चौहान वंश का इतिहास, शाखायें, ठिकाने व कुलदेवी | Chauhan Rajput Vansh History in Hindi |Kuldevi

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चौहान वंश का परिचय 

Chauhan Vansh in Hindi: चौहान वंश, जिसे चौहान राजवंश के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रमुख राजपूत वंश है जिसने उत्तरी और मध्य भारत के कुछ हिस्सों पर चार शताब्दियों तक शासन किया। अपने सैन्य कौशल के लिए प्रसिद्ध इस शक्तिशाली राजवंश ने भारतीय इतिहास और संस्कृति पर स्थायी प्रभाव छोड़ा। राजपूतों के 36 राजवंश में चौहानों (Chauhan dynasty) का भारतीय इतिहास में विशेष महत्त्व रहा है | इन्होंने 7वीं शताब्दी से लेकर देश की स्वतंत्रता तक राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों पर शासन किया है तथा दिल्ली पर शासन कर सम्राट का पद भी प्राप्त किया |

चौहान वंश की उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई जब चम्मन राजपूत, जो अपनी बहादुरी और युद्ध कौशल के लिए जाने जाते थे, ने राजस्थान के कुछ हिस्सों पर अपना शासन स्थापित किया। चौहान वंश ने अपने प्रभाव का विस्तार किया, वर्तमान उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा में क्षेत्रों पर अपना अधिकार स्थापित किया।

चौहान वंश कई शाखाओं में विभाजित था, जिनमें शाकंभरी चौहान, चालुक्य चौहान और अजमेर चौहान शामिल थे। चौहान वंश के सबसे प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज चौहान थे, जिन्होंने 12वीं शताब्दी के अंत में दिल्ली और अजमेर पर शासन किया था।

पृथ्वीराज चौहान को व्यापक रूप से भारतीय इतिहास के सबसे महान योद्धाओं में से एक माना जाता है। उन्हें उनकी बहादुरी, शिष्टता और तुर्की शासक मुहम्मद गोरी के खिलाफ उनकी पौराणिक लड़ाइयों के लिए याद किया जाता है, जिन्होंने उत्तरी भारत पर अपना शासन स्थापित करने की मांग की थी। मुहम्मद गोरी के खिलाफ पृथ्वीराज चौहान की लड़ाई जमकर लड़ी गई, प्रत्येक लड़ाई के परिणामस्वरूप दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ।

चौहान वंश कला और वास्तुकला में अपने योगदान के लिए जाना जाता था। चौहान शासक कला और संस्कृति के महान संरक्षक थे, और उन्होंने अपने क्षेत्रों में कई किलों और मंदिरों का निर्माण किया। चौहान वास्तुकला के कुछ उल्लेखनीय उदाहरणों में अजमेर में तारागढ़ किला, उत्तर प्रदेश में कालिंजर किला और चित्तौड़गढ़ में कीर्तिस्तंभ (विजय मीनार) शामिल हैं।

13वीं शताब्दी में मुस्लिम आक्रमणकारियों के हाथों कई हार के बाद चौहान वंश का पतन हो गया। अंतिम चौहान शासक, पृथ्वीराज चौहान, 1192 ईस्वी में तराइन की दूसरी लड़ाई में पराजित हुआ और मारा गया। चौहान वंश के पतन के साथ, उत्तर भारत में कई राजपूत वंशों ने भी अपनी शक्ति और प्रभाव खो दिया।

आज, चौहान समुदाय राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में महत्वपूर्ण उपस्थिति के साथ भारत के विभिन्न हिस्सों में फैला हुआ है। चौहान समुदाय ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखा है और भारतीय समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

उत्पत्ति :-

चौहानों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विभिन्न उल्लेख मिलते हैं | भविष्य पुराण के अनुसार अशोक के पुत्रों के समय आबू पर कन्नौज के ब्राह्मणों द्वारा ब्रह्महोम हुआ और उसमें वेद मन्त्रों के प्रभाव से चार क्षत्रिय उत्पन्न हुए | इनमें चौहान भी एक था |

        चन्द्रवरदाई भी पृथ्वीराजरासो में चौहानों की उत्पत्ति आबू के यज्ञ से  बताता है | विदेशी विद्वान कुक यज्ञ से उत्पन्न होने का तात्पर्य लेते है कि यज्ञ से विदेशियों को शुद्ध कर हिन्दू बनाया | अतः ये विदेशी थे | प्राचीनकाल में भारतीय संस्कृति के अनुसार यज्ञ किये जाते थे और यज्ञ के रक्षक क्षत्रिय नियत किये जाते थे | अतः संभव लगता है आबू पर्वत पर जो अशोक के पुत्रों के समय यज्ञ किया गया उनमें चार क्षत्रिय वीरों की रक्षा के लिए तैनात किया गया ताकि यज्ञ में विघ्न न हो या वैदिक धर्म के अनुसार में चलने वाले क्षत्रिय (व्रात्य) या बौद्धधर्म मानने वाले चार क्षत्रियों को यज्ञ द्वारा वैदिकधर्म का संकल्प कराया होगा | इन क्षत्रियों के वंशज आगे चलकर उन्हीं के नाम से चौहान, परमार, प्रतिहार, चालुक्य हुए | कुक आदि का विचार है कि विदेशी लोगों को शुद्ध किया गया, आधारहीन है | अतः इस विचार को स्वीकार नहीं किया जा सकता |

           सूर्यवंश के उपवंश चौहानवंश में राजा विजयसिंह हुए डॉ. परमेश्वर सोलंकी का हरपालीया कीर्तिस्तम्भ का मूल शिलालेख सम्बन्धी लेख (मरू भर्ती पिलानी) अचलेश्वर शिलालेख (वि. 1377) चौहान आसराज के प्रसंग में लिखा है –

राघर्यथा वंश करोहिवंशे सूर्यस्यशूरोभूतिमंडले——ग्रे |
तथा बभूवत्र पराक्रमेणा स्वानामसिद्ध: प्रभुरामसराजः || 16 ||

अर्थात पृथ्वीतल पर जिस प्रकार पहले सूर्यवंश में पराक्रमी (राजा) रघु हुआ, उसी प्रकार यहाँ पर (इस वंश) में अपने पराक्रम से प्रसिद्ध कीर्तिवाला आसराज (नामक) राजा हुआ |

       इन शिलालेखों व साहित्य से मालूम होता है कि चौहान सूर्यवंशी रघु के कुल में थे | हमीर महाकाव्य, हमीर महाकाव्य सर्ग | अजमेर के शिलालेख आदि भी चौहानों को सूर्यवंशी ही सिद्ध करते है | (अ) राजपूताने चौहानों का इतिहास प्रथम भाग- ओझा पृ. 64  (ब) हिन्दू भारत का उत्कर्ष सी. वी. वैद्य पृ. 147)  इन आधारों पर ख्याति प्राप्त विद्वान पं. गौरीशंकर ओझा, सी. वी. वैद्य आदि ने चौहानों को सूर्यवंशी क्षत्रिय सिद्ध किया है | (हिन्दू भारत का उत्कर्ष पृ. 140) अतः कहा जा सकता है कि चौहान सूर्यवंशी थे |

चौहानो का प्राचीन इतिहास 

सूर्यवंशी वीर पुरुष ‘चौहान’ संभवतः राम का वंशज था | संभवतः सम्राट अशोक के बाद उनके वंशजों के समय आबू पर्वत पर कान्यकुब्ज (कन्नौज) के ब्राह्मणों ने होम किया | माउण्ट आबू के इस होम की रक्षा करने में परमार, चालुक्य और प्रतिहार के साथ चौहान भी था | इस चौहान के वंशज अपने ख्याति प्राप्त पूर्वज चौहान के नाम पर चौहान ही कहलाये |    

चौहानों के राज्य :-

1. अजमेर राज्य :-

पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र अजयराज हुए | उन्होंने उज्जैन पर आक्रमण कर मालवा के परमार शासक नरवर्मन को पराजित किया | अपनी सुरक्षा के लिए उन्होनें 1113 ई.वि. 1170 के लगभग अजमेरु-अजमेर के स्थापना की

सांभर-अजमेर राजवंश :-

  1. वासुदेव
  2. सामंत
  3. नरदेव
  4. जयराज 
  5. विग्रहराज 
  6. चन्द्रराज (प्रथम)
  7. गोपेन्द्रराज (प्रथम)
  8. दुर्लभराज | 
  9. गोपेन्द्रराज (गुहक)
  10. चन्द्रराज (चन्दनराज) | | 
  11. गुहक | | 
  12. चन्द्रराज | | |  
  13. वाक्पतिराज (प्रथम)
  14. सिंहराज 
  15. सिंहराज (950)
  16. विग्रहराज द्वितीय (973)
  17. दुर्लभराज | | (973-997)
  18. गोविन्दराज | | | 
  19. वाक्पतिराज | | 
  20. वीर्यराज 
  21. चामुंडराज
  22. सिंहट 
  23. दुर्लभराज | | | (1075-1080)
  24. विग्रहराज | | | (1080-1105)
  25. पृथ्वीराज | (1105-1113)
  26. अजयराज (1113-1133)
  27. अर्णोराज (1133-1151)
  28. विग्रहदेव (विसलदेव)(1152-1163)
  29. अपर गांगये (1163-1166)
  30. पृथ्वीराज | | (1167-1169)
  31. सोमेश्वर (1170-1177)
  32. पृथ्वीराज | | | (1179-1192)
  33. गोविन्दराज (1192-)
  34. हरिराज (1192-1194)

2. रणथम्भौर राज्य :-

पृथ्वीराज के पुत्र गोविन्दराज ने रणथम्भौर दुर्ग को हस्तगत किया |

रणथंभौर राजवंश :-

  1. गोविन्दराज (1194 ई.)
  2. वाग्भट्ट (1226 ई.)
  3. वाल्हड़ (1215 ई.)
  4. जैत्रसिंह 
  5. प्रह्लादन 
  6. वीरनारायण 
  7. हम्मीर (1282-1303 ई.)

