मेड़तिया राठौड़ वंश का इतिहास, परिचय व ठिकाने | Medtiya / Mertiya Rathore Vansh History in Hindi

Mertiya Rathore Vansh History in Hindi : जोधपुर के शासक जोधा के पुत्र दूदाजी के वंशज मेड़ता नगर के नाम से मेड़तिया कहलाये।
राव दूदा जी का जन्म राव जोधा जी की सोनगरी राणी चाम्पा के गर्भ से 15 जूं 1440 को हुआ । राव दूदा जी ने मेड़ता नगर बसाया । इसमें उनके भाई राव बरसिँह जी  का भी साथ था। राव बरसिँह जी  व राव दूदा जी ने सांख्लों (परमार ) से चौकड़ी ,कोसाणा आदि जीते । राव बीकाजी जी द्वारा सारंगखां के विरुद्ध किये गये युद्ध में राव दूदा जी ने अद्भुत वीरता दिखाई । मल्लूखां ( सांभर का हाकिम ) ने जब मेड़ता पर अधिकार कर लिया था । राव दूदा जी, राव सांतल जी, राव सूजा जी, राव बरसिँह जी, बीसलपुर पहुंचे और मल्लूखां को पराजित किया । मल्लूखां ने राव बरसिँह जी को अजमेर में जहर दे दिया जिससे राव बरसिँह जी की म्रत्यु हो गयी उनका पुत्र सीहा गद्धी पर बेठ और इसके बाद मेड़ता राव दूदा जी और सीहा में बंटकर आधा – आधा रह गया ।

राव दूदा जी के पांच पुत्र थे – (01) वीरमदेव – मेड़ता (02) रायमल – खानवा के युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए । (03) रायसल (04) रतनसिंह – कूड़की ठिकाने के स्वामी, खानवा के युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए । (05) पंचायण मीराबाई रतन सिंह की पुत्री थी । रतनसिंह कूड़की ठिकाने के स्वामी थे ।

राव दूदा जी के पुत्र वीरमदेव ईसवी 1515 में मेड़ता की गद्धी पर बैठे । इनका जन्म 19 नवम्बर 1477 को हुआ । 17 मार्च खानवा में बाबर व् सांगा के बीच हुए युद्ध में वीरमदेव ने राणा सांगा का साथ दिया । राणा सांगा की मूर्छित अवस्था के समय वे भी घायल थे । इस युद्ध में उनके भाई रायमल व् रतनसिंह भी मुगल सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुए । जोधपुर के राजा मालदेव मेड़ता पर अधिकार करना चाहते थे । वीरमदेव ने 1536 ईस्वी में अजमेर पर भी अधिकार कर लिया था । मालदेव ने अजमेर लेना चाहा पर वीरमदेव ने नहीं दिया तब मालदेव ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया । मालदेव का मेड़ता पर अधिकार हो गया । कुछ समय बाद मालदेव का अजमेर पर भी अधिकार हो गया । तब वीरमदेव रायमल अमरसर के पास चलेगए । वीरमदेव आपने राज्य मेड़ता पर पुनः अधिकार करना चाहते थे अतः वीरमदेव रणथम्भोर की नवाब की मदद से शेरशाह के पास पहुँच गए । और मालदेव पर आक्रमण करने के लिए शेरशाह को तेयार किया । बीकानेर के राव कल्याणमल भी मालदेव द्वारा बीकानेर छीन लेने के कारन मालदेव के विरुद्ध थे । उन्होंने भी शेरशाह का साथ दिया । शेरशाह को बड़ी सेना लेकर जोधपुर की तरह बढ़ा और विक्रमी संवत 1600 ईस्वी 1544 में अजमेर के पास सुमेल स्थान पर युद्ध हुआ । मालदेव पहले
ही मैदान छोड़ चुका था । जैता और कुम्पा शेरशाह के सामने डटे रहे परन्तु मालदेव की सेना को पराजीत होना पड़ा । इस युद्ध के बाद वीरमदेव ने मेड़ता पर पुनः अधिकार कर लिया ।

