Khatri Samaj History in Hindi | Kuldevi of Khatri Samaj |
सूर्यवंशोद्भवाः सन्ति क्षत्रिया खत्रिसंज्ञकाः।
वंशजा रामचन्द्रस्यायोध्याधीशस्य विश्रुताः।।
लाहौरनगरे राज्यं चकार लवसंज्ञकः।
कसूरनगरे राज्यं कृतवान् कुश संज्ञकः।।
लवस्य वंशजः सोढीरायः वंशप्रवर्तकः।
सोढीसंज्ञकाः तस्य कुले जाताः प्रतापिनः।।
गुरुगोविंदसिंहादि पूजनीयाः मनस्विनः।
कुशस्य वंशजा जाता वेदिनो वेद पारगाः।।
गुरुनानकदेवादि ख्याता युग प्रवर्तकाः।
कुलदेवी हिंगलाजाख्या खत्री कुलसुपूजिता।।
खत्री (Khatri) संज्ञक क्षत्रिय सूर्यवंश में उत्पन्न हुए। वे अयोध्यानरेश भगवान् राम के वंशज हैं। एक पुत्र लव ने लाहौर (Lahore) नगर में तथा दूसरे पुत्र कुश ने कसूर (Kasur) नगर में राज्य किया। लव का वंशज सोढीराय वंश-प्रवर्तक राजा हुआ। उसके वंशज सोढी कहलाए। गुरु गोविंदसिंह आदि मनस्वी और प्रतापी वंशज उस वंश में हुए। कुश के वंशज वेद के पारंगत विद्वान होने के कारण बेदी कहलाए। गुरु नानकदेव आदि युगप्रवर्तक महान सन्त उस वंश में हुए। खत्री राजवंश की कुलदेवी हिंगलाज माता (Kuldevi Hinglaj Mata) है।
विख्यात इतिहासकार और कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने ‘खत्रियों की उत्पत्ति’ नामक एक ऐतिहासिक लेख लिखा है जो हिंदी प्रचारक पब्लिकेशन्स वाराणसी द्वारा प्रकाशित ग्रन्थ भारतेन्दु समग्र में छपा है। वे लिखते हैं ‘श्रेष्ठ वर्ग के अधिकारी लोगों में खत्री भी हैं। .ये लोग अपने को क्षत्री कहते हैं। इस बात को मैं भी मानता हूँ कि इनके आद्य पुरुष क्षत्री थे, क्योंकि जो-जो कहानियां इस विषय में सुनी गई हैं उनसे स्पष्ट मालूम होता है कि ये क्षत्री वंश में हैं।’
राजपूत समाज को प्राचीनकाल में क्षत्रिय या क्षत्री कहा जाता था। जैन और बौद्ध धर्मों के प्रचार-प्रसार के कारण अहिंसा को परम धर्म माना जाने लगा और अधिकांश क्षत्री बौद्ध या जैन हो गए। उनमें से कुछ को आबू के अग्निहोत्र संस्कार से पुनः अपने वर्ग में वापस लिया गया। वे राजपूत कहलाए।
भगवान राम के पुत्र लव और कुश के वंशज क्षत्री वर्ण में ही बने रहे। लव की राजधानी लाहौर तथा कुश की कसूर थी। उस क्षेत्र के क्षत्री मूल नाम से क्षत्री ही कहलाते रहे।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र लिखते हैं -‘श्री गुरु अंगदजी ने गुरुमुखी अक्षर बनाए उसमें ‘क्ष’ अक्षर है नहीं उसके स्थान पर केवल मूर्धन्य ‘ख’ अक्षर है। अत एव देशज बोली में सब खत्री कहलाने लगे।’भारतेन्दु गुरु गोविंदसिंह का उद्धरण देते हुए लिखते हैं – ‘गुरु गोविंदसिंह ने अपने ग्रन्थ नाटक के दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे अध्याय में लिखा है कि सब खत्री मात्र सूर्यवंशी हैं। रामजी के दो पुत्र लव और कुश ने मद्र देश के राजा की कन्याओं से विवाह किया और उसी प्रान्त में दोनों ने नगर बसाए, कुश ने कसूर और लव ने लाहौर। उन दोनों के वंश में कई सौ वर्ष लोग राज्य करते चले आए। ‘
इतिहासकार डॉ. सत्यकेतु अग्रवाल ने अग्रवाल जाति से सम्बंधित अपने शोधग्रंथ में प्राचीन गणराज्यों का उल्लेख किया है। खत्री गणराज्य के विषय में वे लिखते हैं – ‘ग्रीक इतिहासकार मैक्रिंडल ने अपने ग्रन्थ में क्सैथ्रोई नामक शक्तिशाली गणराज्य का वर्णन किया है। इसका संस्कृत रूप क्षत्रिय है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वार्ताशस्रोपजीवी क्षत्रिय गणराज्य का उल्लेख किया गया है। इस प्राचीन गणराज्य के प्रतिनिधि खत्री जाति के लोग हैं जो मुख्यतया मध्य पंजाब में रावी नदी के समीप है। ‘
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Trehan khandan ki kul devi devta kyahai
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How can I know detsiled history of khatris. Any link with Tretayug.
Kohli khattri Jo khukran बिरादरी से belong krte h उनके हरिद्वार m prohit chakhan makhan k hweli m h