3. नाडौल राज्य :-

साम्भर के चौहान वाक्पतिराज (प्रथम) के बड़े पुत्र सिंहराज पिता के उत्तराधिकारी हुए और छोटे पुत्र लाखन (लक्ष्मण) ने नाडौल (जिला पाली) पर अधिकार कर अलग राज्य की स्थापना की | जिसके समय के दो शिलालेख 1014 वि. व 1036 वि. के नाडौल में मिले है | (चौहान कुल कल्ष द्रुम पृ. ४८ (मंगलसिंह देवड़ा के सौजन्य से) लाखन के यों तो 24 पुत्र माने गए है | कहा जाता है उनमे 24 शाखायें उत्पन्न हुई पर इनका कोई भी वृत्तांत उपलब्ध नहीं है | लाखन के पुत्रों में शिलालेखों तथा ख्यातों में चार नाम मिलते हैं :-शोभित, विग्रहपाल, अश्वराज (आसराज, अधिराज, आसल) तथा जैता |

नाडौल राजवंश :-

  1. लाखन (लक्ष्मण) (943-982)
  2. बलिराज 
  3. महेन्द्र 
  4. अहिल
  5. अणिहल 
  6. बालाप्रसाद 
  7. जेन्द्रराज (1067 ई.)
  8. पृथ्वीपाल 
  9. जोजलदेव (1090 ई.)
  10. आसराज (1110-1115 ई.)
  11. रत्नपाल (1119 ई.)
  12. कटुदेव (कटुकराज) (1115 ई.)
  13. रायपाल (1127-1145 ई.)
  14. आल्हण (1152-1163 ई.)
  15. कल्हण (1163-1193 ई.)
  16. जयतसिंह | | (1193-1197 ई.)
  17. सांमतसिंह (1197-1202 ई.)

4. जालौर राज्य :-

जालौर भी चौहानों का मुख्य राज्य था | वि. सं. 1238 ई. 1281 नाडौल के अश्वराज के पौत्र और आल्हण के पुत्र कीर्तिपाल परमारों से जालौर छीन कर स्वयं राजा बन बैठे | जालौर का प्राचीन नाम जाबालीपुर व किले का नाम स्वर्णगिरि मिलता है | यहाँ से निकलने वाले चौहान ‘सोनगिरा’ नाम से विख्यात हुए |

जालौर राजवंश 

  1. कीर्तिपाल (कीतू) (1163-1182 ई.)
  2. समरसिंह (1182-1205)
  3. उदयसिंह (1205-1557)
  4. चाचिगदेव (1257-1282)
  5. सामंतसिंह (1282-1296)
  6. कान्हड़देव (1296-1314)

5. चन्दवाड़-राज्य :-

उत्तर प्रदेश में आगरा के पास चन्दवाड़ हैं | वि. सं. 1251 ई. 1194  जयचन्द्र गहड़वाल मोहम्मद गोरी से इसी स्थान पर पराजित हुए थे | चन्दवाड़ से सम्बन्धित कवि श्रीधर का वि. 1230 का लिखा हुआ ग्रंथ ‘भागविसयत कहा’ है | परन्तु इसमें चन्दवाड़ पर शासन करने वाले किसी राज्य का नाम नहीं है | कवि लक्ष्मण ने वि. सं. 1313 में अण बयरयणपईव (अणव्रत-रत्न-प्रदीप) की रचना यहीं की थी | (चन्दवाड का चौहान राज्य डॉ. दशरथ शर्मा का अभिभाषण-बरदा जनवरी 1964 पृ. 84) लक्ष्मण ने चौहान राजा भारतपाल के लिए लिखा कि भरतपाल लक्ष्मण के समय के शासक आहवमल्ल चौहान से तीन पीढ़ी पूर्व था | (भरतपाल-जाहड़-बल्लास-आहवमल्ल) इससे जाना जा सकता है कि  प्रति पीढ़ी 20 शासन काल के हिसाब से 60 वर्ष पीछे ले जाने पर 1313-60=1253 वि. होता हैं | इस समय (1253 वि. ) में भरतपाल यहाँ शासन कर रहा था | संभव है इससे पूर्व भी यहाँ चौहानों का राज्य रहा होगा | 

6. भड़ौंच (गुजरात) राज्य :-

भड़ौंच (गुजरात) क्षेत्र के हांसोट गांव से चौहान शासक भर्तवढ़ढ (भर्तवद्ध) द्वितीय का दानपात्र मिला है जो वि. सं. 813 का हैं | इस दानपात्र से पाया जाता है कि भर्तवढ़ढ द्वितीय नागावलोक का सामंत था | इससे जाना जा सकता है कि 813 वि. में चौहानों का भड़ौच के आस पास राज्य था |

7. धोलपुर (धवलपुरी) राज्य :-

राजस्थान में विक्रम की 9 वीं शताब्दी में धोलपुर के पास चौहान शासन करते थे |

8. प्रतापगढ़ (चित्तौड़) राज्य :-

वर्तमान प्रतापगढ़ क्षेत्र पर भी वि. की 11 वीं शताब्दी की प्रथम चरण में चौहानों का राज्य था | यह चौहान प्रतिहार भोजदेव के सामंत थे |

9. डबोक (उदयपुर) राज्य :-

वर्तमान डबोक (उदयपुर-राज.) क्षेत्र में 1300 वि. के लगभग का चौहान का एक शिलालेख  | जिससे चौहानों के कई नामों की जानकारी मिलती है | सबसे पहले महेन्द्रपाल, सुर्वगपाल, मंथनसिंह, क्षात्रवर्म, दुर्लभराज, भूत्तालरक्षी, समरसिंह, देवार्णोराज व सुलक्षणपाल और छाहड़ का समय 1300 वि. है अतः महेन्द्रपाल का समय 9 पुश्त पहले 1200 वि. के लगभग पड़ता है अतः यह वंश नाडौल के लक्ष्मण के पुत्र विग्रहपाल के पुत्र महेन्द्रपाल या लक्ष्मण के पुत्र आसराज (अधिरज) के पुत्र महेंद्र का वंश होना चाहिए |

10. बूंदी राज्य :-

हाड़ा चौहानों की प्रसिद्ध खांप रही है  लक्ष्मण नाडौल के पुत्र (अश्वपाल, अधिराज) के पुत्र माणकराव हुए | माणक के बाद क्रमशः सम्भारन (भणुवर्धन) जैतराव, अनंगराव, कुंतसी, विजैयपाल व हरराज (हाड़ा) के वंशज हाड़ा कहलाते हैं |

बूंदी राजवंश :-

  1. देवाजी हाड़ा (1342-1343)
  2. समरसिंह (1343-1346)
  3. नरपाल (1346-1370)
  4. हम्मीर (1370-1403)
  5. वीरसिंह (1403-1413)
  6. बैरीशाल (1413-1459)
  7. भाणदेव (1459-1503)
  8. नारायणदास (1503-1527)
  9. सूरजमल (1527-1531)
  10. सूरतान (1531-1554)
  11. सूर्जन (1554-1585)
  12. भोज (1585-1608)
  13. रतनसिंह (1608-1631)
  14. छत्रशाल (1631-1658)
  15. भावसिंह (1658-1681)
  16. अनिरूद्धसिंह (1681-1695)
  17. बुद्धसिंह (1695-1729)
  18. दलेलसिंह (1729-1748)
  19. उम्मेदसिंह (1748-1771)
  20. अजीतसिंह (1771-1773)
  21. विष्णुसिंह (1773-1821)
  22. रामसिंह (1821-1889)
  23. रघुवीरसिंह (1889-1927)
  24. ईश्वरसिंह (1927-1945)
  25. बहादुरसिंह (1945)

11. कोटा राज्य :-

बूंदी राव समरसिंह के पुत्र जैत्रसिंह ने भीलों से कोटा का क्षेत्र छीना | कर्नल टॉड ने लिखा है कि कोटिया नामक भीलों की एक जाति के नाम से कोटा  नामकरण हुआ | (टॉड राजस्थान अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ. 737) जैत्रसिंह के समय से कोटा का राज्य बूंदी राव रतनसुनह के पुत्र माधोसिंह ने शौर्यपूर्ण कार्य किये | अतः शाहजहां ने माधोसिंह को वि. सं. 1688 में कोटा का स्वतंत्र राज्य दिया | तब से कोटा राज्य बूंदी राज्य से अलग हुआ | शाहजहां ने इसी समय माधोसिंह को ढाई हजार सात व डेढ़ हजार सवार का मनसब भी प्रदान किया |

कोटा राजवंश :-

  1. माधोसिंह (1631-1649)
  2. मुकंदसिंह (1649-1658)
  3. जगतसिंह (1658-1683)
  4. प्रेमसिंह (कोयला)(1683-1684)
  5. किशोरसिंह | (1684-1696)
  6. रामसिंह (1696-1707)
  7. भीमसिंह (1707-1720)
  8. अर्जुनसिंह (1727-1756)
  9. दुर्जनशाल (1727-1756)
  10. अजीतसिंह (1756-1758)
  11. शत्रुशाल (1758-1764)
  12. गुमानसिंह (1764-1771)
  13. उम्मेदसिंह | 1771-1819)
  14. किशोरसिंह | | (1819-1827)
  15. रामसिंह | | (1827-1865)
  16. शत्रुशाल | | (1865-1888)
  17. उम्मेदसिंह | | (1888-1940)
  18. भीमसिंह (1940- )   

