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श्रीमाली ब्राह्मण व वैश्य समाज का इतिहास व कुलदेवियाँ Gotra wise Kuldevi List of Shrimali Community

Shrimali Brahmin and Shrimali Vanik Samaj Kuldevi List| History of Shrimali Brahmin and Shrimali Vanik |

पण्डित ज्वालाप्रसाद मिश्र ने पुराणों, ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड आदि ग्रंथों के सन्दर्भ से अपनी पुस्तक ‘जातिभास्कर’ में श्रीमाली समाज की उत्पत्ति का वर्णन किया है। स्कंद पुराण के कल्याण खंड में लिखा है कि एक समय गौतम ऋषि ने हिमालय के समीप भृगुतुंग क्षेत्र में शिवजी की आराधना की। शिवजी ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो गौतम ऋषि बोले , ऐसा स्थान बताइये जहाँ निर्भय होकर तपस्या करूँ। तब शिव जी ने कहा सौगन्धिक पर्वत के उत्तर अर्बुदारण्य से वायव्य कोण की ओर जाओ, वहां त्र्यंबक सरोवर के समीप आश्रम बनाओ, वह विश्वप्रसिद्ध तीर्थ होगा। तब गौतम जी ने वहां जाकर कठिन तपस्या की। तब ब्रह्मादिक सब देवताओं ने आकर वर दिया कि आज से यह गौतम आश्रम नाम से विख्यात होगा और सब देवता यहां निवास करेंगे यह कहकर देवता चले गए। आश्रम का नाम श्रीमाल क्षेत्र हुआ। इस नाम का कारण यह है कि भृगु ऋषि की अद्वैतरूपिणी श्री नाम की एक कन्या थी। नारद जी ने विष्णु भगवान के निमित्त वह कन्या देने को कहा। भृगु ऋषि सम्मत हुए तब भगवान विष्णु ने नारद के वचन से माघ शुक्ल एकादशी को उसका पानीग्रहण किया। तब नारद जी बोले, भगवन् ! अब इस वधू को त्र्यम्बक सरोवर में स्नान कराया जाए तब यह अपने स्वरूप को पहचानेगी। स्नान करते ही वह कन्या लक्ष्मी स्वरुप को प्राप्त हो गई। सब देवता विमानों में बैठ स्तुति करने लगे। तब लक्ष्मी ने देवताओं से कहा जैसा यहां का आकाश विमानों सुशोभित है, वैसी यहां की पृथ्वी घरों से शोभित हो जाए। अनेक गोत्र के ऋषि मुनि यहां आवें। मैं उनको यह भूमि दान करुंगी, अपने अंश से मैं यहां निवास करूंगी। देवताओं ने तथास्तु कहा। विश्वकर्मा ने वहां सुंदर नगर बनाया, तब ब्रह्मा जी बोले – श्री के उद्देश्य से देवताओं की विभाग माला से यह पृथ्वी व्याप्त हुई है। इस कारण श्रीमाल नाम से यह नगर विख्यात होगा।

तब भगवान् विष्णु के दूत अनेक ऋषि-मुनियों को बुला कर लाए। कौशिकी, गंगा तटवासी गयाशीर्ष, कालिंजर, महेन्द्राचल, मलयाचल, गोदावरी, प्रभास, उज्जयंत, गोमती, नंदिवर्द्धन,सौगन्धिक पर्वत, पुष्कर, प्रयाग, कुरुक्षेत्र, हेमकूटआदि अनेक तीर्थों से 45 हजार ब्राह्मण आये। उनको बड़े सत्कार के साथ घरों में सब सामग्री रखकर लक्षदान करने लगी, और सबसे पहले गौतम की पूजा की इच्छा की। इसका सिंध देशवासी ब्राह्मणों ने विरोध किया, तब आंगिरस ब्राह्मणों ने कहा तुम महातपस्वी गौतम का विरोध करते हो इस कारण तुमसे वेद पृथक हो जाएगा। वह यह सुन कर चले गए वे सिंधुपुष्करणा ब्राह्मण कहलाते हैं।

