्वती नदियों का मिलन होता है। यह स्थान पवित्र स्नान और ध्यान के लिए आदर्श माना जाता है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण के अंतिम समय से जुड़े स्थल भी हैं, जहाँ उन्होंने पृथ्वी पर अपने अवतार की समाप्ति की थी।
सोमनाथ मंदिर में प्रतिदिन भव्य आरती होती है, जो भक्तों को एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करती है। इसके अलावा, यहाँ लाइट एंड साउंड शो भी आयोजित किया जाता है, जिसमें मंदिर का गौरवशाली इतिहास प्रस्तुत किया जाता है।
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग (आंध्र प्रदेश) | Mallikarjun Jyotirlinga

श्रीशैलम में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का स्थान दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में आता है। यहाँ शिव और पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिकेय को शांत करने के लिए दर्शन दिए थे। इस स्थान को ‘कैलाश का दक्षिण द्वार’ भी कहा जाता है।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे दक्षिण का काशी भी कहा जाता है। यह पवित्र मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। यहाँ भगवान शिव और माता पार्वती का संयुक्त वास माना जाता है, इसलिए यह स्थान शक्ति पीठ और ज्योतिर्लिंग, दोनों का अद्भुत संगम है।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय और गणेश में यह तय करने के लिए विवाद हुआ कि सबसे पहले विवाह किसका होगा। शिवजी ने कहा कि जो पृथ्वी की परिक्रमा पहले पूरी करेगा, वही विजेता होगा। कार्तिकेय ने अपने वाहन मयूर पर सवार होकर पूरी पृथ्वी की यात्रा शुरू की, जबकि गणेश जी ने अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए माता-पिता की ही सात बार परिक्रमा कर ली, जिससे वे विजेता बन गए और उनका विवाह पहले कर दिया गया।
जब कार्तिकेय को यह ज्ञात हुआ, तो वे नाराज होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। माता पार्वती और भगवान शिव अपने पुत्र को मनाने के लिए वहाँ पहुँचे, लेकिन कार्तिकेय ने किसी से नहीं मिलने का निश्चय कर लिया। दुखी होकर शिव और पार्वती वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हो गए। इस कारण इस स्थान को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, जहाँ शिव-पार्वती दोनों की कृपा प्राप्त होती है।
मंदिर की विशेषताएँ
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का मंदिर द्रविड़ शैली में बना हुआ है और इसकी वास्तुकला अत्यंत भव्य है। मंदिर का गोपुरम ऊँचा और अलंकरणों से युक्त है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाता है। यहाँ भगवान शिव को “मल्लिकार्जुन” और माता पार्वती को “भ्रमराम्बा” के रूप में पूजा जाता है। यह स्थल 51 शक्ति पीठों में से भी एक है, जिससे इसकी आध्यात्मिक महत्ता और बढ़ जाती है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
माना जाता है कि जो भक्त मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन करता है, उसे जीवन में हर सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ आने वाले भक्त जलाभिषेक और रुद्राभिषेक कर भगवान शिव की कृपा प्राप्त करते हैं।
मंदिर के पास कृष्णा नदी बहती है, जहाँ स्नान करने से पापों का नाश होता है। श्रीशैल पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक वातावरण भक्तों को एक अनूठी अनुभूति प्रदान करता है।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (मध्य प्रदेश) | Mahakaleshwar Jyotirlinga

उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व अत्यधिक है। यहाँ के शिवलिंग को ‘महाकाल’ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है समय के स्वामी। यह मंदिर तंत्र-मंत्र के लिए भी प्रसिद्ध है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली ज्योतिर्लिंग है। यह मंदिर मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है और इसे शिव के भक्तों के लिए मोक्षदायी तीर्थ माना जाता है। महाकालेश्वर ही एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जो स्वयंभू (स्वतः प्रकट) है और दक्षिणमुखी है, जिससे इसकी महत्ता और भी बढ़ जाती है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, उज्जैन में एक समय राजा चंद्रसेन शिव भक्त थे, लेकिन पड़ोसी राजाओं को उनका यह भक्ति मार्ग पसंद नहीं था। उन्होंने उज्जैन पर आक्रमण कर दिया। संकट के समय एक ब्राह्मण लड़के “श्रीकर्ष” ने भगवान शिव की आराधना की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए और राक्षसों का संहार कर उज्जैन की रक्षा की।
