Chaitra Navratri 2023 : Puja Vidhi | Dates | Puja Muhurt| चैत्र नवरात्रि का महत्त्व व इतिहास

Navratri 2023 puja vidhi, muhurt, dates : नवरात्रि का पावन पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह (शारदीय नवरात्रि) में। चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी आती है। तो आइये सबसे पहले हम  जानते हैं कि नवरात्रि वर्ष में दो बार क्यों मनाई जाती है –

नवरात्रि वर्ष में दो बार क्यों?

नवरात्रि ऐसा इकलौता उत्सव है जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र माह में जब ग्रीष्मकाल की शुरुआत होती है और दूसरा आश्विन माह में जब शीतकाल की शुरुआत होती है। गर्मी और सर्दी के मौसम में सौर-ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि इस दौरान फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे उत्तम माना जाता है। प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं, इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। पहली बार इसे सत्य व धर्म की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है तो वहीं दूसरी बार श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में।

चैत्र नवरात्रि 2023  

भारतवर्ष में चैत्र नवरात्रि पर्व का बहुत ही विशेष स्थान है क्योंकि इसी दिन से हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। 2023 में चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च, बुधवार से हो रही है। इसी दिन से विक्रम नवसंत्सवर 2080 की शुरुआत होगी। इसे वासंतिक नवरात्र भी कहा जाता है। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है।

Navratri 2022 Dates

Navratri Durga Puja Vidhi Video :

नवरात्रि का महत्त्व | Significance & History of Navratri in Hindi

नवरात्रि देवी दुर्गा माता को समर्पित एक पवित्र, शुभ व मंगलकारी  हिन्दू पर्व है। नौ दिनों का यह त्यौहार देवी दुर्गा के प्रति भक्ति – आराधना, मनोरंजन से भरपूर डांडिया नृत्य, अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों से परिपूरित है। इन नौ दिनों में भक्त दुर्गा माता के नौ रूपों – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, कालरात्रि, महा गौरी और सिद्धिदात्री की क्रमशः पूजा करते हैं। 

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नवरात्रि का अर्थ –

नवरात्रि में पहला शब्द ‘नव’ का अर्थ है ‘ नौ ‘ तथा रात्रि का अर्थ है ‘ रात ‘ , अर्थात नौ रातों तक मनाया जाने वाला उत्सव। इस उत्सव को ‘ दुर्गा पूजा ‘ के नाम से भी जाना जाता है। यद्यपि यह सम्पूर्ण भारतवर्ष का त्यौहार है लेकिन गुजरात व बंगाल में नवरात्रि का भव्य समारोह होता है। नवरात्रि के अंतिम दिन दशहरा मनाया जाता है।  इसे विजयादशमी भी कहा जाता है।  नवरात्रि के इन शुभ दिनों में दुर्गा के रूप में शक्ति (Power) की पूजा की जाती है।

घटस्थापना –

घटस्थापना या कलशस्थापना पूजा नवरात्रि के मुख्य रिवाजों में से एक है।  घटस्थापना नवरात्रि के नौ दिनों की शुरुआत का प्रतीक है। कलशस्थापना पूजा के द्वारा देवी शक्ति का आह्वान किया जाता है। इस पूजा के अन्तर्गत एक कलश में जौ के बीज बोये जाते हैं।  यह पूजा अमावस्या के बाद प्रतिपदा को अर्थात नवरात्रि के प्रथम दिन की जाती है।

कन्या पूजन –

देश के कुछ स्थानों पर नवरात्रि के दौरान कन्या पूजा की जाती है। इसमें नौ बालिकाओं को देवी दुर्गा के नौ अवतार मानकर उनकी पूजा की जाती है। इस पूजा में कन्याओं के पैरों को धोया जाता है और उन्हें उपहार दिए जाते हैं। देवी को समर्पित पर्व होने के कारण नवरात्रि के दिनों में कुछ समुदायों में महिलाओं की पूजा की जाती है।

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महिषासुर का अंत –

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महिषासुर नामक एक दैत्य ने अपने आतंक से तीनों लोकों को त्रस्त कर रखा था। सभी देवता मिलकर भगवान शिव के पास गए और उनसे महिषासुर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना की।  तब भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा की शक्तियों ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की जानिए कैसे पड़ा माता शक्ति का नाम दुर्गा ? जिसे देवताओं ने भी अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये। जानिये कैसे प्रकट हुई महादुर्गा, कैसे मिले देवी को अस्त्र-शस्त्र।  देवी दुर्गा की सुंदरता देखकर महिषासुर उन पर मोहित हो गया।  वह देवी दुर्गा से विवाह करना चाहता था। माँ दुर्गा ने उसके सामने शर्त रखी की यदि वह देवी दुर्गा को युद्ध में परास्त कर देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। महिषासुर और देवी दुर्गा के बीच युद्ध शुरू हुआ जो नौ रातों तक चला और अंत में देवी ने उसका प्राणान्त कर दिया।

चैत्र नवरात्रि 2023 घटस्थापना मुहूर्त :

  • घटस्थापना – बुधवार, 22 मार्च 2023 को
  • घटस्थापना मुहूर्त – —। 
  • इसके अलावा दूसरा शुभ मुहूर्त- —।

नवरात्रि : देवी के पूजन की संक्षिप्त सरल व उचित विधि

माँ जगदम्बा अपने भक्तों का कल्याण करती है।  माँ की आराधना के लिए संक्षिप्त विधि प्रस्तुत है।

सर्वप्रथम आसन पर बैठकर जल से तीन बार शुद्ध जल से आचमन करे- “ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम:”

फिर हाथ में जल लेकर हाथ धो लें। हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुरि बांध कर दुर्गा देवी का ध्यान करें।

आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव।
यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।।

‘श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:।’ दुर्गादेवी-आवाहयामि! – फूल, चावल चढ़ाएं।
‘श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:’ आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि।– भगवती को आसन दें।
श्री दुर्गादेव्यै नम: पाद्यम, अर्ध्य, आचमन, स्नानार्थ जलं समर्पयामि। – आचमन ग्रहण करें।
श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि – दूध चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि – दही चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि – घी चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि – शहद चढा़एं
श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि – शक्कर चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी पंचामृत समर्पयामि – पंचामृत चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी गंधोदक समर्पयामि – गंध चढाएं।
श्री दुर्गा देवी शुद्धोदक स्नानम समर्पयामि – जल चढा़एं। आचमन के लिए जल लें,
श्री दुर्गा देवी वस्त्रम समर्पयामि – वस्त्र, उपवस्त्र चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी सौभाग्य सूत्रम् समर्पयामि-सौभाग्य-सूत्र चढाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै पुष्पमालाम समर्पयामि-फूल, फूलमाला, बिल्व पत्र, दुर्वा चढ़ाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै नैवेद्यम निवेदयामि-इसके बाद हाथ धोकर भगवती को भोग लगाएं।
श्री दुर्गा देव्यै फलम समर्पयामि– फल चढ़ाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै ताम्बूलं समर्पयामि -तांबुल (सुपारी, लौंग, इलायची) चढ़ाएं । मां दुर्गा देवी की आरती करें।

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