जब लक्ष्मी ने कहा पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी और साथ में चार लाख गायें दी। वरुण देवता ने उस समय देवी लक्ष्मी को 1008 स्वर्ण के कमलों की माला पहनाई। माला के पत्रों में स्त्री-पुरुषों के प्रतिबिंब दिखने लगे। और वह प्रतिबिंब के स्त्री-पुरुष भगवती की इच्छा से कमलों से बाहर प्रकट हो गए।उन्होंने लक्ष्मी से पूछा कि हमारा नाम और कर्म क्या है ? भगवती बोली, हे प्रतिबिम्बोत्पन्न ब्राह्मणों ! तुम नित्य सामगान किया करो, और श्रीमाल क्षेत्र में कलाद नाम वाले (जिनको त्रागड सोनी कहते हैं) होंगे; और ब्राम्हणों की स्त्रियों के आभूषण बनाना तुम्हारा काम होगा।

इस प्रकार यह प्रतिबिंब से उत्पन्न ने 8064 कलाद त्रागड ब्राह्मण हुए। उनमें से वैश्यधर्मी, बसोनी हुए, यह पठानी सूरती अहमदाबादी खम्बाती ऐसे अनेक भेद वाले हुए। यह जिन ब्राह्मणों के पास रहे उन्हीं के नाम से कलाद त्रागड ब्राह्मणों का गोत्र चला इस प्रकार यह त्रागड ब्राह्मण भी अध्ययन करते और भूषण बनाते। फिर ब्राह्मणों के धन आदि की रक्षा के लिए विष्णु ने अपनी जंघा से गूलर, दण्डधारी दो वैश्य उत्पन्न किए और उनको ब्राह्मणों की सेवा में लगाया। गोपालन व्यापार उनका कार्य हुआ और 90 हजार वैश्यों ने वहां निवास किया और उनके स्वामी ब्राह्मणों के गोत्र से उन वैश्यों के गोत्र हुए। उस नगर के पूर्ववासी प्राग्वाट पोरवाल कहलाये, दक्षिण के पटोलिया, पश्चिम के श्रीमाली और उत्तर के उर्वला कहलाए।

श्रीमाली ब्राह्मण :

एक बार भगवान् विष्णु और भगवती श्री (लक्ष्मी) ने त्रयम्बक सरोवर में स्नान किया। भगवती श्री ने भूमिदान करने की इच्छा से देवताओं को कहा –

श्रीरुवाच-

तदिदं श्रूयतां देवा मम मानसिकं मतम् |
अत्रर्षयो महात्मानो नानागोत्रास्तपस्विनः ||
सह पत्नीभिरायान्तु पुत्रैः शिष्यैः समावृताः |
इमां भूमिं प्रदास्यामि ब्राह्मणेभ्यः समाहिताम् ||
अत्रांशेन ममैवास्तु निवासः शाश्वतीः समाः | 

विष्णुरुवाच-

त्वं देवि परमा शक्तिः यदिच्छसि तथा करु |
पुरं निमेषमात्रेण विश्वकर्मा विनिर्ममे ||
ततः श्रीमालनाम्ना तु लोके ख्यातमिदं पुरम् |
पंचोना खलु पंचाशत्सह्स्त्राणि द्विजन्मनाम् |
अष्टादश तथैवासन् गोत्राणां तत्र भूपते |
ततः श्रीमालिनो विप्रा प्रवत्स्यन्ते कलौ युगे |(ब्राह्मणोत्पत्तिमार्तण्ड) 

           लक्ष्मीजी ने कहा- हे! देवताओं मेरे मन की भावना यह है कि यहाँ अनेक गोत्रों के तपस्वी ऋषि-महात्मा अपने परिवार और शिष्यगणों के साथ आकर स्थायी रूप से बसे। मैं ब्राह्मणों को इस त्रयम्बक सरोवर क्षेत्र की भूमि का दान करुँगी। यह अनन्तकाल तक मेरे अंश रूप में निवास रहेगा।

भगवान् विष्णु बोले, हे देवी ! आप परमशक्ति हैं। आपकी जैसी अभिलाषा है वैसा ही करिए। तब लक्ष्मीजी के इच्छानुसार विश्वकर्मा ने, भव्य नगर का निर्माण किया जो संसार में “श्रीमाल” नाम से प्रसिद्ध हुआ। उस नगर में पेंतालीस हजार ब्राह्मण आकर बसे। उन सबके अठारह गोत्र हुए। वे सब श्रीमाली ब्राह्मण कहलाए। कलयुग में उनका सर्वत्र प्रसार प्रवास होगा। वर्तमान में चौदह गोत्र हैं, किन्तु मूल रूप में अठारह गोत्रों का वर्णन है।