इसके बाद भगवान शिव ने यहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में स्वयं को स्थापित किया और महाकाल (कालों के भी काल) के रूप में पूजे जाने लगे। यही कारण है कि इस स्थान को महाकालेश्वर कहा जाता है।
महाकालेश्वर मंदिर की विशेषताएँ
- स्वयंभू ज्योतिर्लिंग: अन्य ज्योतिर्लिंगों की स्थापना जहाँ भक्तों द्वारा की गई, वहीं महाकालेश्वर स्वयं धरती से प्रकट हुए हैं।
- दक्षिणमुखी शिवलिंग: यह शिवलिंग दक्षिण दिशा की ओर स्थित है, जो इसे अद्वितीय बनाता है।
- भस्म आरती: महाकालेश्वर की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें भस्म से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। यह विशेष पूजा ब्रह्म मुहूर्त में होती है और इसमें भाग लेना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- काल भैरव मंदिर: उज्जैन में महाकालेश्वर के साथ-साथ काल भैरव मंदिर भी महत्वपूर्ण है, जहाँ भक्त मदिरा का प्रसाद चढ़ाते हैं।
तीर्थ यात्रा का महत्व
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से भक्तों को सभी प्रकार के भय और दुखों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि यहाँ पूजा करने से मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
उज्जैन, जो प्राचीन काल में अवंतिका नगरी के नाम से जानी जाती थी, महाकाल की नगरी मानी जाती है। यह स्थान कुंभ मेले के चार प्रमुख स्थलों में से एक है और भारत के धार्मिक केंद्रों में विशेष स्थान रखता है।
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग (मध्य प्रदेश) | Omkareshwar Jyotirlinga

नर्मदा नदी के बीच एक द्वीप पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम ‘ओंकार पर्वत’ पर रखा गया है। यहाँ भगवान शिव ओंकार (प्रणव) के रूप में विराजमान हैं। यह स्थान धार्मिक और प्राकृतिक सुंदरता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच स्थित एक द्वीप पर स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग अपनी अनोखी स्थिति और आध्यात्मिक महत्ता के कारण विशेष रूप से पूजनीय है। नर्मदा नदी के इस द्वीप का आकार “ॐ” के समान माना जाता है, जिससे इस ज्योतिर्लिंग को ओंकारेश्वर कहा जाता है।
ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार विद्याधर नामक एक राजा ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया। उन्होंने वरदान स्वरूप यह माँगा कि उनका राज्य हमेशा समृद्ध रहे और वे अविजेय रहें। लेकिन देवताओं को यह चिंता हुई कि यह वरदान कहीं अनर्थ न कर दे।
तब देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में इस स्थान पर प्रकट होकर अपना दिव्य आशीर्वाद प्रदान किया। इस प्रकार, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव ने यहां अपने भक्त मंदरूपादि की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और स्वयं को ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट किया।
मंदिर की विशेषताएँ
- ॐ आकार का द्वीप: यह ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के बीच स्थित एक द्वीप पर स्थित है, जिसका आकार “ॐ” के समान है। यह इसे अन्य ज्योतिर्लिंगों से विशेष बनाता है।
- ओंकारेश्वर और ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग: यहाँ दो प्रमुख शिवलिंग हैं—ओंकारेश्वर और ममलेश्वर। कुछ मान्यताओं के अनुसार, ममलेश्वर को भी ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
- नर्मदा नदी की महिमा: नर्मदा नदी के तट पर स्थित यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भी है।
- महाभारत और पुराणों में उल्लेख: ओंकारेश्वर का उल्लेख महाभारत और शिव पुराण में मिलता है, जिससे इसकी प्राचीनता और पवित्रता सिद्ध होती है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
ओंकारेश्वर की यात्रा करने से शिव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। नर्मदा तट पर स्नान करने से आत्मा शुद्ध होती है और मन को शांति मिलती है। यहाँ पर पंचमुखी गणेश, सिद्धनाथ मंदिर, और कई अन्य प्राचीन मंदिर भी दर्शनीय हैं।