12. गागरोण राज्य :-

गागरोण (कोटा) खींची चौहानों का राज्य था | खींचियों का स्थान जायल जिला (नागौर) रहा है | लक्ष्मण नाडौल के पुत्र आसराज (अश्वपाल, अधिराज) के पुत्र माणिकराव हुए | माणिकराव के वंशज खींची चौहान कहलाये |   

               चौहान शब्द के लिए प्राचीन अभिलेखों में चाहमान शब्द मिलता है | पृथ्वीराज विजय में चौहान शब्द के लिए ‘चापमान’ या ‘चापहरि’ शब्द का प्रयोग हुआ है | इसका अर्थ धनुर्धर लिया जाता है | चारण अनुश्रुतियों के अनुसार अग्निकुण्ड से उत्पन्न चार कुलों में से एक है और इस कारण अग्निवंशी हैं | ‘हम्मीर महाकाव्य’ और ‘पृथ्वीराज विजय’ के अनुसार चौहान, चाहमान नामक पुरुष के वंशज हैं और सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं | आठवीं शताब्दी के प्रारम्भ में चाहमान वंश का राज्य शाकम्भरी (साँभर) था | इनके अन्य राज्य नाडोल, जालोर, धोलपुर, प्रतापगढ़, रणथम्भौर आदि थे | चौहान अजयराज ने अजयमेरु (अजमेर) बसाया था | इस वंश का सबसे प्रतापी राजा पृथ्वीराज तृतीय था जो उत्तरी भारत के अन्तिम हिन्दू सम्राट के नाम से प्रसिद्ध है | चौहानों की 24 शाखाएँ हाडा, देवड़ा, निर्वाण, बालिया, भदौरिया, निकुम्भा, बंकट, खीची, मोहिल, सांचोरा, जोजा, पावेचा, भादरेचा, बोडा, मालाणी, बालेचा, सोनगरा आदि हैं | हाडा चौहानों का राज्य बून्दी व कोटा में तथा देवड़ा चौहानों का राज्य सिरोही में था |

चौहानों की खाँपें और उनके ठिकाने 

1. चौहान :-

सूर्यवंशी चौहान नामक वीर पुरुष के वंशज चौहान कहलाते हैं | अजमेर, नाडौल, रणथम्भौर आदि चौहानों के प्रसिद्ध राज्य थे | बीकानेर रियासत में घांघू, ददरेवा प्रसिद्ध ठिकाने थे |

2. चाहिल :-

चौहान वंश में अरिमुनि, मुनि, मानिक व जैपाल चार भाई हुए | अरिमुनि के वंशज राठ के चौहान हुए | मानक (माणिक्य) के वंशज शाकम्भरी (सांभर) रहे | मुनि के वंशजों में कान्ह हुआ | कान्ह के पुत्र अजरा के वंशज चाहिल से चाहिलों की उत्पत्ति हुई | (क्यामखां रासा छन्द सं. 108) रिणी (वर्तमान तारानगर) के आस पास के क्षेत्रों में 12 वीं, 13वीं शताब्दी में चाहिल शासन करते थे और यह क्षेत्र चाहिलवाड़ा कहलाता था | आजकल प्रायः चाहिल मुसलमान हैं | गूगामेड़ी (गंगानगर) के पूजारे चाहिल मुसलमान है |

3. मोहिल :-

कन्य चौहान के पुत्र बच्छराज के किसी वंशज मोहिल के वंशज मोहिल चौहान कहलाये | (क्यामखां रासा छन्द सं. 108) मोहिल ने बगडियों से छापर-दोणपुर जीता | इन्होनें 13वीं शदी से लेकर 16वीं शदी विक्रमी के प्रारम्भ तक शासन किया | बीका व  बीदा ने मोहिलों का राज्य समाप्त किया | बाद  प्रायः मोहिल चौहान मुसलमान बन गए | प्रसिद्ध कोडमदे माणिक्यराव मोहिल की पुत्री थी |

4. जोड़ चौहान :-

का के पुत्र सिध के किसी वंशज के जोड़ले पुत्रों से जोड़ चौहानों की उत्पत्ति हुई | (क्यामखां रासा छन्द सं. 108) वर्तमान झुंझुनूं व नरहड़ इलाके पर विक्रम की 11वीं शदी से 16वीं शदी के प्रथम दशक तक जोड़ चौहान का अधिकार रहा | 16वीं शदी के प्रारम्भ में कायमखानियों ने जोड़ चौहानों से झुंझुनूं का इलाका छीन लिया तथा नरहड़ से पठानों का इलाका छीन लिया | चौहानों की यह खांप अब लोप हो चुकी हैं |

5. पूर्बिया चौहान :-

मैनपुरी (उ.प्र.) के पास जो चौहान राजस्थान में आये वे यहाँ पूर्बिया चौहान कहलाये क्योंकि मैनपुरी राजस्थान के पूर्व में है | मैनपुरी के पास से चन्दवाड़ से चन्दभान चौहान अपने चार हजार वीरों के साथ खानवा युद्ध वि. 1584 में राणा सांगा के पक्ष में आये तथा मैनपुरी के पास स्थित राजौर स्थान के माणिकचन्द चौहान भी खानवा युद्ध में राणा सांगा के पक्ष में लड़े | इन दोनों के वंशज पूर्बिया चौहान कहलाते हैं |

6. सांभरिया चौहान :-

सांभर क्षेत्र से निकलने के कारण सांभरिया चौहान कहलाये |

7. भदौरिया चौहान :-

वीर विनाद में श्यामलदासजी ने लिखा है कि किसी पूर्णराज चौहान ने भदोर क्षेत्र पर अधिकार किया | अतः पूर्णराज चौहान के वंशज भदौरिया कहलाये | इटावा (जिला आगरा) क्षेत्र व कुछ भाग जिला झुंझुनूं के कुछ भाग पर भदौरियों का राज्य रहा था |

8. रायजादे चौहान :-

राजपूत वंशावली में ईश्वरसिंह मढाढ़ ने चौहानों की खांपों में रायजादे चौहान भी लिखे हैं | उन्होंने लिखा है कि विग्रहराज चतुर्थ के पुत्र गागेय के बाद अजमेर की गद्दी पर बैठने वाले राजा के प्रति विद्रोह हुआ | नागार्जुन चौहान बचकर फतहपुरा (यु.पी.) की तरफ चला गया | वहीं उसने अपना नाम रायमन सहदेव रखा | उसके वंश रायजादे चौहान कहलाये | अब यह बांदा, फतहपुर, इलाहबाद आदि जिलों में रहते हैं | (राजपूत वंशावली पृ. 157)

9. चाहड़दे चौहान :-

नीमराणा के चौहानों से निकास बताया जाता है परन्तु चाहड़दे सोमेश्वर का पुत्र और पृथ्वीराज चौहान का भाई था | (टॉडकृत राजस्थान अनु. केशवकुमार ठाकुर पृ.429) अतः चाहड़देव की उत्पत्ति उपर्युक्त चाहड़देव से होनी चाहिए | ये राजस्थान के अलवर क्षेत्र व हरियाना में फैले हुए हैं |

10. नाडौललिया :-

नाडौल के निकास के कारण नाडौलिया चौहान कहलाये | लाखन नाडौल के 24 पुत्रों से चौहानों की 24 खांपों के निकास की बात कही जाती है पर यह मत इतिहास की कसौटी पर सही नहीं उतरता | पर हाँ यह सत्य है कि लाखन के वंशधरों से ही चौहानों की अधिकतर खांपों का निकास हुआ है |

11. सोनगरा चौहान :-

नाडौल राज्य के संथापक लक्ष्मण के बाद क्रमशः बलिराज, विग्रहराज, महेन्द्रराज, अहिल, अणहिल, जेन्द्रराज, आसराज व अल्हण हुए | अल्हण के पुत्र कीर्तिपाल (कीतू) ने जाबालीपुर (जालौर) विजय किया | जाबालीपुर को स्वर्णगिरि भी कहा जाता था | इस स्वर्णगिरि (जालौर) के चौहान कीतू के वंशज स्वर्णगिरि (सोनगरा) चौहान कहलाये | जालौर इनका मुख्य राज्य था | सोनगरे चौहान बड़े वीर हुए हैं | इनमें कान्हड़देव व उनके पुत्र वीरमदे इतिहास में प्रसिद्ध हैं | अखेराज सोनगरा ने सुमेल के युद्ध में एक सेनापति के रूप में अद्भुत वीरता दिखाते हुए वीरगति प्राप्त की |

12. अखैराज सोनगरा :-

जालौर के प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव सांवतसिंह, सोनगरा के पुत्र थे | इनके छोटे भाई मालदेव थे | मालदेव के बाद क्रमशः बलवीर, राणा, लोला, सत्ता, खींवा, रणधीर व  अखैराज हुए | (नैणसी भाग 1 पृ. 205-206) इसी अखैराज के वंशज अखैराज सोनगरा कहलाते है | अखैराज अपने समय के बड़े वीर हुए | ये पाली ठिकाने के अधिपति थे | उनकी पुत्री जयन्ती देवी राणा उदयसिंह की ब्याही थी | जिनके गर्भ से महाराणा प्रताप जैसे रणभट्ट उत्पन्न हुए |