श्रीमाली ब्राह्मण समाज के गोत्र व कुलदेवियाँ :

Gotra wise Kuldevi List of Shrimali Samaj : श्रीमाली समाज की गोत्र के अनुसार कुलदेवियों का विवरण इस प्रकार है –

Kuldevi List of Shrimali Samaj श्रीमाली समाज के गोत्र एवं कुलदेवियां 

सं.कुलदेवी ऋषिगोत्र (Rishi Gotra of Shrimali Samaj)
1.कमलेश्वरी माता (Kamaleshwari Mata)कौशिक
2.क्षेमंकरी माता (Kshemkari Mata)शाण्डिल्य
3.खरानना माता (Kharanana Mata)मौदगल
4.चामुण्डा सुन्धा माता (Chamunda/ Sundha)लौडवान
5.दत्तचण्डीमाता (Datta Chandi Mata)हरितस
6.नागिणी माता (Nagini Mata)औपमन्यव
7.निम्बजा माता (Nimbaja Mata)गौतम
8.बगस्थली माता (Bagasthali Mata)कपिंजल
9. बन्धुक्षणी माता (Bandhukshani Mata)भारद्वाज
10.बालगौरीमाता (Balgauri Mata)वत्सस
11.महालक्ष्मीमाता (Mahalaxmi Mata)चान्द्रास
12.योगेश्वरी माता (Yogeshwari Mata)काश्यप
13.वटयक्षिणी माता (Vata Yakshini Mata)पाराशर
14.वरुणामाता (Varuna Mata)सनकस

श्रीमाली वैश्य :

जब लक्ष्मीजी ने श्रीमालनगर का निर्माण कराके वहाँ श्रीमाली ब्राह्मणों तथा त्रागड सोनियों को बसा दिया तब व्यापार कर्म के लिए भगवान् विष्णु ने वैश्यों को उत्पन्न किया और श्रीमाल क्षेत्र में वाणिज्य पशुपालन तथा खेती करने का आदेश दिया –

ततो मनोगतं ज्ञात्वा देव्या देवो जनार्दनः |
उरु विलोकयामास सर्गकृत्ये कृतादरः ||
यज्ञोपवीतिनः सर्वे वणिज्योऽथ विनिर्ययुः |
ते प्रणम्य चतुर्बाहुमिदमूचुरतन्द्रिताः ||
अस्मानादिश गोविन्द कर्मकाण्डे यथोचिते |
तत् श्रुत्वा प्रणतान् विष्णुर्वनिजः प्राह तानिदं |
पाशुपाल्यं कृषि र्वार्ता वाणिज्यं चेति वः क्रियाः ||
प्राग्वाटादिशि पूर्वस्यां दक्षिणस्यां धनोत्कटाः |
तथा श्रीमालिनो याम्यांमूत्तरस्या मथो विशः ||

वैश्यों के बिना श्रीमाल वासियों का जीवननिर्वाह कैसे होगा ? इस चिंता से चिन्तित लक्ष्मीजी का मनोभाव भगवान् विष्णु जान गए। उन्होंने सृष्टि रचना के प्रयोजन से अपनी जंघाओं पर दृष्टिपात किया। वहाँ यज्ञोपवीत धारी वैश्य प्रकट हो गए। उन्होंने भगवान् विष्णु को प्रणाम करके अपने लिए कर्तव्य कर्म की अभिलाषा प्रकट की। भगवान् विष्णु बोले, तुम वाणिज्य कृषि और पशुपालन का काम करो।

वे वैश्य श्रीमाल नगरी में बस गए। जो श्रीमाल शहर के पूर्विभाग में रहे वे पोरवाल कहलाए। दक्षिणी भाग में बसने वाले श्रीमाली और उत्तर वाले उवला कहलाए।

एवमेते स्वर्णकाराः श्रीमालिवणिजस्तथा |
प्राग्वडा गुर्जराश्चैव पट्टवासास्तथापरे ||

                    इस प्रकार श्रीमाल क्षेत्र में सोनी, श्रीमाली वैश्य, पोरवाल, गूजर पटेल पटवा आदि वैश्य हुए।

श्रीमाली वैश्य कुलदेवी –

कृषिगोरक्ष्यवाणिज्य स्वर्णकार क्रियास्तथा |
तेषां व्याघ्रेश्वरी देवी योगक्षेमस्यकारिणी |