वीरमदेव के 10 पुत्र थे । (01) जयमल – बदनोर (चितोड़) (02) ईशरदास (03) करण (04) जगमाल (05) चांदा (06) बीका – बीका के पुत्र बलू को बापरी सोजत चार गाँव मिला (07)
पृथ्वीराज – इनके वंशज मेड़ता में रहे (08) प्रतापसिंह (09) सारंगदे (10) मांडण । मेड़तिया राठौड़ो की खापें व ठिकानों का विवरण इस प्रकार है –

1) जयमलोत मेड़तिया :-

वीरम दूदावत के पुत्र जयमल बड़े वीर थे। इनका जन्म 17 सितम्बर 1507 ई. में हुआ। वो मीरा के भाई थे उनके पिता राव वीरमदेव के निधन के बाद वो मेड़ता के राजा बने।

2) सुरतानोत मेड़तिया :-

वि. सं. 1624 में हुए चित्तौड़ के तीसरे शाके में जयमल वीरगति को प्राप्त हुए। उनके बड़े पुत्र सुरतान महाराणा उदयसिंह की सेवा में उपस्थित हुए। इन्हीं सुरतान के वंशज सुरतानोत मेड़तिया कहलाये।
ठिकाना : गूलर, जावला, भखरी

3) केशवदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र केशवदास थे। अकबर ने इनको आधा मेड़ता दिया। वि. सं. 1655 में गोपालदास के साथ शाही सेना के पक्ष में लड़ते हुए बीड़ की लड़ाई में काम आये। (मेड़ता राव दूदा व उनके वंशज – डा. हुक्मसिंह भाटी पृ. 24) बाद में मेड़ता जोधपुर के सूरसिंह को दे दिया गया। यही से मेड़ता से मेड़तियों का राज्य समाप्त होता है। इन्हीं केशवदास के वंशज केशवदासोत को 22 गाँवो सहित केकीद मिला।
ठिकाना : बडू, बोड़ावड़, बूड़सू ,सबलपुर, मडोली, बरनेल

4) अखैसिंहोत मेड़तिया :-

केशवदास के बाद क्रमशः गिरधरदास, गदाधर, श्यामसिंह व अखैसिंह हुए। इन्हीं अखैसिंह के वंशज अखैसिंहोत मेड़तिया कहलाये।

5) अमरसिंहोत मेड़तिया :-

अखैसिंह के बड़े पुत्र अमरसिंह के वंशज अमरसिंहोत मेड़तिया कहलाते हैं। मैनाना(परवतसर) इनके सात गांवों का मुख्य ठिकाना था। इनके अलावा रोड़ु विरड़ा (6 गांव) तथा डसाणो खुर्द व टांगलो एक एक गांव के ठिकाने थे।

6) गोयन्ददासोत मेड़तिया :-

वीरम के पुत्र जयमल के पुत्र गोयन्ददास के वंशज गोयन्ददासोत मेड़तिया कहलाये।

7) रघुनाथसिंहोत मेड़तिया :-

गोयन्ददास के पुत्र सांवलदास के पुत्र रघुनाथसिंह थे। रघुनाथसिंह बड़े वीर थे। औरंगजेब के समय में इन्होंने 1715 वि. में गोड़ों से मारोठ का परगना छीन लिया। इनके वंशज रघुनाथसिंहोत मेड़तिया कहलाते है।

8) श्यामसिंहोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र गोयन्ददास के बाद क्रमशः सांवलदास व श्यामसिंह हुए। इन्हीं श्यामसिंह के वंशज श्यामसिंहोत मेड़तिया कहलाये। शेखावाटी (राजस्थान) के बगड़ और अनुवाणा गांवों निवास करते हैं। नागौर जिले में रेवासा, भूरणी व नावा में हैं।

9) माधोदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र माधोदास बड़े वीर थे। इन्होनें कई युद्धों में भाग लिया और वि. सं. 1656 में मुगलों से लड़ते हुए काम आये। इन्हीं माधोदास के वंशज माधोदासोत मेड़तिया कहलाये।

