
यह मन्दिर भगवान् श्रीकृष्ण के ही स्वरूप श्यामजी का है । श्यामजी की प्रतिमा के विषय में महाभारत की इस कथा का उल्लेख है कि श्रीकृष्ण ने पाण्डव भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक का सिर दान में मांग लिया था, फिर उसको एक पर्वत शिखर पर स्थित कर दिया जहाँ से उसने सम्पूर्ण महाभारत का युद्ध देखा । तदनन्तर श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि वह कलयुग में उन्ही के “श्याम” नाम से प्रसिद्ध और पूजित होगा । वही श्यामजी उपरोक्त खाटूग्राम में प्रतिष्ठित है और “खाटूश्यामजी” नाम से विख्यात है ।
बर्बरीक के धड़ और पाँवो के लिए मान्यता है कि इनका धड़ रींगस या टहला में पूजा जाता है और चरण रामदेवजी के पूजे जाते है ।

प्राचीन समय में इस कुण्ड के स्थान पर एक बहुत बड़ा टीला था । उस पर आक का पेड़ उग आया । वहाँ इदा जाट की गायें चरने आया करती थीं । आक के वृक्ष के समीप जाते ही गाय का दूध टपक जाया करता था । एक दिन इदा गाय के साथ गया और इस प्रक्रिया को देखा, तब उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, सोचने लगा कि इस आक के पास आने पर दूध पीने वाला कौन हो सकता है । उसी रात इदा जाट को स्वप्न में दिखाई दिया कि तुम्हारी गाय का दूध पीने वाला आक नहीं “श्याम” नाम से कुण्ड में मैं हूँ । यहाँ के राजा से कहकर कुण्ड खुदवा कर मूर्ति निकलवाओ । समस्त संसार मेरी “श्याम” नाम से पूजा करेगा । राजा से कहने पर उस कुण्ड से मिट्टी निकालने पर, श्याम मूर्ति प्रकट हुई, उसी की पूजा की जाती है । कुण्ड का नाम ही “श्याम कुण्ड” पड़ गया ।

Jai shree shyam
मनसा देवी मंदिर हसामपुर
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