ओंकारेश्वर में विशेष रूप से श्रावण मास, महाशिवरात्रि, और कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं।
5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तराखंड) | Kedarnath Jyotirlinga

हिमालय की ऊंचाइयों में स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग सबसे पवित्र और कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने पांडवों को दर्शन दिए थे। यह मंदिर चार धाम यात्रा का भी हिस्सा है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और सबसे ऊँचाई पर स्थित पवित्र धाम है। यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मंदाकिनी नदी के तट पर, 3,583 मीटर (11,755 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ को चार धामों और पंच केदारों में भी प्रमुख स्थान प्राप्त है। कठिन पर्वतीय मार्गों से होकर इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन करना हर शिव भक्त के लिए एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव है।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
महाभारत के अनुसार, जब पांडव कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद अपने पापों से मुक्त होने के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद लेने आए, तो भगवान शिव उनसे मिलने से बचने के लिए केदार में छिप गए और बैल का रूप धारण कर लिया। जब पांडवों ने उनका पीछा किया, तो उन्होंने शिव को पहचान लिया।
भगवान शिव ने तब स्वयं को पाँच भागों में विभाजित कर लिया—
- केदारनाथ में उनका कूबड़ प्रकट हुआ,
- तुंगनाथ में उनकी भुजाएँ,
- रुद्रनाथ में उनका मुख,
- मध्यमहेश्वर में उनका नाभि भाग,
- कल्पेश्वर में उनके जटाएँ।
इन पाँच स्थानों को पंच केदार कहा जाता है।
जब शिव जी केदारनाथ में ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, तो पांडवों ने वहाँ एक भव्य मंदिर बनवाया और शिव की पूजा की। तब से केदारनाथ तीर्थ यात्रा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।
केदारनाथ मंदिर की विशेषताएँ
- हिमालय में स्थित अद्वितीय ज्योतिर्लिंग: यह सबसे ऊँचाई पर स्थित ज्योतिर्लिंग है, जो हर साल हजारों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है।
- कठिन यात्रा मार्ग: यहाँ तक पहुँचने के लिए गौरीकुंड से 16 किलोमीटर लंबी कठिन पैदल यात्रा करनी होती है।
- प्राचीन वास्तुकला: मंदिर अद्भुत पत्थरों से निर्मित है, जिसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में पुनर्निर्मित कराया था।
- प्राकृतिक आपदाओं से अडिग: 2013 की भीषण बाढ़ के दौरान भी यह मंदिर सुरक्षित रहा, जिसे शिव की अद्भुत कृपा मानी जाती है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
केदारनाथ की यात्रा करने से सभी प्रकार के पाप और जन्म-जन्मांतर के दोष समाप्त हो जाते हैं। यह मंदिर केवल अप्रैल से नवंबर तक ही खुला रहता है, क्योंकि सर्दियों में भारी बर्फबारी के कारण इसे बंद कर दिया जाता है।
मंदिर बंद होने के बाद भगवान केदारनाथ की पूजा उखीमठ में होती है।
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र) | Bhimashankar Jyotirlinga

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग पुणे के पास भीमाशंकर पर्वत पर स्थित है। यह स्थल भीमा नदी के उद्गम स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता और वातावरण धार्मिक श्रद्धा को और भी बढ़ा देता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यह मंदिर घने जंगलों और ऊँचे पहाड़ों के बीच स्थित है, जिससे इसकी प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिकता और भी बढ़ जाती है। यह स्थान भीमा नदी के उद्गम स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है, जो आगे जाकर कृष्णा नदी में मिलती है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना एक अद्भुत कथा से जुड़ी हुई है।
कथा के अनुसार, त्रेता युग में भीम नामक राक्षस ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से अपार शक्ति का वरदान प्राप्त किया। इस शक्ति के कारण उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया और स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवताओं ने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की।