10) कल्याणदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र कल्याणदास के वंशज। कल्याणदास को सुरतान द्वारा रायण की जागीर मिली। मोटे राजा उदयसिंह की ओर से वि. 1652 में खेरवा का पट्टा मिला। कालणा, बरकाना, कला रो बास आदि ठिकाने थे।

11) बिशनदासोत मेड़तिया :-

कल्याणदास जयमलोत के पुत्र बिशनदास के वंशज बिशनदासोत मेड़तिया कहलाते हैं। बिशनदास अपने समय के प्रतिभा व्यक्ति थे।

12) रामदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र रामदास हल्दीघाटी के युद्ध (ई.1576) में वीरगति को प्राप्त हुए। इनके वंशज रामदासोत मेड़तिया हैं। ये मेवाड़ क्षेत्र में है।

13) बिट्ठलदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र बिट्ठलदास के वंशधर बिट्ठलदासोत मेड़तिया कहलाते है। नीबी खास इनका दो गांवों का ठिकाना था।

14) मुकन्ददासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र मुकन्ददास को जयमल के चित्तौड़ में 1624 वि. में वीरगति पाने पर उदयसिंहजी ने गढ़बोर की जागीर दी और अब मुगलों का बदनोर से अधिकार हट गया तब इन्हें बदनोर का ठिकाना मिला। इन्हीं मुकन्ददास के वंशज मुकन्ददासोत मेड़तिया कहलाये।

15) नारायणदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र नारायणदास के वंशज नारायणदासोत मेड़तिया कहलाये।

16) द्वारकादासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र द्वारकादास अकबर की सेवा में रहे थे। वि. सं. 1655 में वे शाही सेना की ओर से लड़ते हुए दक्षिण में बीड़ नामक स्थान पर काम आये। इन्हीं द्वारकादास के वंशज द्वारकादासोत मेड़तिया कहलाये। बछवारी इनका ठिकाना था। (मेड़ता के राव दूदा व उनके वंशज पृ. 77 उपर्युक्त पृ. 66)

17) हरिदासोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र हरिदास के वंशज हरिदासोत मेड़तिया कहलाये।

18) शार्दूलोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र शार्दुल के वंशज शार्दूलोत मेड़तिया कहलाये। मेवाड़ में धोली इनका ठिकाना था।

19) अनोपसिंहोत मेड़तिया :-

जयमल के पुत्र अनोपसिंह के वंशज। चाणोद इनका ठिकाना था (क्ष. जाति सू. पृ. 35)

20) ईशरदासोत मेड़तिया :-

वीरम के पुत्र ईशरदास बड़े वीर थे। चितौड़ के युद्ध (1624 वि.) में वे जयमल के साथ थे। अकबर के मधु नामक हाथी के खांडा मारकर उसका दांत पकड़ लिया और युद्ध करते हुए काम आये। इन्हीं ईशरदास के वंशज ईशरदासोत मेड़तिया कहलाये। इनके वंशजों के अधिकार में बीकावास, सुमेल, खरवो आदि ठिकाने रहे।

21) जगमालोत मेड़तिया :-

वीरम के पुत्र जगमाल मादेव की सेवा में रहे। मालदेव ने जयमल से मेड़ता लेकर आधा भाग जगमाल को दे दिया। जयमल ने फिर मेड़ता पर अधिकार कर लिया। बादशाह अकबर ने मेड़ता फिर छीन लिया और जगमाल  दे दिया। इन्हीं जगमाल के वंशज जगमालोत मेड़तिया कहलाये।