सोनगरों की निम्न खांपें हैं :-                                                                                                                      

1. बोडा :-

कीर्तिपाल (जालौर) के बाद क्रमशः समरसिंह, भाखरसी व बोडा हुए | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 245) इसी बोडा के वंशज बोड़ा सोनगरा हैं | जालौर जिले में सेणा परगना इनके अधिकार में था | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 245)

2. रूपसिंहोत :-

रूपसिंह सोनगरा के वंशज | राजस्थान के पाली जिले में हैं |

3. मानसिंहोत :-

अखैराज सोनगरा के पुत्र मानसिंह के वंशज पाली जिले में हैं |

4. भानसिंहोत :-

अखैराज सोनगरा के पुत्र भानसिंह के वंशज | पाली जिले में हैं | बीकानेर, जोधपुरा आदि इलाकों  सोनगरा चौहान निवास करते हैं |

5. चांदण :-

सोनगरा चौहानों की शाखा है | शीशेदा का राणा हम्मीर अरिसिंह भी चंदाना चौहान राणी का पुत्र था |

6. हापड़ :-

कीर्तिपाल (कीतू) जालौर के बाद क्रमशः समरसिंह उदयसिंह, चाचकदेव व सामन्तसिंह हुए | सामन्तसिंह के बड़े पुत्र कान्हड़देव जालौर के शासक हुए | छोटे पुत्र हापड़ सोनगरा कहलाये |

7. बाघोड़ा :-

कान्हड़दे (जालौर) के पुत्र वीरमदे के भतीजे बाघ के वंशज बाघोड़ा सोनगरा कहलाये | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 84) बीकानेर के पास नाल गांव में बघोड सोनगरा हैं | (जीवराजसिंह भाति के सौजन्य से )

1.) भीला बघोड़ :-

वीरमदे के भतीजे बाघ के पुत्र भीला के वंशज | (बहादुरसिंह बीदासर ने भीला को वीरमदे का भतीजा लिखा है परन्तु भीला बघोड़ है | अतः वह बाघा का पुत्र होना चाहिए | वीरम का भतीजा नहीं |)

2.) रोहेचा बाघोड़ा :-

रोह गांव में रहने के कारण बाघ के वंशज रोहेचा बाघोड़ा कहलाये |

8. बालेचा :-

सोनगिरों की शाखा है | किसी बाला नामक के वंशज बालेचा हो सकते है | टोडा (मालपुरा) में पहले इनका शासन था | (राजपूत वंशावली पृ. 155 )

9. अबसी :-

कीर्तिपाल जालौर के पुत्र अबसी की सन्तान अबसी कहलाये | (नैणसी री ख्यात भाग पृ. 169)

13. मादेचा :-

वीर विनोद में किसी लालसिंह नामक चौहान के मद्रदेश में जाने के कारण वंशजों को माद्रचा लिखा है | (वीर विनोद भाग 2 पृ. 103) क्षत्रिय जाति सूचि में माणकराज के वंशज लालसिंह के वंशधरों को मद्रदेश के कारण माद्रेचा लिखा है | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 1) इनका देसूरी में राज्य था | राणा रायमल का चितौड़ के समय देसूरी में राज्य था | राणा रायमल चितौड़ के समय सोलंकियों ने इनका राज्य छीन लिया | जिला उदयपुर में मादड़ी गांव है | उदयपुर राज्य में ही देसूरी में इनका राज्य था | नालसिंह कौन थे ? कब मद्र गए ? कोई साक्ष्य नहीं है | मालूम होता है कि मादड़ी गांव में रहने के कारण मादडेचा (माद्रेचा) चौहान कहलाये | जैसे महेवा स्थान के नाम से महेचा राठौड़ों की उत्पत्ति हुई | बहुत सम्भव है ये माद्रेचा लाखन नाडौल के वंशज हो |

14. नार चौहान :-

बहीभाटों के अनुसार लाखण के वंशज हैं | मारवाड़ में है | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 94)

15. घूंघेट  (धंधेर) :-

माणकराज सांथर के वंशज किसी धूधेट चौहान के वंशज बताये जाते है | (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 82) कोटा जिले में शाहबाद दुर्ग पर कभी इनका अधिकार था | (टॉड कृत राज. अनु. केशवकुमार पृ. 724) वि. सं. 1715 के धर्मात के युद्ध में राजा इन्द्रमणि धंधेर औरंगजेब के पक्ष में लड़ा था |

16. सूरा और गोयलवाल :-

टॉड के चौहानों की 24 खांपों में सूरा और गोयलवाल भी अंकित की है | परन्तु इनकी उत्पत्ति का पता नहीं लगता | क्यामखां रासा में लिखा है :-

मनिराई के जानियो, भयो राइ भूपाल |
कहकलंग ताके भये सूरा गोत गुवाल ||72||

इससे अनुमान होता है कि कहकलंग चौहान (राज) के वंशजों से इन दोनों खांपों का निकास हुआ है |

17. मालानी :-

संभवतः मालानी क्षेत्र पर शासन करने के कारण ये मालानी चौहान कहलाये | लाखन नाडौल के वंशज होना समीचीन है |

18. पावेचा :-

संभवतः लक्ष्मण नाडौल के वंशज है जैसलमेर क्षेत्र में है |

19. देवड़ा :

देवड़ा वंश>>

अन्य खांपें :-

विभिन्न पुस्तकों में  अन्य खापों के नाम मिलते है पर न तो उनकी उत्पत्ति का पता चलता है और न ही वर्तमान में उनके निवास स्थान का | फिर भी जानकारी क लिए उन खांपों को यहाँ अंकित किया जाता है |

टॉड के अनुसार :-

पाविया, सक्रेचा, भूरेचा, चाचेरा, रोयि, चादू, निकुम्प, भांवर व बंकट |

नैणसी के अनुसार :-

रावसिया, गोला, डडरिया, बकसरिया, सेलात, बेहाल, बोलत, गोलासन, नहखन, वैस, सेपटा, डीमणिया, हुरडा, महालण, बंकट |

बहादुरसिंह जी बीदासर के संग्रह अनुसार :-

पंजाबी, टंक पंडिया, गुजराती, बंगड़िया, गोलवाल, पूठवाल, मलयचा, चाहोड़ा, हरिण, माल्हण, मुकलारा, चक्रडाणा, सूवट, चित्रकारा, भैरव, क्षयरव, अभ्रवा, व्याघोरा, सरखेल, मोरचा, पबया, बहोला, गजयला, तिलवाड़ा, सरपटा, चित्रावा, चंडालिका, बडेरा, मोरी, रेवड़ा, चंदणा, बंकटा, वत्स्ला, पावचा, झुमरिया, तुलसीरच्छण, सलावत, डीडुरिक, बच्छगोती, राजकुवार, राजवार, चारगे, मोतिया, मानक, अबरा, गोठवाल, जाम, बड्ड, मालण पचवाणा (लालसोट में हैं ), छाबड़ा (बनिया हैं), आदरेचा, बागडेचा, मानभवा, बालिया, जोजां, जनवार, (अवध में बलरामपुर ठिकाना था) (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 92 से 89 व 62)

बकाया राजपुताना अनुसार :-

संगरायचा, भूरायचा, बिलायचा, तसीरा, चचेरा, रोसवा, चुंदू, निकुम्प, भवर, बाकेता, मलानी (नेपाल), गिरामण्डला (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 13) कप्तान पिंगले ने युक्त प्रदेशों में चौहानो की निम्न खांपे बताई है- विजय-सयहिया, खेरा, पूया, भाहू, कमोदरी, कनाजी, देवरिया, कोपला, नाहिरया, कसमीड, आवेल, बाली, बनाफर, गलख, बरहा, चलेय, सराल, रामचन्द्र व चितरंग चौहान (पंजाब में है) (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 64)

20. हाड़ा चौहान :-

हाड़ा चौहानों की प्रसिद्ध खांप है | नैणसी ने अनपर ख्यात में लिखा है कि आसराज नाडौल (1167-1172 वि.) के पुत्र माणकराव के बाद सम्भराणस, जैतराव, अनगराव, कुंतसी विजयपाल व  हाड़ा हुए | (नैणसी री ख्यात भाग 1 पृ. 101) हाड़ा के वंशज आगे चलकर हाड़ा चौहान हुए |

हाड़ा चौहानों की खांपें :-

1. धुग्धलोत :-

बंगदेव हाड़ा के पुत्र धुग्धल के वंशज धुग्धलोत हाड़ा हुए |

2. मोहणोत :-

बंगदेव के पुत्र मोहन हाड़ा के वंशज |

3. हत्थवत :-

बंगदेव के पुत्र देवा हाड़ा के पुत्र हत्थ के वंशज |

4. हलूपोता :-

देवा हाड़ा के पुत्र हरिराज के पुत्र हलु के वंशज हलूपोता हाड़ा कहलाये | हलूपोतों में आगे चलकर पांच शाखायें हुई- चचावत, कुंभावत, बासवत, भोजवत और नयनवत |

5. लोहराज :-

हरिराज के पुत्र लोहराज के वंशज है | लोहराज हाड़ा गुजरात में है |

6. हरपालपोता :-

रावदेवा के पुत्र समरसिंह के पुत्र हरपाल के वंशज |

7. जतावत :-

राव समरसिंह के पुत्र जैतसी के वंशज |

8. खिजूरी का :-

समरसिंह के पुत्र डूंगरसी को खिजूरी गांव जागीर में मिला | इसी गांव के नाम से डूंगरसी के वंशज खिजूरी का हाड़ा कहलाते थे |