भगवान शिव ने भीमासुर से युद्ध किया और उसे पराजित कर दिया। युद्ध के बाद, भगवान शिव ने यहाँ स्वयं को ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित किया, जिससे यह स्थान भीमाशंकर कहलाया।
मंदिर की विशेषताएँ
- पुरातन नागर शैली में निर्मित मंदिर: यह मंदिर प्राचीन नागर स्थापत्य शैली में बना हुआ है और इसकी नक्काशी अत्यंत सुंदर है।
- भीमा नदी का उद्गम: मंदिर के पास से ही भीमा नदी बहती है, जिसे पवित्र माना जाता है।
- सह्याद्रि पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता: घने जंगल और ऊँचे पर्वत इस स्थल को दिव्य और रमणीय बनाते हैं।
- दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग: यह ज्योतिर्लिंग दक्षिण दिशा की ओर स्थित है, जो इसे विशेष बनाता है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति और शिव कृपा प्राप्त होती है। यहाँ महाशिवरात्रि और श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
भीमाशंकर के जंगलों को भीमाशंकर वन्यजीव अभयारण्य के रूप में भी जाना जाता है, जहाँ दुर्लभ प्रजातियों के जीव-जंतु पाए जाते हैं।
7. काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग (उत्तर प्रदेश) | Kashi Vishwanath Jyotirlinga

वाराणसी में स्थित काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अद्वितीय है। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव स्वयं विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं और यहाँ मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे सबसे पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी (प्राचीन काशी) में गंगा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि काशी स्वयं भगवान शिव की प्रिय नगरी है और यहाँ मृत्यु को प्राप्त करने वाला जीव सीधे मोक्ष प्राप्त करता है। इसी कारण से यह स्थान शिवभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
एक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हुआ, तब भगवान शिव ने एक दिव्य ज्योतिर्लिंग प्रकट किया और कहा कि जो इस प्रकाश स्तंभ के आदि और अंत का पता लगाएगा, वही श्रेष्ठ होगा। भगवान विष्णु ने इसका अंत खोजने की कोशिश की लेकिन असफल रहे, जबकि ब्रह्मा जी ने झूठ बोला कि उन्होंने इसका आदि खोज लिया है। इस छल के कारण भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि उनकी पूजा इस संसार में नहीं होगी। यही ज्योतिर्लिंग आगे चलकर काशी विश्वनाथ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, स्वयं माता पार्वती ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे काशी में निवास करें ताकि भक्तों को सदा उनकी कृपा प्राप्त होती रहे। तभी से शिव यहाँ “विश्वनाथ” (संसार के स्वामी) रूप में विराजमान हैं।
मंदिर की विशेषताएँ
काशी विश्वनाथ मंदिर को कई बार आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किया गया और पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान मंदिर का निर्माण 1780 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था। इसके बाद, 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने मंदिर के शिखर पर सोने का आवरण चढ़वाया, जिससे इसे “स्वर्ण मंदिर” भी कहा जाता है।
- मोक्ष प्रदान करने वाला ज्योतिर्लिंग – यह माना जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन मात्र से भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद स्वयं भगवान शिव तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं।
- भारत का सबसे प्रमुख शिव मंदिर – यह मंदिर हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर है और इसे “शिव की नगरी” काशी का केंद्र माना जाता है।
- गंगा तट पर स्थित – यह ज्योतिर्लिंग पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है, जहाँ स्नान और पूजन का विशेष महत्व है।
- स्वर्ण मंडित शिखर – मंदिर के शिखर पर 800 किलोग्राम सोने की परत चढ़ी हुई है, जिसे महाराजा रणजीत सिंह ने दान किया था।
- बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख – यह भगवान शिव का एकमात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है, जिसे “अनादि” और “सर्वोच्च” माना जाता है।
