नागर वैश्य समाज की उत्पत्ति व इतिहास Nagar Vaishya / Baniya Samaj History in Hindi

Nagar Vaishya / Baniya Samaj History in Hindi : ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड के अनुसार गुजरात के राजा सत्यसंघ ने गर्ततीर्थ के ब्राह्मणों को नागर ब्राह्मणों के निवास वाले बड़नगर में व्यापार की प्रेरणा दी थी। वे गर्ततीर्थ के ब्राह्मण उस नगर में वाणिज्य-व्यवसाय करने से नागर वैश्य कहलाए –

ततस्ते ब्राह्मणाः सर्वे गर्ततीर्थ समुद्भवाः।
सत्यसंघं समभ्येत्य प्रोचुर्दुखं स्वकीयकम्।।
परिग्रहः कृतोऽस्माभिः केवलं पृथिवीपते।
न च किं चित्फ़लं जातं वृत्तिजं न पुरोद्भवम् ||

अर्थात् गर्ततीर्थ के निवासी ब्राह्मण राजा सत्यसंघ से कहने लगे हे राजन् ! गर्ततीर्थ में हमें केवल दान से धन प्राप्त होता है। उससे गुजारा नहीं होता। वृति के बिना गृहस्थी का फल नहीं।

तब राजा सत्यसंघ की प्रेरणा से बड़नगर के नागर ब्राह्मण गर्ततीर्थ के ब्राह्मणों को अपने यहाँ ले गए और उनके वाणिज्य-व्यवसाय को प्रोत्साहन दिया |

तेऽपि तेषां प्रसादेन गर्ततिर्थोद्भवा द्विजाः |
परां विभूतिमादाय मोदन्ते सुख संयुता ||
गर्ततिर्थोद्भवा विप्रा यथा जाता वणिग्वराः ||

वे गर्ततीर्थ के ब्राह्मण नागर ब्राह्मणों के प्रोत्साहन से वाणिज्य-व्यापार में सफलता पाकर समृद्ध हो गए तथा वैश्य कहलाने लगे।

कुलदेवता /कुलदेवी

ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में नागर वैश्यों के कुलदेवता हाटकेश्वर महादेव बताए गए है।

नागर ब्राह्मणकुल तथा नागर वैश्यकुल की देवी दमयन्ती का वर्णन भी ब्राह्मणोत्पत्ति मार्तण्ड में हुआ है। दमयन्ती की मूर्ति शिलारूप में है। उसकी प्रथम पूजा गुजरात नरेश द्वारा की गई थी –

गत्वा शिलासमीपे तु विललापाति चित्रधा |
ततः कृत्वालयं तस्याः समन्तात् सुमनोहरम् ||
कर्पूरागरु धूपाद्यैर्वस्त्र कुंकुमचन्दनैः ||


    अर्थात् दुःखी राजा दमयन्ती शिला के पास जाकर मन की वेदना प्रकट करने लगा। उसने वह देवालय का निर्माण कराकर कपूर अगरबत्ती धूप वस्त्र कुमकुम आदि पूजापदार्थ अर्पित किए। उस क्षेत्र की स्त्रियों ने भी दमयन्ती पूजन का संकल्प किया –

यदस्माकं गृहे वृद्धिः कदचित्संभविष्यति |
तद्ग्रतश्च पश्चाच्च दमयन्त्याः प्रपूजनम् ||
करिष्यामो न सन्देहः सर्वकृत्येषु सर्वदा |

जब-जब हमारे घर में विवाहादि विशेष कार्य होंगे, कार्य के आरम्भ में तथा संपन्न होने के बाद दमयन्तीपूजा करें। सारे कार्य उन्हें स्मरण करके किये जाएंगे। दमयन्तीपूजन की महिमा का भी वर्णन है –

एनां दृष्ट्वा कुमारी या वेदीमध्ये गमिष्यति |
सा भविष्यत्य संदेहात्पत्युः प्राणसमा सदा ||
तस्मात्सर्वप्रयत्नेन कन्यायज्ञ उपस्थिते |
दमयन्ती प्रदृष्ट्व्या पूजनीया विशेषतः ||

     विवाह के समय जो कन्या दमयन्ती का दर्शन करके तत्पश्चात् वेदी स्थल पर जाएगी तो वह अपने पति को प्राणो के सामान प्रिय होगी। इसलिए विवाह के अवसर पर नागर ब्राह्मणों और नागर वैश्यों की कन्याओं को दमयन्ती का दर्शन और पूजन अवश्य करना चाहिए।

कृपया ध्यान देवें – यदि आपके पास नागर वैश्य समाज (Nagar Vaishya / Baniya Samaj)सम्बन्धी कोई जानकारी है तो हमें अवश्य भेजें। इस Platform से वह जानकारी समाज के सभी बंधुओं को सुलभ होगी। कृपया इस अभियान को बढ़ाने में अपना अमूल्य सहयोग देवें।

8 thoughts on “नागर वैश्य समाज की उत्पत्ति व इतिहास Nagar Vaishya / Baniya Samaj History in Hindi”

  1. Lekin yaha likha hai ki utpatti ke samay brahmano ko hi vyapar ki prerna di jisse wo aage jaake Vaishya bane. It means Nagar Vaishya are Brahman.!!

    Reply

Leave a Reply

This site is protected by wp-copyrightpro.com