9. नवरंगपोता :-

समरसिंह ददी के पुत्र नवरंग के वंशज नवरंगपोता कहलाये |

10. थारूड़ :-

नवरंग के भाई थिरराज या थारुड़ के वंशज थिरराज पोता या थारुड़ हाड़ा कहलाये |

11. लालावत :-

बूंदी के शासक नापा समरसिंहोत के पुत्र हामा के पुत्र लालसी के वंशज | लोलावतों की आगे चलकर दो शाखायें निकली, जैतावत न नवब्रह्म लालसी के पुत्र थे |

12. जाबदू :-

हामा के पुत्र वीरसिंह के पुत्र जाबदू के वंशज |

1.) सांवत का :-

जाबदू के पुत्र सारण के पुत्र सांवत के वंशज |

2.) मेवावत :-

जाबदू के पुत्र सेव के पुत्र मेव के वंशज |

13. अखावत :-

बदी नरेश वीरसिंह के पुत्र बैरीशाल के पुत्र अखैराज के वंशज |

14. चूंडावत :-

अखैराज के भाई चूंडा के वंशज |

15. अदावत :-

अखैराज के भाई उदा के वंशज |

16. बूंदी नरबदपोता :-

बूंदी शासक बैरीशाल के पुत्र राव सुभांड के पुत्र नरबद के वंशज |

17. भीमोत :-

नरबद के पुत्र भीम के वंशज |

18. हमीरका :-

नरबद के पुत्र पूर्ण के पुत्र हम्मीर के वंशज |

19. मोकलोत :-

नरबद के पुत्र मोकल के वंशज |

20. अर्जुनोत :-

नरबद के पुत्र अर्जुन के वंशज |

अर्जुनोतों की शाखायें

1.) अखैपोता :-

अर्जुन के पुत्र अखै के वंशज |

2.) रामका :-

अर्जुन के पुत्र राम के वंशज |

3.) जसा :-

अर्जुन के पुत्र कान्धन के पुत्र जसा के वंशज |

4.) दूदा :-

अर्जुन के बेटे सुरजन के पुत्र के दूदा दूदा के वंशज |

5.) राममनोत :-

सुरजन के पुत्र रायमल के वंशज |

21. सुरतानोत :-

नरबद के बड़े भाई बूंदी के राव नारायण के पुत्र सूर्यमल के पुत्र सुरतान के वंशज |

22. हरदाउत :-

सुरजन के बड़े पुत्र रावभेज के पुत्र हदयनारायण के वंशज | कोटा राज्य में करवाड़, गैंता, पूसोद, पीपला, हरदाउतों के ठिकाने थे | इनको हरदाउत कोटडिया कहा जाता है |

23. भेजावत :-

राव भेज के पुत्र केशवदेव को ढीपरी सहित 27 गांव मिले | केशवदेव के वंशज पिता भोज के नाम पर भोजपोता कहलाये | इनके पुत्र हरीजी के वंशज हरीजी का हाड़ा व जगन्नाथ के वंशज जगन्नाथ पोता हाड़ा हुए |

24. इन्द्रशालेत :-

राव रतनसिंह के पौत्र और गोपीनाथ के पुत्र अन्द्रशाल के वंशज अन्द्रशालनोत हाड़ा कहलाते थे | इन्होने इन्द्रगढ़ नाम का शहर बसाया | यहाँ बूंदी राज्य का मुख्य ठिकाना था | इसके अतिरिक्त दूगारी, जूनिया, चातोली आदि इन्द्रशालोत के ठिकाने थे |

25. बैरिशालोत :-

कुंवर गोपीनाथ के पुत्र बैरीशाल के वंशज बैरिशालोत हाड़ा कहलाये | करवड़ बलवन, पीपलोदा, फलोदी आदि इनके ठिकाने थे |

26. मोहमसिंहोत :-

कुंवर गोपीनाथ के पुत्र मोहकमसिंह के वंशज मोहकमसिंह हाड़ा कहलाये | मोहकमसिंह ने सामूगढ़ (वि. 1715) के युद्ध में वीरगति पाई |

27. माहेसिंहोत :-

कुंवर गोपीनाथ के पुत्र माहेसिंह के वंशज माहेसिंहोत हाड़ा कहलाये | जजावर जैतगढ़ आदि इनके ठिकाने थे |

28. दीपसिंहोत :-

गोपीनाथ के बाद क्रमशः छत्रशाल, भमसिंह व अनिरुद्ध हुए | अनिरुद्ध के बुद्धसिंह व जोथसिंह के उमेदसिंह व दीपसिंह हुए | इन्हीं दीपसिंह के वंशज दीपसिंहोत है वरूधा इनका ठिकाना था |

29. बहादुरसिंहोत :-

उम्मेदसिंह के पुत्र बहादुरसिंह के वंशज बहादुरसिंहोत हाड़ा हैं |

30. सरदारसिंहोत :-

उम्मेदसिंह के पुत्र सरदारसिंह के वंशज है |

31. माधाणी :-

बूंदी के राव रतनसिंह के पुत्र माधोसिंह कोटा राज्य के शासक थे | इनके वंशज माधाणी हाड़ा कहलाये | माधाणी हाड़ों की निम्न खांपें हैं :-

1.) मोहनसिंहोत माधाणी :-

माधोसिंह के पुत्र मोहनसिंह ने धरमत युद्ध (वि. 1715) में शाहजहां के पक्ष में वीरगति पाई | इनके वंशज मोहनसिंहोत माधाणी कहलाये | पलायथा इनका मुख्य ठिकाना था |

2.) जूझारसिंहोत माधाणी :-

माधोसिंह (कोटा) के पुत्र जूझारसिंह ने भी धरमत युद्ध में वीरगति पाई | इनके वंशज जूझारसिंहोत माधाणी कहलाये | इनको पहले कोटा राज्य का कोटड़ा ठिकाना मिला फिर रामगढ़ रेलात दिया गया |

3.) प्रेमसिंहोत माधाणी :-

माधोसिंह के पुत्र कन्हीराम ने अपने भाइयों के साथ ही धरमत युद्ध में शाहजहां के पक्ष में लड़कर वीरगति प्राप्त की | इनके पुत्र प्रेमसिंह के नाम से प्रेमसिंहोत माधाणी कहलाये | कोयला इनका मुख्य ठिकाना था |

4.) किशोरसिंहोत माधाणी :-

माधोसिंह के पुत्र किशोरसिंह ने भी धरमत युद्ध में राजपूती शौर्य का परिचय दिया | वे युद्ध में लड़ते हुए घायल होकर बेहोश हो गए पर बच गये इनको बाद में सांगादे का ठिकाना मिला | बाद में कोटा की गद्दी पर बैठे | औरंगजेब के शासनकाल में कई योद्धों ने भाग लिया | वि. सं. 1753 में औरंगजेब के पक्ष में मराठों के विरुद्ध लड़ते हुए काम आया | इनके वंशज किशोरसिंहोत माधाणी कहलाये |

21. खींची चौहान :-

खींची चौहानों की उत्पत्ति विवाद से परे नहीं है | नैणसी के समय तक यही माना जाता था कि इनके आदि पुरुष माणकराव ने ग्वारियों की खिचड़ी खाई थी और इसी कारण खींची कहलाये | बाद में माधोसिंह खींची ने कल्पना की कि सांभर के चौहान अपनी बात को खींचते थे, यानि निभाते थे | अतः खींची कहलाये | यदि सांभर के चौहानों के लिए यह उक्ति प्रसिद्ध होती तो समस्त चौहान ही खींची कहलाते, पर ऐसा नहीं है, चौहानों की अनेक खांपे हैं | पहले के किसी भी ख्यात में या ग्रन्थ में ऐसा उल्लेख नहीं है | अतः इसे कल्पना ही माना जावेगा | लगता है खींचियों के आदि पुरुष के सन्दर्भ में खिचड़ी सम्बन्धी कोई घटना घाट गई है और इसी आधार पर खिचड़ी का विकृत रूप खींची हो गया लगता है या फिर लक्ष्मण (नाडौल) के पुत्र आसराज के पौत्र अजबराव का  खींची नाम पड़ने के सन्दर्भ में कुछ नहीं कहा जा सकता |

                बूंदी राज्य में घाटी, घाटोली, गगरूण, गूगोर, चाचरणी, चचरड़ी चींचियों के ठिकाने थे (नैणसी री ख्यात भाग 1 115) तथा राघवगढ़, धरमावदा, गढ़ा, नया किला, मकसूदगढ़, पावागढ़, असोधर (फतेहपुर के पास) व  खिलंचीपुर (मालवा) खींचियों के राज्य थे | ( राजपूत वंशावली पृ. 153)

चौहानों के अन्य ठिकाने :-

राजस्थान में चितलवाना, कारोली, डडोसन, सायला (जालौर), कल्याणपुर (बाड़मेर), संखवास (नागौर), जोजावर (पाली), नामली उजेला, झर, संदला, उमरण, पीपलखूटा मालकोइ आदि रतलाम रियासत (म. प्र.) चौहानों का एक ठिकाना था (बहादुरसिंह सोनगरा के सौजन्य से), मुण्डेटी (गुजरात) आदि सोनगरा चौहानों के मुख्य ठिकाने थे |