- गुप्त पूजा का महत्व – मान्यता है कि काशी में स्थित विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की गुप्त रूप से पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
- माँ अन्नपूर्णा का विशेष संबंध – मंदिर के पास स्थित माँ अन्नपूर्णा देवी का मंदिर इस विश्वास को मजबूत करता है कि यहाँ आने वाले भक्तों को कभी भी अन्न की कमी नहीं होती।
- विशेष त्योहार और अनुष्ठान – महाशिवरात्रि, सावन मास, देव दीपावली और अन्य शुभ अवसरों पर यहाँ विशेष पूजन, रुद्राभिषेक और भव्य अनुष्ठान किए जाते हैं।
- ज्ञान और अध्यात्म का केंद्र – यह मंदिर न केवल शिव भक्ति का केंद्र है, बल्कि वेद, उपनिषद और तंत्र विद्या के अध्ययन का भी प्रमुख स्थान माना जाता है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से भक्तों को शिव कृपा प्राप्त होती है और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है। यहाँ गंगा स्नान, विशेष रुद्राभिषेक, और महा आरती का अत्यंत महत्व है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति अंत समय में काशी में भगवान शिव का नाम लेकर प्राण त्यागता है, उसे स्वयं भगवान शिव तारक मंत्र देकर मोक्ष प्रदान करते हैं।
8. त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र) | Trimbakeshwar Jyotirlinga

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग नासिक के पास गोदावरी नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है। यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना है और यहाँ के शिवलिंग में तीन मुख हैं, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक हैं।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित है। यह मंदिर पश्चिमी घाट की सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित है और यहाँ से गोदावरी नदी का उद्गम भी होता है, जिसे दक्षिण गंगा कहा जाता है। त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग अपनी विशेष वास्तुकला और अनूठी शिवलिंग संरचना के कारण अद्वितीय माना जाता है।
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
एक कथा के अनुसार, गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या के साथ इस क्षेत्र में रहते थे। उन्होंने कठोर तपस्या करके इंद्रदेव से वर्षा का वरदान प्राप्त किया, जिससे उनका क्षेत्र सदैव हरियाली और समृद्धि से भरा रहता था। जब अन्य ऋषियों को ईर्ष्या हुई, तो उन्होंने गौतम ऋषि पर गोहत्या का झूठा आरोप लगाया। इस दोष से मुक्त होने के लिए गौतम ऋषि ने भगवान शिव की आराधना की और उनसे गंगा को धरती पर लाने का वरदान माँगा। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी जटाओं से गोदावरी नदी प्रवाहित की और स्वयं यहाँ ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए।
मंदिर की विशेषताएँ
- तीन स्वयंभू लिंग – यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जहाँ शिवलिंग के स्थान पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीकस्वरूप तीन छोटे-छोटे लिंग स्थित हैं।
- गोदावरी नदी का उद्गम स्थल – यह मंदिर गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के पास स्थित है, जिसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है।
- कालसर्प दोष निवारण के लिए प्रसिद्ध – यहाँ विशेष रूप से कालसर्प दोष निवारण पूजा और नारायण नागबली पूजा की जाती है, जिससे जन्मपत्रिका में मौजूद दोषों से मुक्ति मिलती है।
- अद्भुत स्थापत्य कला – मंदिर का निर्माण काले पत्थरों से हुआ है और यह पेशवा काल की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।
- स्वर्ण मुकुट – यहाँ भगवान त्र्यंबकेश्वर की प्रतिमाओं को एक विशेष स्वर्ण मुकुट पहनाया जाता है, जो वर्षों पुराना और अत्यंत पवित्र माना जाता है।
- मंदिर का स्वर्ण शिखर – मंदिर के शिखर पर 100 किलोग्राम सोने की परत चढ़ी हुई है, जिसे नासिक के पेशवा द्वारा दान किया गया था।
- कुंभ मेले का प्रमुख केंद्र – त्र्यंबकेश्वर हर बारह वर्ष में लगने वाले कुंभ मेले का एक मुख्य स्थल है, जहाँ लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान और शिव आराधना के लिए आते हैं।
तीर्थ यात्रा का महत्व
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। यहाँ कालसर्प दोष निवारण पूजा और नारायण नागबली पूजा अत्यंत प्रसिद्ध है। विशेष रूप से कुंभ मेले के दौरान यहाँ लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान और शिव आराधना के लिए आते हैं।