22) चांदावत मेड़तिया :-

वीरमदेव के पुत्र चांदा ने बाझाकुडो भूमि पर अधिकार कर वि. सं. 1603 में बलुन्दा को आबाद किया। चांदा राव मालदेव की सेवा में रहे। मालदेव द्वारा मेड़ता पर आक्रमण करने के समय चांदा उनके साथ थे। मालदेव के  भयभीत होने पर उन्होंने जोधपुर पहुंचाया। राव मालदेव ने उन्हें एक बार आसोप और रास का पट्टा भी दिया था। हुसैन कुलीखां द्वारा जोधपुर पर आक्रमण करने के समय चांदा चन्द्रसेन के पक्ष में लड़े। नागौर के सुबायत हुसैन अली से भी कई लड़ाइयां लड़ी। नागौर के नवाब ने उन्हें धोके से मारना चाहा। इस षड़यंत्र में चांदा तो मरे पर नवाब को भी साथ लेकर मरे। बलून्दा इनका मुख्य ठिकाना था।

23) प्रतापसिंहोत मेड़तिया :-

वीरमदेव के पुत्र प्रतापसिंह महाराणा उदयसिंह चित्तौड़ के पास रहे। 1624 वि. में अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। उस युद्ध में जयमल के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। इन्हीं प्रतापसिंह के वंशज प्रतापसिंहोत मेड़तिया कहलाये। इनके तीन पुत्र गोपालदास, भगवानदास, हरिदास थे। गोपालदास ने हल्दीघाटी व कुम्भलगढ़ के युद्धों में वीरता दिखाई अतः राणा ने इनको घाणोराव का इलाका प्रदान किया।

24) गोपीनाथोत मेड़तिया :-

वीरमदेव के पुत्र प्रतापसिंह के बाद क्रमशः गोपालदास, किशनदास, दुर्जनशाल व गोपीनाथ हुए। पिता दुर्जनशाल के बड़े पुत्र होने के कारण इनके ‘घाणोराव’ प्राप्त हुआ। घाणोराव एक छोटा सा राज्य था। गोपीनाथ ने जयसिंह व उनके पुत्र अमरसिंह के बीच हुए मनमुटाव को मिटाया। महाराणा ने इनको खीमेल,नीपरडा,आरसीपुरा,राजपुरा आदि गांव प्रदान किये। (घाणेराव के मेड़तिया राठौड़-डा. देवीलाल पृ. 82)

25) मांडणोत मेड़तिया :-

वीरमजी के पुत्र मांडण सोलंकियों के विरुद्ध लड़ते बरहडा के युद्ध में मारे गए। इनके वंशज मांडणोत मेड़तिया कहलाये। (क्षत्रिय जाति सूची पृ. 35)

26) रायमलोत :-

मेड़ता राव दूदा के पुत्र रायमल को वीरमदेव ने रायाण का पट्टा प्रदान किया। यह इनका मुख्य ठिकाना था। वि. 1583 के खानवा युद्ध में महाराणा सांगा के पक्ष में अपने भाई वीरमदेव के साथ यह भी युद्ध में लड़े और वीरगति को प्राप्त हुए। इन्हीं रायमल के वंशज रायमलोत मेड़तिया हैं।

27) रायमलोत कांधल मेड़तिया :-

दूदाजी (जोधपुर) के भाई कांधल के वंशज (कांधलोत) राठौड़ कहलाते हैं। कांधलजी के बड़े पुत्र वाघ थे। इनके तीन पुत्र बणीर,नारायणदास (ठि. धमोरा) व रायमल थे। रायमल के वंशज रायमलोत कांधल कहलाते हैं। इनके वंशज रोहतक के पास डम्माणा गांव में बसते हैं।

1. बनीरोत :- 

बाघ के पुत्र बणीर से बनीरोत कान्धल राठौड़ों की उत्पत्ति हुई।

बनीरोत राठौड़ों की खांपें :-

1) मेघराजोत बनीरोत :-

बणीर के बड़े पुत्र मेघराज के वंशज मेघराजोत बनीरोत कहलाते हैं। इनका ठिकाना ऊंटवालिया था।

2) मैकरणोत बनीरोत :-

बणीर के बड़े पुत्र मैकरण के वंशज हैं। इनके वंशज कानासर में बसते हैं।

3) अचलदासोत बनीरोत :-

बणीर के बड़े पुत्र अचलदास के वंशज अचलदासोत बनीरोत कहलाते हैं। इनकी जागीर में घांघू गांव था।