चौहान कुल कल्पद्रुम

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चौहान वंश की कुलदेवी 

चौहानों की कुलदेवी शाकम्भरी माता है। शाकम्भरी देवी (Shakambhari Mata) का प्राचीन सिद्धपीठ जयपुर जिले के साँभर (Sambhar) क़स्बे में स्थित है। शाकम्भरी माता साँभर की अधिष्ठात्री देवी हैं।शाकम्भरी दुर्गा का एक नाम है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- शाक से जनता का भरण-पोषण करने वाली। शाकम्भरी माता का मंदिर साँभर से लगभग 18 कि.मी. दूर अवस्थित है। शाकम्भरी देवी का स्थान एक सिद्धपीठ स्थल है जहाँ विभिन्न वर्गों और धर्मों के लोग आकर अपनी श्रद्धा-भक्ति निवेदित करते हैं…आशापूरा माता के मंदिर की अधिक जानकारी तथा HD Photos देखने के लिए आशापूरा माता के नाम के लिंक पर क्लिक करें

Shakambhari Mata

नाडौल के चौहान आशापूरा माता को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं। आशापूरा माता भी मूलतः शाकम्भरी माता का ही रूप है। …आशापूरा माता के मंदिर की अधिक जानकारी तथा HD Photos देखने के लिए आशापूरा माता के नाम के लिंक पर क्लिक करें।

Ashapura Mata

यदि आप चौहान हैं और गोत्र परंपरा में किसी अन्य देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं। 

संदर्भ :

क्षत्रिय राजवंश (रघुनाथ सिंह काली पहाड़ी)
राजस्थान की जातियों का सामाजिक एवं आर्थिक जीवन (डॉ कैलाशनाथ व्यास, देवेन्द्रसिंह गहलोत )
विकिपीडिया

133 thoughts on “चौहान वंश का इतिहास, शाखायें, ठिकाने व कुलदेवी | Chauhan Rajput Vansh History in Hindi |Kuldevi”

  1. मैं चौहान वंश का हूँ ओर कुलदेवी चामुंडा माता को मानते है ओर मेरी गौत्र चाहलीया है

    Reply
      • आप चंद्रवंशी हैं जैसलमेर बसाने वाले महारावल जैसल से पंद्रहवी पीढी मे हुए बुरार के वंशज हैं कुलदेवी सांगीयाजी है इन्हे आईनाथ जी व बिंजण माताजी भी कहते हैं पोकरण व जैसलमेर के बीच मे भादरीया गांव मे इनका मुख्य मंदिर है तन्नोट व देगराय,काला डूंगर राय,तैमङेराय,घंटीयाली राय इत्यादि अन्य मंदिर हैं जो सभी जैसलमेर जिले मे हैं

        Reply
      • Mera nam sunil chouhan, gotta ‘vats’hai.kudevi/kul devta ke sambandh men butane ki Krupa ki Jay.dhanyavad.

        Reply
      • गोत्र – वत्स

        कुल देवी – आशापुरा or shakambhari devi…. wese mainpuri mai ashapura ka mandir bhi hai “icchapurni” naam se…. wohi hai kuldevi

        Reply
        • मैंने नेट पर कभी पढ़ा था कि मैनपुरी चौहान बिहार के शाहाबाद, भागलपुर और पूर्णियां ज़िलों में आये और बस गए। पूर्णियां जिले के धमदाहा प्रखंड के एक कुंआरी नामक गांव से फिर हमारे पूर्वज वर्तमान सहरसा जिले के सोहा गांव में आकर बस गए और यहीं हैं।
          दोबारा नेट पर उस साइट को नहीं देख सका हूं। इसलिए जिज्ञासा है कि हमारे पूर्वज मैनपुरी में किस गांव से ताल्लुक रखते हैं? मदद करें।

          Reply
        • इच्छा पूर्णी मंदिर के लिए पूरी विवरण दें.

          Reply
      • Mainpuri & all other Chauhans are rooted from Mont Abu, Rajasthan. I am also a Chauhan and lastly diverted from Manipur & now located at Bihar. Our east dev/devi is Gauri & Bandi (Achleshwar Mahadev).

        Reply
      • Mainpuri chaihan mool roop se suryavnshi chaihan hi hai jo migrate hokr minpuri area me aae the hmari kuldevi Mata Sakmbhari hi hai.

        Reply
    • Ye humko kadaapi samajh nahi aya ki kese?

      please zara iski jankaari dijiye… kyunki humse nahi suna….

      Reply
    • महाराष्ट्र मे चव्हाण नाम पाया जाता है.कहते है की ये लोग राजस्थान के चौहान है जो महाराष्ट्रा (दक्खन) आने के बाद चव्हाण नामसे पहचानने लगे. क्या इसका कोई दस्तऐवज/डॉक्युमेंट उपलबध है.
      कृपया मार्गदर्शन किजीए.

      Reply
    • गोत्र बत्तस
      अरुण कुमार सिंह चौहान मैनपुरी का चौहान हूं मेरे परिवार में किसी को कुलदेवी व कुल देवता का पता नहीं है कृपया मुझे इस बात की जानकारी दें कि मेरी कुलदेवी कौन है वह कुल देवता कौन है ताकि मैं उनकी पूजा कर सकूं

      Reply
    • हम सांभरिया चौहान है गोत्र की जानकारी ठीक से नहीं, 4 थी पूर्व पीढ़ी में पड़दादा सांभर से पुष्कर ननिहाल आ बसे थे।

      Reply
      • Hum Himachal Pradesh ke Chauhan hain. Kuldevi hamari Toni Devi hai aur kul devta balakrupi hai jo sujanpur hamirpur me hai.

        Reply
    • है सोनगरा चैहान वंश का हु कुल देवी चामुंडा माता है गोत्र वत्स है

      Reply
    • भाई साहब मे जानना चाहता हूँ की हम गोत्र बगंडवा बगंडिया चौहान एक ही है या अलग अलग है बताए मेरा जिला गुडगावा हरियाणा है

      Reply
    • साब वागड़ के चौहानो की खापे और शाखा को भी बताए।

      Reply
    • आपकी कुल देवी से पता चलता है की आप परिहार वंश के हो

      Reply
      • Me uttar pradesh se hu Chauhan meri cast he .gotr vats he kuldevi hamari sayar mata he jo hamare purvjo karte he lekin ab kehte he Chauhan ki kuldevi ma aashapura he to muje aa bataiye hamari kuldevi or kuldevta kon he

        Reply
    • Mahindra Singh Chauhan
      S/O surendra Singh Chauhan
      Gotr -sanchora Chauhan
      Rajasthan se aa kar m.p me bas gye
      From -khachrod tahsil dist ujjain (M.p)
      Mobile no 9399336930

      Reply
    • क्या आप दुदवाल या दुबरिया (मेघवाल) की कुल देवी का नाम बता सकते हो‌ क्या

      Reply
    • जय भवानी मै मैनपुरी चौहान अंश हुँ हमारे पूर्वज श्री रणदमन प्रताप सिंह चौहान को म.प्र.स्थित उमरिया जिला अंतर गत देवगवाँ ग्राम मे बाधवगढ़ रियासत का जिम्मा मिला था तब से उनके बाद की पीढिया देवगवाँ ग्राम मे निवासरत है तथा हमारी कुलदेवी माँ चंद्रिका है ।
      मेरा नाम ठा.ध्रुव प्रताप सिंह चौहान है।जय श्री राम

      Reply
  2. Jai mataji ri..jai bhavani…jai shri om banna sa ri…
    Gujarat ke kutch district me Gurjar kshatriya samaj hai jo rajasthan se hai Gurjar nagri…(gurjaratra) yani aaj ke gujarat me aaye…hai…aur yahi bas gaye…maa Ashapura inki kuldevi hai..par mataji ke sant swarup yani shri brahmani mataji ko pujte hai..
    Baki gotra… ishtdev…sab vahi hai ..
    Gurjar nagri me bas jane ke karan Gurjar kshatriya kehlaye…
    In samaj me….
    Rathod…chauhan…solanki…jethva..padiyar…
    Taunk….parmar….ye sabhi surname aate hai ..ye samaj rajasthan rajputana se hai ..salo pehle aaya tha ….bhat barot ke kitab se sari history milte hai..

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  3. हम भरांडी देवी को कुलदेवता मानते हैं

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    • हमारे पूर्वज हमारी निकासी नीमराणा से बताते हैं सुबच्चछ हमारा गोत्र है कृपया करके हमें हमारे वंश के बारे में पूर्ण विस्तार से बताने की कृपा करें चौहान वंश में हमारी खाप कौन सी है मौजूदा समय में हमारा गोत्र विस्तार कहां कहां पर है phone number 98 1027 7452

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      • हमारे पूर्वज हमारी निकासी नीमराणा से बताते है
        कृपया करके नन्दवानी चौहानो की वंशावली दिखा देने
        हम उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद मे रहते है इसके बारे मे अपने परिवार वालो से पुछा भी है लेकिन कोई भी नही बता पाया

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      • अगर आप के पास वंशावली है तो उसके माध्यम से आप पता लगा सकते है

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    • Sanchor ke sashak kon the? Sanchor basane wale Jalor king kanhadde se kya relation me the? Aaj sanchor ke former ruler kon hai? Sanchita chauhan ki branches kitani aur kya hai?