9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग (झारखंड) | Vaidyanath / Baijnath Jyotirlinga

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग देवघर में स्थित है। यह स्थान उन श्रद्धालुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है जो भगवान शिव से स्वास्थ्य और जीवन शक्ति की कामना करते हैं। कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव ने रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया था।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे “कामना लिंग” कहा जाता है, क्योंकि यहाँ की पूजा से भक्तों की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। यह मंदिर झारखंड के देवघर जिले में स्थित है और इसे बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, महाराष्ट्र के परली में स्थित वैद्यनाथ मंदिर को भी ज्योतिर्लिंग माना जाता है।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, रावण भगवान शिव के परम भक्त थे और उन्होंने कठोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। जब भगवान शिव प्रकट हुए, तो रावण ने उनसे अनुरोध किया कि वे लंका में निवास करें। भगवान शिव ने रावण को ज्योतिर्लिंग दिया, लेकिन यह शर्त रखी कि यदि उसने इसे भूमि पर रखा, तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा।
देवताओं को भय था कि यदि शिवलिंग लंका में स्थापित हो गया, तो रावण अमर और अजेय हो जाएगा। इस संकट से बचने के लिए, उन्होंने गणेश जी से सहायता मांगी। गणेश जी ने एक बालक का रूप धारण किया और जब रावण देवघर पहुँचा, तो उसे लघुशंका (शौच) की आवश्यकता हुई। उसने बालक बने गणेश जी से शिवलिंग पकड़ने के लिए कहा और जल्दी लौटने का आदेश दिया। गणेश जी ने चालाकी से शिवलिंग को वहीं रख दिया, जिससे वह उसी स्थान पर स्थापित हो गया।
जब रावण लौटकर आया, तो उसने शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन असफल रहा। क्रोधित होकर उसने शिवलिंग को अपने अंगूठे से दबा दिया, जिससे वह थोड़ा झुक गया। यही शिवलिंग बाद में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
- कामना लिंग – यह ज्योतिर्लिंग “कामना लिंग” कहलाता है, यानी यहाँ सच्चे मन से की गई पूजा से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।
- झुका हुआ शिवलिंग – मंदिर में स्थित शिवलिंग थोड़ा झुका हुआ है, जिसे रावण द्वारा दबाने के कारण माना जाता है।
- मंदिर का स्थापत्य – यह नागर शैली में बना हुआ है और इसके परिसर में 22 छोटे-बड़े मंदिर स्थित हैं।
- श्रावण मास का महत्व – हर साल श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवड़ यात्रा करते हैं और गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
- रावण का विशेष संबंध – यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है, जिसकी स्थापना का संबंध रावण से जुड़ा है।
- जल अभिषेक की परंपरा – भक्त यहाँ गंगाजल चढ़ाकर भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करते हैं।
तीर्थ यात्रा का महत्व
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ आने वाले भक्त विशेष रूप से महाशिवरात्रि और श्रावण मास में पूजा-अर्चना करते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बाबा बैद्यनाथ का अभिषेक करते हैं।
10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग (गुजरात) | Nageshwar Jyotirlinga

गुजरात के द्वारका के पास स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को ‘द्वारकाधीश’ भी कहा जाता है। यहाँ भगवान शिव नागेश्वर (सर्पों के स्वामी) के रूप में पूजे जाते हैं। इस स्थान का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो गुजरात के द्वारका के समीप स्थित है। यह मंदिर शिव के नागेश्वर स्वरूप को समर्पित है, जिसे सर्पों के स्वामी कहा जाता है। यह ज्योतिर्लिंग राक्षस दरुका के वध और भक्त सुयज्ञ की कथा से जुड़ा हुआ है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
एक बार दरुका नामक एक राक्षसी और उसका पति दरुक अपने राक्षसी समूह के साथ समुद्र के पास जंगल में रहने लगे। वे वहाँ तपस्वियों और भक्तों को तंग करने लगे। दरुक को भगवान शिव से एक वरदान प्राप्त था, जिसके कारण उसे देवताओं से कोई भय नहीं था। उसने एक शिवभक्त सुयज्ञ को बंदी बना लिया और उसे सताने लगा।