वे सब खेती, पशुपालन, वाणिज्य और सुनारकर्म करने वाले वैश्य हुए। उनकी कुलदेवी व्याघ्रेश्वरी है।

जिन कुलदेवियों व गोत्रों के नाम इस विवरण में नहीं हैं उन्हें शामिल करने हेतु नीचे दिए कमेण्ट बॉक्स में  विवरण आमन्त्रित है। (गोत्र : कुलदेवी का नाम )। इस Page पर कृपया इसी समाज से जुड़े विवरण लिखें। श्रीमाली समाज से सम्बन्धित अन्य विवरण अथवा अपना मौलिक लेख  Submit करने के लिए Submit Your Article पर Click करें।आपका लेख इस Blog पर प्रकाशित किया जायेगा । कृपया अपने समाज से जुड़े लेख इस Blog पर उपलब्ध करवाकर अपने समाज की जानकारियों अथवा इतिहास व कथा आदि का प्रसार करने में सहयोग प्रदान करें।

49 thoughts on “श्रीमाली ब्राह्मण व वैश्य समाज का इतिहास व कुलदेवियाँ Gotra wise Kuldevi List of Shrimali Community”

  1. Comment * Hii I m Kamlesh swami
    me Bhi Hindu Garo Bhraman Hu But muje mera Gotra pata nahi he… Me Schedule caste ka Bhraman Hu…. so pls Help me

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  2. Kaushik gotriya Shrimali Brahmino ki kuldevi Mahalakshmi Kamaleshvari Devi hai. Sirf Kamaleshvari likhne se logon ko ghalat jaankaari milegi

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  3. Dear Sir, mera gotra jogijajam hai or main jaipur rajasthan jaati se maali hoon or meri kul devi ka naam MORAJ MATA hai Kya aap in ka isthan ya wo kis jagah hai batane ki kripya kare

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  4. main Gujarati bhamain maru soni hu.mera kadi meucha he, to mera kuldevi kun hai ? aur uska mul sthan kunsa hai ?

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  5. मैं श्रीमाली ब्राह्मण हु, गोत्र उपमन्यु है, जब मैं कुलदेवी ढूंढता हु तो नागिनी माता आता है, पर लोकेशन नागणेच्या माता कल्याणपुरा आता है जो सिर्फ राठौड़ की कुलदेवी है, वैसे मैं रेगुलर दर्शन को जाता हूं, पर वहां कोई इतिहास नही है, सिर्फ राठौड़ का इतिहास है, अगर कोई जानता है या जानकारी है तो बताये।

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  6. MERA NAAM NARESH KUMAR PATHAK HAI. LODWAN GOTRA KA SHRIMALI BRAHMIN HOON. BUT KUCH HAMARE HI BAHDHU KAHTE HAIN KI PATHAK SHRIMALI ME NAHI AATE HAI
    SO PLZ EXPLANE IT.

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  7. me mali hu or gotra dhalwal h pr kuldevi jakhar mata h
    muje plz btaye ki hmari kuldevi konsi h or kha h plz tale me
    jakhar mata h to kha h or itihas kya h

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  8. Mai Mali samaj.singodiya gotta se hu.mujhe singodia gotra ki kuldevi mata k bare me btaye.v mandir konsi jgh pr h

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  9. Deepesh mehta
    Shrimali jain….. Bhinmal…. Kuldevi.. Baksthali mata…. Can you please provide original मुल गोत्र of कपींजल ऋषी

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    • सर मै दसा श्रीमाली समाज से हु और मध्यप्रदेश के खरगोन जिला का रहवासी हु मुझे मेरे समाज की कुलदेवी ओर समाज के सन्दर्भ में विस्तृत्व जानकारी चाहिये

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  10. चन्द्रशेखर दवे गोधा (श्रीमाली) बिलीया, चित्तौड़गढ़ मेवाड़ का रहने वाला हूँ। दवे गोधा की कुलदेवी माँ खरानना माता जी हैं। वो भीनमाल के सावीधर गांव में स्थित हैं।
    मुझे श्रीमाली ब्राह्मण जाति की उत्पत्ति एवं पूरी जानकारी उपलब्ध कराने का कष्ट करें।

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  11. Aapne shrimali samaj ki achi jankari hai…Aapse nivedan hai ki …….Muje meri kuldevi mata ka…Mandir kha par haai….Ye btaye…..yegeswari mata hmari kuldevi hai …Inka mandir kha par hai…Rajasthan…Mein…

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  12. आपकी इस जानकारी से में अति प्रसन्न हुआ हूँ, इस महत्वपूर्ण जानकारी के लिए धन्यवाद। मैं श्रीमाली ब्राह्मणों के स्वर्णकार ब्राह्मण जैसलमेर से हूँ, मेरा गोत्र लायचा है।

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  13. Hi, I am Mali (Saini) and my gotra is “MITAWA” from Bhopalgarh, Khetri. Please tell me about our Kul Devi.