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  4. में गुजरात का रहनेवाला हु और मेरी कुलदेवी श्री महाकाली मां है

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  5. हाडा चौहान वंश से हैं पिताजी का देवलोकगमन को २५ वर्ष हो गए हैं पुरखे माइग्रेंट्स होकर मध्यप्रदेश निमाड़ क्षेत्र में बस गए बचपन में उन्हीं से मिलीं जानकारी के अनुसार कुलदेवी का स्थान राजस्थान में बूंदी बिजासनी माताजी के मंदिर को बताया गया था कभी देवी के स्थान पर गए नहीं हाडाओ में कौन सी ब्रांच के हैं उसकी जानकारी नहीं है

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  6. Mai mainpuri ke chauhan shakha se hoon. Upar likha hai ki mainpuri ke chauhano ko purbiya kahte hain. Lekin hamaare yahan purbiya thakur, purvanchal aur bihar ke rajputo ko kaha jata hai. Kripaya kar ke spashtikaran kare.

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    • पूर्वांचल और बिहार मैनपुरी से पूरब पड़ता है इस कारण मैनपुरी और आसपास के लोग यहां तक कि लखनऊ के पश्चिम के सभी लोग पुरबिया शब्द का प्रयोग करते हैं।

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    • मैनपुरी के चौहान पूर्बिया चौहान नहीं होते हैं। मैनपुरी के चौहान रणथंभोर के प्रसिद्ध शासक राजा हमीरदेव चौहान के पोते और राजा रामदेव के पुत्र राजा भोजदेव के वंशज है। मैनपुरी के चौहानों की शाखा ‘मैनपुरी चौहान’ ही कहलाती है। अलाउद्दीन के आक्रमण से पहले ही 1301 ई. राजा रामदेव अपने दो पुत्रों के साथ मैनपुरी की तरफ चले गए। उन्होंने मैनपुरी राज्य की नींव रखी और उनके छोटे पुत्र राजा भोजदेव मैनपुरी के पहले शासक बने। वहीं दूसरी ओर राजा रामदेव अपने बड़े पुत्र राजकुंवर तकशाहसिंह के साथ अवध की और चल पड़े। वहां तकशाहसिंह ने ‘भाद्दैयां राज’ नाम के राज्य की नींव रखी। और इसके पहले शासक बने। इन्होंने ‘अग्निराज’ की उपाधि धारण की और यह सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सीधे वंशज है। इनकी शाखा ‘राजकुंवर चौहान’ कहलाती है। पूर्बिया चौहान, सम्राट पृथ्वीराज चौहान के चाचा, काका कान्हड़देव के पोते और राजकुमार भीम के पुत्र कुमार के वंशज है। इन्ही कुमार के वंशज आज मेवाड़ में कोठारिया और पारसोली के जागीरदार है व बेदला के ठिकानेदार हैं। यह लोग पूरब (अवध) से पश्चिम (राजपूताना) की ओर आये ना, इसलिए पूर्बिया कहलाये। काका कान्हड़देव की दूसरे बेटे और राजकुमार भीम के छोटे भाई चाहड़देव जी के वंशज ‘चाहड़दे चौहान’ कहलाते हैं और अलवर के नीमराना के शासक हैं।

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      • मैं सुल्तानपुर का राजकुमार ठाकुर हूँ और आपसे ये जानना चाहता हूँ कि रामदेव ,ताकशाह सिंह और भोजदेव के विषय में आपकी लिखी बातो का सोर्स क्या है ? क्या सिर्फ जनश्रुति है या कोई अथेंटिक सोर्स है आपकी बातो का I मेरे गाँव में भी वही बात कहते हैं जो आपने कही

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        • मैं भी राजकुमार चौहान क्षत्रिय हू ये तो बाते बताई जाती है की हमारे पूर्वज मैनपुरी से आए थे हम भदैया स्टेट से संबंधित है पर बाकी और कुछ नही पता है जब की हमारी शाखा रणथंभोर की है पर यहां हमारी कुलदेवी काली मानी जाती है कोई स्पष्ट नहीं बताने वाला है

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      • Mera Gotra Chhokar hai aur mere purvaj Chauhan hai. Mere purvaj Shambargadh se migrate ho ker Gujarat aaye the. Kuldevi Maa Chamund hai…. Kripaya is ke baare me aur jankari ho to bataye

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  7. Ham Bhinmaal ke Raja Amardatt Chauhan ke Vanshaj hai, hame apni kuldevi pata nahi,kripya hame inko dhundhne me madad kare.

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  8. गजेन्द्रसिंह चौहान (बालेसा चौहान)ठिकाना सतलासना महेसाना डिस्टिक(गुजरात)
    इस्टदेवी मा चामुंडा और कुलदेवी मा आशापुरा
    (नाडोल राजस्थान)

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      • मैं राक्स्या चौहान वंश मेड़ता से सम्बंध रखता हूं कृपया हमारी कुल देवी के बारे विस्तार से बताये की कौन है आशापुरा या शाकंभरी

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  9. Hum sambhariya chauhan h lekin hmari vanshavali bhagvan ram ke bete kush se nikli h isliye kashav gotra ke suryavanshi rajput h gaddi ayodhya kuldevi mata aashavari h lekin bad m sambhar aakar base to chauhan samrajya ka hissa rhe isliye chauhan khate h. Aur hmara gotra ke bhaut se gaav meerut sonipat bijnor haridwar m h

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  10. Bhai sab mai hada hu ,hmare poorvajo ne bahut pahle boondi se palayan kiya tha,kya aap meri kulddevi ka naam bta sakte hai, mai अग्निवंशी वक्ष गोत्र ka hu

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  11. Mera gav Bhanderaj ta.tarapur Di.anand Gujarat .kuldevi Ashapura ma.me Janna Chahta Hu ki Gujarat me kin kin gav me Chauhan Rajput hai.or kahan se Aaye he.
    ?

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  12. मै chaudhary(kunbi) hu pr ભટ્ટ બતાતે है की 850 sal पहले हम chauhan the….. Humari kuldevi भी abhi भी ashapura hai… Ye kaise hua vo janna tha

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  13. Lakhan Singh Chauhan ke vansh Ajmer me Nagaur me mundwa hai vha Lodha kuldevi Badmata hai… aur humari gotra Lodha hai

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  14. Hamara gave kuchaman ke pass kukanwali h ham chouhan saini Mali h kya Hamari kul Devi bhi mata aaspura hi h kya

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  15. Hamara gave kuchaman ke pass kukanwali h ham chouhan saini Mali h kya Hamari kul Devi bhi mata aaspura hi h kya chouhan Mali saini ko kuldevi Konsi h mob number 9166460082 what’s up me dear

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    • खीची चौहान के युद्ध के बारे में पुरा विवरण देवें

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  16. देवा हाडाका कोई शाखाका नेपाल जाना और लोहराजका वंशविस्तारका कोई अभिलेख है या किसीको ज्ञात होतो कृपया उल्लेख करें

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  17. चौहान कुल और आसेरगढका राजा भौमचन्द्रके बिषय में और समयके बारे में ज्ञात करना चाहता हुँ । कृपया सहयोग करें ।

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  18. Mai bhi ek chavan hu.aur meri kuldevi janai-manai hai.aur mera gotra vasista hai.kya aap muze mere poorvja konse type ke chauhan the ye bata sakte hoo kya?????

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  19. मैं राक्स्या चौहान वंश मेड़ता से सम्बंध रखता हूं कृपया हमारी कुल देवी के बारे विस्तार से बताये की कौन है आशापुरा या शाकंभरी

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  20. मेरा गोत्र बरबरा है,
    मुझे कृपया बताइये की मेरा वंश चौहान है या कोई और।
    हमारा पैतृक स्थान जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश है।
    पता नही समय के साथ मेरे गोत्र वाले खुद को चौहान ही बताने लगे है,
    परंतु मुझे अपने असल वंश और पूर्वजो के मात्र स्थान के बारे मे बताने का कष्ट करे।

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  21. we pray to brahmani mata- kutch kumbhariya , taluka – anjar., it is said that our gotra is vatsa which is not convicted can you help????

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  22. मैं बिहार के मुंगेर जिले का वासी हूं।चौहान राजपूत,गोत्र वत्स।चौहानों के वर्गीकरण में मैं दनियार चौहान कहा जाता है, जैसे मैनपुरी चौहान आदि,जो स्थान विशेष के नाम से जाने जाते हैं।इस लेख के अंत मे संदर्भ में रघुनाथ सिंह, काली पहाड़ी का नाम आया है।मेरे पिता से मिली जानकारी के अनुसार 10-12 पीढ़ी पूर्व हमारे पूर्वज राजस्थान के काली पहाड़ी से पलायन कर बिहार आए थे।इसलिए मुझे इस लेख के संदर्भ में जो नाम रघुनाथ सिंह का आया है, वो भी काली पहाड़ी के ही रहने वाले हैं शायद,तभी काली पहाड़ी लिखा है।या तो हमें इस लेख के लेखक का संपर्क सूत्र या रघुनाथ सिंह ,काली पहाड़ी वाले लेखक का संपर्क सूत्र उपलब्ध कराने की कृपा करें,ताकि मैं अपने पूर्वजों की जन्म स्थली का दर्शन कर अपने और अपने आज के बंधु-बांधवों को कृतार्थ करूं।

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  23. सोनगरा चौहान परिवार से हूं हमारे पूर्वज कहते हैं कि हमारा वढ़ाओ लाखन सिंह सोनगरा चौहान है इसका बेटा अजय राज के परिवार का विवरण बताएं ताकि हम किस के परिवार से हैं हमारा वढ़ाओ शिकार के कारण दूसरी जाति में बट गए हैं हमारी वर्तमान जाती भील है और हमारा गोत्र सोनगरा चौहान है हमारे पूर्वज कहते हैं की हम इस परिवार से हैं हमको केवल सम बताना हैं और किन का पुत्र हमारी जाति में बट गए हैं इसका पूरा विवरण बताएं धन्यवाद

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  24. Jai mata ji hukum, hum chohan rajput ki khanp NIRWAN h, hamare purvj khandela se aaye h. Hum konse nirwan h or hamri kuldevi konsi h or hamari kuldevi ka mandir kanha h eske bare me jankari Dene ke karpa krey hukum . Jai mata di.