सुयज्ञ ने कैद में रहते हुए भगवान शिव की घोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने दरुका व अन्य राक्षसों का वध कर दिया। इस स्थान पर शिव स्वयं नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए और भक्तों को यह वरदान दिया कि जो भी यहाँ सच्चे मन से उनकी आराधना करेगा, वह भय मुक्त रहेगा।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
- सर्पों के स्वामी शिव – नागेश्वर का अर्थ है “सर्पों के स्वामी”, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से सभी प्रकार के भय, विष दोष और कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
- द्वारका के समीप स्थित – यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका के पास स्थित है, जिससे इसका संबंध भगवान कृष्ण की नगरी से भी जुड़ता है।
- विशाल शिव प्रतिमा – मंदिर परिसर में 80 फीट ऊँची शिव प्रतिमा स्थित है, जो इस मंदिर का एक प्रमुख आकर्षण है।
- विशेष पूजा अनुष्ठान – यहाँ रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और कालसर्प दोष निवारण पूजा विशेष रूप से की जाती है।
- राक्षस दरुका से जुड़ी कथा – यह स्थान शिव की महिमा और उनके भक्तों की रक्षा करने की कथा से जुड़ा हुआ है, जिससे यह शिवभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है।
- शिवलिंग का अद्भुत स्वरूप – नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दक्षिणमुखी है, जिसे अत्यंत दुर्लभ माना जाता है और इसकी पूजा से भक्त को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- श्रावण मास और महाशिवरात्रि का महत्व – इन शुभ अवसरों पर लाखों श्रद्धालु यहाँ विशेष पूजा और जलाभिषेक करने आते हैं।
तीर्थ यात्रा का महत्व
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से सभी प्रकार के भय, कालसर्प दोष और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार भी माना जाता है, इसलिए हर वर्ष हजारों श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने आते हैं।
11. रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग (तमिलनाडु) | Rameshwaram Jyotirlinga

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह स्थान भगवान राम से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने लंका पर विजय पाने के बाद यहाँ शिवलिंग की स्थापना की थी। इसे दक्षिण भारत का ‘काशी’ भी कहा जाता है।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है और इसे सबसे पवित्र तीर्थों में गिना जाता है। यह मंदिर तमिलनाडु के रामेश्वरम् द्वीप पर स्थित है और इसका संबंध भगवान श्रीराम से जुड़ा हुआ है। यह वही स्थान है जहाँ श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान शिव की आराधना की थी।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम रावण का वध करने के लिए लंका जाने वाले थे, तो उन्होंने भगवान शिव की पूजा करने का निश्चय किया। उन्होंने एक शिवलिंग स्थापित करने का संकल्प लिया, लेकिन जब कोई शिवलिंग नहीं मिला, तो माता सीता ने समुद्र तट की रेत से एक शिवलिंग बना दिया।
श्रीराम ने पूरे विधि-विधान से इस शिवलिंग की पूजा की और भगवान शिव से विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया। इसके बाद वे लंका के लिए प्रस्थान कर गए और अंततः रावण का वध कर धर्म की स्थापना की। यह वही शिवलिंग रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
- भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित – यह ज्योतिर्लिंग स्वयं भगवान श्रीराम द्वारा स्थापित किया गया था, जिससे इसका धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत बढ़ जाता है।
- तीर्थराज के रूप में प्रसिद्ध – चार धामों (बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम्) में से एक होने के कारण यह हिंदू धर्म के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में गिना जाता है।
- 22 तीर्थ कुंडों का महत्व – इस मंदिर के परिसर में 22 पवित्र तीर्थ कुंड (जल स्रोत) स्थित हैं, जहाँ स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
