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दर्जी समाज का परिचय, उत्पत्ति, गौत्र व कुलदेवी | Darji Samaj in Hindi

दर्जी जाति का परिचय :-

दर्जी समाज, जिसे दारजी समुदाय के नाम से भी जाना जाता है, एक सामाजिक समूह है जो मुख्य रूप से भारत में पाया जाता है। “दारजी” शब्द हिंदी शब्द “दर्जन” से लिया गया है, जिसका अर्थ है “दर्जी”। दर्जी समाज के सदस्य पारंपरिक रूप से सिलाई, परिधान-निर्माण और कपड़ा-संबंधी गतिविधियों के व्यवसाय में शामिल हैं। 

दर्जी भारत, पाकिस्तान और नेपाल के तराई क्षेत्र में पाई जाती है। यह व्यवसाय करने वाली जाति है। कर्नाटक में इन्हें पिसे, वेड, काकड़े और सन्यासी के नाम से जाना जाता है। दर्जी अपने मुख्य व्यवसाय में लगे होते हैं। लेकिन अब यह खेती भी करने लगे हैं। और साथ ही साथ यह शिक्षा और रोजगार के आधुनिक अवसरों का लाभ उठाते हैं और अन्य क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। मुसलमान दर्जी हिन्दू दर्जियों से निकले हैं। इनके रीती-रिवाज मुसलमानों जैसे होते हैं। मुस्लिम समुदाय में दर्जी जाति को इदरीशी (हजरत इदरीस के नाम पर) के नाम से भी जाना जाता है। मुसलमान भी सिलाई करने का काम करते हैं लेकिन वे दर्जी नहीं कहलाते। 

दर्जी जाति की उत्पत्ति :-

वर्ण व्यवस्था के आधार पर दर्जी नाम की कोई जाति नहीं है लेकिन व्यवसाय के आधार पर इनका नाम दर्जी पड़ा है। कपड़े सीने का काम करता है उसे दर्जी कहते हैं। आज के समय में इस व्यवसाय को हिन्दु व मुलसमान दोनों करने लगे हैं। राजस्थान में रहने वाले दर्जी अपने आप को राजपूत से उत्पत्ति का दावा करते हैं और लोकनायक श्री पीपा जी महाराज का वंशज बताते हैं। जो कि कुछ समय बाद भारत में भक्ति आंदोलन में संत बन गए। 

भारत में रहने वाले दर्जी टैंक, काकुस्त, रोहिल्ला, जूना गुजराती, दामोदर वंशी, महाराणा, महापात्र आदि उपनामो का प्रयोग करते हैं। और मुस्लमान दर्जी बाइबिल और कुरान में आये हजरत इदरीस के वंशज होने का दावा करते हैं। मुसलमानों के अनुसार, हजरत इदरीस पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने सिलाई का काम सीखा। हिन्दुओं में दर्जी समाज दो उप जातियों में बाँटा गया है। पहली नामदेव वंशी तथा दूसरी पीपा वंशी दर्जी कहलाते हैं।

नामदेव वंशी :-

डॉ कैलाशनाथ व्यास व देवेंद्रसिंह गहलोत द्वारा रचित पुस्तक ‘राजस्थान की जातियों का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन’ के अनुसार नामदेव वंशी दर्जी नामदेव के अनुयायी हैं। नामदेव वंशी छीपा दर्जी भी कहलाते हैं। नामदेव टाक राजपूत वंश के एक साधु थे। परसराम अवतार के समय नामदेव के पूर्वजों ने परसरामजी के डर के मारे राजपूती छोड़ रंगत का काम आरम्भ किया तभी से यह छींपा दर्जी के नाम से विख्यात हैं। इस समाज में अनेक व्यक्ति अभी भी छपाई का काम करते हैं। बाद में नामदेवजी बड़े भगवत भक्त हुए उन्होंने औरंगजेब बादशाह को प्रभावित कर अनेक इच्छुक व्यक्तियों को कंठी बाँधकर मुसलमान होने से बचा लिया और इनको अपना चेला बना लिया और उनको कपड़े सीने का काम सिखाया। इनके मुख्य चेले टीकम और गोचंद हुए। टीकम के चेले टाक और गोचंद के गोले कहलाते हैं। इनका मुख्य पेशा कपड़ा सीने का है। गाँवों में खेती भी करते हैं। मर्द पगड़ी में सुई अवश्य रखते हैं। औरतें पाँव में नेवरी वगैरह बजने वाला गहना नहीं पहनती है।

पीपा वंशी :-

पीपावंशी दर्जी मारू कहलाते हैं। पीपाजी खींची गागरोनगढ़ के राजा अचलाजी के भाई थे। उन्होंने राज्य छोड़कर भक्ति धारण की थी और गुजारे के वास्ते कपड़े सीने लगे। जो उनका चेला होता था उनको भी यही काम करना बताते थे और कहते थे कि इस उद्यम में पाप नहीं है। मेहनत भी कम है। इनके वंशज पीपावंशी दर्जी कहलाते हैं।

पीपा वंश के गोत्र :-

बांकलिया

कटारा

तीपर

दर्जी जाति का पेशा:-

ऐतिहासिक रूप से, दर्जी समुदाय ने भारत के कपड़ा उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके पास कटाई, सिलाई, कढ़ाई और डिजाइनिंग सहित परिधान उत्पादन के विभिन्न पहलुओं में विशेषज्ञता है। दर्जी समुदाय के कई सदस्यों ने पारंपरिक रूप से कुशल दर्जी के रूप में काम किया है, और देश की समृद्ध कपड़ा विरासत में योगदान दिया है।

दर्जी जाति की सामाजिक स्थिति:-

भारतीय जाति व्यवस्था में, दर्जी समुदाय को आमतौर पर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का हिस्सा माना जाता है। ओबीसी को सामाजिक और शैक्षिक रूप से वंचित समूहों के रूप में मान्यता दी जाती है, और उनके कल्याण और उत्थान को बढ़ावा देने के लिए उन्हें शिक्षा और रोजगार के अवसरों में कुछ लाभ और आरक्षण प्रदान किए जाते हैं।

दर्जी जाति की सांस्कृतिक प्रथाएँ और परंपराएँ:-

दर्जी समाज की अपनी सांस्कृतिक प्रथाएँ, रीति-रिवाज और परंपराएँ हैं। वे त्योहार मनाते हैं, अनुष्ठानों का पालन करते हैं और सामुदायिक सभाएँ करते हैं जो सामाजिक एकता को बढ़ावा देते हैं। संगीत, नृत्य और पारंपरिक शिल्प जैसी सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी उनकी विरासत का एक अभिन्न अंग हैं।

दर्जी जाति का सामुदायिक संगठन:-

दर्जी समाज ने क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर विभिन्न सामुदायिक संगठनों की स्थापना की है। ये संगठन समुदाय के कल्याण और विकास की दिशा में काम करते हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, कौशल विकास और उद्यमिता जैसे क्षेत्रों में सहायता प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, ये संगठन समुदाय के सदस्यों के लिए जुड़ने, अनुभव साझा करने और सामान्य मुद्दों को संबोधित करने के लिए मंच के रूप में कार्य करते हैं।

कुलदेवी:-

उय समाज वैष्णव है। ये चतुर्भुजजी को पूजते हैं। कुछ शैव धर्मी और देवी उपासक भी हैं जो माँस मदिरा खाते-पीते हैं। रीति-रिवाज़ अक्सर छीपा दर्जियों से मिलता जुलता है। 

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