4) सूरसिंहोत बनीरोत :-

बणीर के बड़े पुत्र मालदेव के पुत्र सांवलदास के पुत्र सूरसिंह के वंशज सूरसिंहोत बनीरोत हैं। वे चलकोई गांव में निवास करते हैं।

5) जयमोल बनीरोत :-

सांवलदास (चूरू) के पुत्र जयमल के वंशज हैं। इंद्रपुरा में निवास करते हैं।

6) प्रतापसिंह बनीरोत :-

चूरू के ठाकुर सांवलदास के पुत्र बलभद्र के पौत्र तथा भीमसिंह के पुत्र प्रतापसिंह थे। प्रतापसिंह के वंशज प्रतापसिंहोत बनीरोत हैं। लोसणा, तोगावास आदि इनकी जागीर में थे।

7) भोजराजोत बनीरोत :-

प्रतापसिंह के भाई भोजराज के वंशज भोजराजोत बनीरोत कहलाते हैं। जसरासर, दूधवा मीठा इनके ठिकाने थे।

8) चत्रसालोत बनीरोत :-

भोजराज के भाई कुशलसिंह चूरू के पुत्र चत्रशाल के वंशज हैं। देपालसर इनका ठिकाना था।

9) नाथमलोत बनीरोत :-

चत्रशाल के भाई इन्द्रसिंह (चूरू) के पुत्र नथूसिंह के वंशज हैं। इनकी जागीर सोमासी में थी।

10) धीरसिंहोत बनीरोत :-

चूरू के इन्द्रसिंह के पुत्र संग्रामसिंह के पुत्र धीरसिंह के वंशज धीरसिंहोत बनीरोत कहलाते हैं। संग्रामसिंह के बाद धीरसिंह चूरू के ठाकुर रहे।

11) हरीसिंहोत बनीरोत :-

घीरसिंह के भाई हरिसिंह भी चूरू के ठाकुर थे। इनके वंशज हरीसिंहोत बनीरोत कहलाते थे।

2. रावतोत कांधल :-

रावत कांधलजी के दूसरे पुत्र का नाम राजसिंह था। कांधलजी की मृत्यु उपरान्त रावत की उनके बड़े पुत्र बाघसिंह की शीघ्र मृत्यु हो गई तथा पुत्र बणीर अल्पायु थे। इस कारण राजसिंह को पिता की पर्ववत पदवी मिली तथा राजासर का ठिकाना मिला। राजासर बीकानेर के चार रियासत ठिकानों में से एक था। यही राजासर बाद में रावतसर कहा जाने लगा। ‘रावत’ पदवी के कारण राजसिंह के वंशज ‘रावतोत’ कहलाये।

3. सांईदासोत कांधल :- 

कांधलजी के पुत्र अरड़कमल को साहवा का ठिकाना मिला। कामरां ने जब भटनेर पर आक्रमण किया उस समय भटनेर का किला अरड़कमल के पुत्र खेतसी के अधिकार में था। खेतसी के पुत्र साईदास के वंशज सांईदासोत कांधल कहलाते हैं।

4. परवतोत :-

कांधल के पुत्र परवत के वंशज। एक कोटड़ी बिल्यू में बताई जाती है। (राठौड़ वंश – वंशावली – फूलसिंह राठौड़ पृ. 44)

मेड़तिया राठौड़ वंश की कुलदेवी :-

मूल राठौड़ वंश होने से इस वंश की कुलदेवी पंखिनी/नागणेचिया माता है।
नागणेचिया माता के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए Click करें >

यदि आप मेड़तिया राठौड़ वंश से हैं और नागणेचिया माता से इतर किसी देवी को कुलदेवी के रूप में पूजते हैं तो कृपया Comment Box में बताएं। अथवा इस वंश से जुड़ी कोई जानकारी देना चाहते हैं तो भी आप Comment Box में अपने सुझाव व विचार दे सकते हैं।

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