- शिव और विष्णु की एकता का प्रतीक – यह मंदिर भगवान शिव और भगवान विष्णु के भक्तों के लिए समान रूप से पूजनीय है, क्योंकि इसकी स्थापना स्वयं श्रीराम ने की थी।
- दक्षिण भारत का सबसे विशाल मंदिर परिसर – रामेश्वरम् मंदिर अपनी भव्यता और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। इसमें स्थित 1212 स्तंभों वाला लंबा गलियारा (कोरिडोर) विश्व प्रसिद्ध है।
- अग्नितीर्थ का महत्व – यह मंदिर समुद्र तट के पास स्थित है, जहाँ समुद्र स्नान को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है।
- महाशिवरात्रि और अन्य पर्वों का विशेष महत्व – महाशिवरात्रि, रामनवमी और श्रावण मास में यहाँ विशेष पूजन और भव्य अनुष्ठान किए जाते हैं।
तीर्थ यात्रा का महत्व
रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से न केवल सभी पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि जीवन में आध्यात्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहाँ दर्शन करने से वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्य भी प्राप्त होता है।
12. घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग (महाराष्ट्र) | Grishneshwar / Ghushmeshwar Jyotirlinga

औरंगाबाद के पास स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजित है। इस मंदिर की वास्तुकला और स्थापत्य कला अद्वितीय है और यह स्थान शिव भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अंतिम और सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में एलोरा गुफाओं के पास स्थित है। इसे घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भक्ति, त्याग और शिव कृपा की अद्भुत कथा से जुड़ा हुआ है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, एक भक्त महिला घुश्मा (घृष्णा) अपने पति सुधर्मा के साथ इस क्षेत्र में रहती थीं। वे भगवान शिव की अनन्य उपासक थीं और प्रतिदिन 101 शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा करती थीं।
घुश्मा की सौत, सुधर्मा की पहली पत्नी, उनसे ईर्ष्या करती थी। उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर दी और शव को पास के तालाब में फेंक दिया। लेकिन घुश्मा ने अपनी पूजा जारी रखी और भगवान शिव की कृपा से उनका पुत्र पुनः जीवित हो गया।
जब घुश्मा को इस चमत्कार का पता चला, तो उन्होंने भगवान शिव से प्रकट होकर वहीं स्थायी रूप से निवास करने का आग्रह किया। शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर यहाँ स्वयं को घृष्णेश्वर (घुश्मेश्वर) ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट किया।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषताएँ
- द्वादश ज्योतिर्लिंगों में अंतिम – यह भगवान शिव का बारहवाँ और अंतिम ज्योतिर्लिंग है, जिससे इसे विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है।
- घुश्मा भक्त की कथा से जुड़ा हुआ – यह ज्योतिर्लिंग एक भक्त महिला की शिव भक्ति और तपस्या का प्रमाण है, जिससे यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणादायक स्थल है।
- मुगल काल में ध्वस्त, मराठा काल में पुनर्निर्माण – यह मंदिर मुगल शासक औरंगजेब द्वारा नष्ट कर दिया गया था, लेकिन 18वीं शताब्दी में मराठा शासक मालवा की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने इसे पुनः बनवाया।
- विशाल नंदी मूर्ति – मंदिर परिसर में भगवान शिव के वाहन नंदी की भव्य और आकर्षक मूर्ति स्थित है।
- दक्षिण भारतीय स्थापत्य शैली – मंदिर का निर्माण दक्षिण भारतीय शैली में किया गया है, जिसमें सुंदर नक्काशी और भव्य मंडप हैं।
- पति-पत्नी के संबंधों को मजबूत करने वाला ज्योतिर्लिंग – इस ज्योतिर्लिंग की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।
- महाशिवरात्रि और सावन मास में विशेष पूजा – इन अवसरों पर यहाँ भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है, और शिवलिंग का विशेष रुद्राभिषेक किया जाता है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और भक्तों को शिव कृपा प्राप्त होती है। यहाँ आकर भगवान शिव के प्रति अटूट भक्ति और समर्पण का संदेश मिलता है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक हैं, बल्कि यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। हर ज्योतिर्लिंग का अपना अलग महत्व, इतिहास और कथा है, जो शिव भक्तों के लिए अत्यधिक प्रेरणादायक है।