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  25. हम खिच्ची चौहान है,
    बहीभाट के अनुसार राजा दुर्जनशाल सिंह हमारे पूर्वज थे।
    मेरे पास मुझसे ऊपर हमारी 7 पीढ़ियों की वंशावली भी है।
    कृपया करके मुझसे मेरे email के द्वारा contact करें आपसे और भी जानकारी लेनी है।

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  26. Mai district Maharajganj Uttar Pradesh se hu ..mera name rajesh Chauhan …gotra …kashyap …samay ya kali ma ko kul devi mante h log…lekin ye nhi samajh me aata k kyu vats gotritya Chauhan ko neecha samjhte the …esa purvajo ka kahna h …lekin aaj k time hme lonia chauhan kahte h …pahle jab web search kiya tha to lga k mai chauhan nhi hu gotra ki wajah se ….fir bahut koshish k bad pta chla k Tulsipur princely state bhi Kashyap gotra k h …….aur Suryavanshi h …jaisaa ki mere dada ka kahna tha k hamare sath kewal Suryavanshi hi baith sakta hai …..agar koi source ho to clear krne ki kripa karen …….8920884285

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  27. H.R.CHAUHAN
    JAY MATAJI
    HUM NIMRANA KE CHAUHAN HAI, KRUPAYA HAMARI SHAKHA AUR KHAP BATAYE AUR PURVAJO
    KE STHAN KE BARE ME BATAYE

    HAMARA GOTRA VATSA HAI

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  28. हम नीमराना के चौहान है हमे बताये की हमारी शाखा और खाप कया है ।

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  29. Sir mainpuri me purbiya chauhan nahi rhete kyu ki mainpuri ke chauhan samrat prithviraj chauhan ke descendant hai aur Agr vho purbiya chauhan hote to vho prithviraj chauhan ke descendant nhi likte kyuki purbiya chauhan ki branch ajmer ke maharaja manik rai chauhan ke 24 sons se chali hai Kyu maharaja manikrai ji samrat prithviraj chauhan se phele ke te aur unki 24 saka phele hi alag ho gaye te to isliye mainpuri ke chauhan purbiya chauhan nhi hai ha sir mainpuri me purbiya chauhan rehte Hoge kyu ki purane jamane me migrate huye Hoge per majorities samrat ke vansh se hai please ye correct kigiye

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  30. Mukeshbhai Gandabhai Jingar
    11/ khodiyar nagar ro-house Sanand to Ahmedabad. Pin 382110
    9724440151
    Ham Aaj tak kuldevi ke rup me CHAMUNDA ma ko pure he parntu ab pata Chalabi he ki hamari kuldevi Aashapura Shakmbhari mata he.parntu an kese kuldevi ko sahi kare

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  31. Sir Main Rakesh Chouhan Thakur hun, main besically UP , Hardoi se hu, Mera Gotra Neem Hai

    kirpiya Meri Kuldevi ka naam bataye ji .. Aap ka bahut bahut dhanwad hoga

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  32. Sir ham bhi jeengar jati k h.or sirohi (bayar) caste lagate h but hme apni kuldevi ka naam pta nhi h.plz ap muje meri kuldevi ka naam bataye.thnk u

    Reply
  33. Hum log jain hei aur hamara gotra pochan gotra chauhan hei. Krupya hamare gotra mein kuldevi/kuldevta ko lekar confusion hein to krupya bataye.

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  34. में भी चौहान हूं। पर हमारी गौत्र पुरवजो से माछलीया बताई गई है। और हाड़ा, सोनगरा, माछलीया, चौहान को भाई बताया गया है। क्या आप बता सकते है की माछलीया नाम कैसे पड़ा एवम कौनसी घटना के तहत इस माछलीया गौत्र का नेम पड़ा । इंटरनेट पर कही भी इसकी जानकारी नहीं मिल रही । पर माछलीया चौहान बहोत है । पर किसीको ख जानकारी नहीं है। कृपया इसका विस्तर्ण करे जिससे भविष्य में इस का नाम रह जाए

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  35. हमारे पुर्वज चौहान थे ऐसा भाट कहते है।अब हम 96कुली मराठा कहेलाते है।दवंगे हमारा कुलनाम है और हम चोटीला गुजरात में हमारी कुलदेवता मां चामुंडा को पूजते है।।

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  36. भाई साहब नोनिया चौहान की उत्पत्ति क्या कैसे हुई वंश गोत्र जानकारी विवरण दें ।

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  37. Mera name Dilipsinh Chauhan hai, main Gujarat Jamnagar district se hoon ..me purabiya Chauhan hoon or meri 4-5 pidhi yaha rehti hai. Uske hisab se bahar ke apne samaj se mera koi contact nhi hai to …Mera aapde nivedan hai .me apne pure Desh me bate purabiya rajput samaj se contact krna chahta hoon

    Reply
  38. Jai Mata di,

    Can anybody help me to understand relation between Bach gotra – Chauhan Rajputs and they belong to which 24 subdivisions of Chauhan Dynastry.

    UP and MP States Gotra spelled as – Bach, Bacha, Bachh, Subachh, Bacchass, Bachat, Bachhas
    Delhi, Haryana, HP and Chhattisgarh spelled as – Bacchas, Bachhas, Bachchasc, Bachhesar, Bacch, Bachchal,

    Does Bach gotra chauhan Rajputs are in Rajasthan? or they are located only in the states of UP, MP, HP, Haryana, Chhattisgarh.

    Please elaborate on this.

    Reply
  39. Jai Mata Di,

    Can anybody help me to get answers for the below questions about Chauhan Rajputs

    1. Relation between Bach Gotra and Chauhan Rajput – They belong to which 24 subdivisions of Chauhans Dynastry.

    2. Some of them said Bach and Vatsa gotra both are same, Is it true?

    3. Bach gotra Rajputs are in Rajasthan? or They are located in the below mentioned states.

    4. However gotra is spelled or pronounced slightly different in different states, As mentioned below, But
    they all claim as Chauhan Rajputs is it true?

    Delhi State – Subachh, Bachhat, Bachchasc, Bachhesar, Subachhat
    UP and MP States – Bach, Bachh, Bacchass, Bachhas
    HP State – Bachchal
    Haryana & Chhattisgarh States – Bacchas, Bacch, Bachhas
    Jharkhand State – Bachchas, Baksha
    Karnataka State – Bach, Bachh

    Reply
  40. Jai Mata Di,

    Can anybody help me to get answers for the below questions about Chauhan Rajputs

    1. Relation between Bach Gotra and Chauhan Rajput – They belong to which 24 subdivisions of Chauhans Dynastry.

    2. Some of them said Bach and Vatsa gotra both are same, Is it true?

    3. Bach gotra Rajputs are in Rajasthan? or They are located in the below mentioned states.

    4. However gotra is spelled or pronounced slightly different in different states, As mentioned below, But
    they all claim as Chauhan Rajputs is it true?

    Delhi State – Subachh, Bachhat, Bachchasc, Bachhesar, Subachhat
    UP and MP States – Bach, Bachh, Bacchass, Bachhas
    HP State – Bachchal
    Haryana & Chhattisgarh States – Bacchas, Bacch, Bachhas
    Jharkand State – Bachchas, Baksha
    Karnataka State – Bach, Bachh

    Reply
  41. I would like to know my Gotra and my Shakha. Can someone (expert) call me to discuss and understand? You can also share your mobile number.

    Reply
  42. agar mujhe pichhli vanshavali ki jaankari leni ho to kese mil sakti hai koi contact number mil sakta hai?

    Reply
  43. हम लोलस गोता परमार मोदरान छोड़ने से मद्रेचा कहलाते है हमारी कुलदेवी konsi हैं कृपया बतावे

    Reply
  44. हमारे दादा-दादी लगभग >१०० वर्ष पहले शायद बांदा-अतर्रा-रीवां-कटनी आदि इलाके से आकर मध्यप्रदेश के देवास-इंदौर में बस गए. जैसा हमारे माता-पिता ने बताया था की हम मैनपुरी चौहान है और कुलदेवी मैहर (सतना जिला) की शारदा माताजी है. शारदा माताजी के साथ दूल्हा देव (माताजी की पहाड़ी के निचे स्थान है), भैरु महाराज व बीर बाबा (दोनों के स्थान का हमें ज्ञान नहीं है) भी पूजे जातें हैं. कुलदेवी-देवता की पूजा नियमित होती है और दोनों नवरात्रि में नवमी पर माता-पिता द्वारा बताये तरीके से विशेष पूजा होती है. यदि किसी को इस सम्बन्ध में और ज्ञान हो, समानता हो तो कृपया जानकारी देने की कृपा करें.

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  45. हम अयोध्या (फ़ैजाबाद ) के पूर्व में 32 किमी पर (लखनऊ रोड ) स्थित ग्राम रामनगर धौरहरा मौजा बरई खुर्द के निवासी है हम सभी मैनपुरी चौहान है और वत्स गोत्र के है… हमारे कुल देवता गोरईया देव है जो सम्भवतः गोरा का अपभ्रंश हो सकता है…

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