    Thank You,
    Deepak

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  14. Hi i am Darshan J Joshi from village Vellangri Dist. Sirohi Rajasthan my kuldevi is Baneshwari mata at village siloeya Dist Sirohi my gotra is vacchas.

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    • वच्छस गोत्र की कुलदेवी बाल गौरी हैं ।

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  15. Vartman me shrimali bhrahman ke parasar gotra ki kuldevi ka mandir.. Bhinmal ke pas.. Bhinmal se raniwada road par Aaldi name ke gam me he…. Apne jis chitod mandir ki bat batai wo to hame. Pata bhi nahi tha… Or hamara shrimali bhrahman 99% Aaldi wale mandir ke bare me hi jante he… Kripya us jagah ka name bhi parasar gotra ke sath add kijiye.

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  16. Mera naam Radhey Shyam saini he or gotra Bhabeva he hamari kul devi konsi he hame nahi pata please sir hame bataye .

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  17. श्रीमाली वैश्य समाज का इतिहास वर्णन

    स्कन्द पुराण के अनुसार उध्र्वरेता ऋषियों महात्माओं की सेवा के लिए कामधेनु के द्वारा 36000 शिखा सूत्र घारी मनुष्य प्रकट किये गये वे सभी महा बली वैश्य थे उन वैश्यों के लिए श्री लक्ष्मी जी द्वारा श्रीमाल नगर का निर्माण करा कर ब्राह्मणों और वैश्यों को वहाँ बसा दिया गया । वैश्य अपने कर्तव्य, कर्म, वाणिज्य, कृषि, पशु पालन कर ब्राह्मणों की सेवा करते हुए अपने जीवन निर्वाह करने लगे। जो वैश्य दक्षिण भाग बसे वे श्रीमाली कहलाए । श्रीमाल नगर वर्तमान में भिन्नमाल के नाम से सुख्यात है। यह नगर उस समय काफी समृद्धिशाली व व्यापार का केन्द्र था प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्नेन सांग ने ई.स. 641 में इस शहर की समृद्धि का वर्णन यात्रा वृतांतों में किया । काल क्रम से कुदरती आफत, अकाल आदि कई कारणों से धीरे धीरे लोगों ने अन्य जगह पलायन शुरू किया और इस तरह विभिन्न क्षेत्रों में जीवन यापन हेतु अलग अलग स्थानों मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट,ª राजस्थान तथा अन्य स्थानों पर बस गये । यथा उन स्थानों पर जाकर अपने जीवन यापन के लिए विभिन्न क्रिया कलापों – व्यापार आदि में संलग्न हो गयेे और श्रीमाली महाजन के नाम से जाने जाने लगे ।
    भारत में गोत्र पद्धति के जरिये गोत्र को पता चलता है । इससे मूलपिता और मूल परिवार जिससे संबंध रखते हैं का पता चलता है। सभी जातियों में गोत्र समान रूप से पाये जाते हंै । वैसे गोत्र का अर्थ गौ, गौ रक्षा और गौ रक्षक से भी संबंध रखता है । शायद जब इसकी शुरूआत हुई होगी तो सभी वे ऋषि जिनके लिए गाय का महत्व विशेष रहा होगा, उनकी रक्षा करते होगे इस कारण उनके साथ गोत्र से जोड़ कर खास पहचान देने की कोशिश की गई होगी ।
    गोत्र पहले आया और फिर कर्म के अनुसार वर्ण व्यवस्था तय हुई जिसमें गुण-कर्म-योग्यता के आधार पर वर्ण चयन किया गया और विभिन्न कारणों के आधार पर उनका ऊंचा नीचा वर्ण बदलता रहा किसी क्षेत्र में किसी गोत्र विशेष का व्यक्ति ब्राह्मण वर्ग में रह गया, तो कही ंक्षत्रिय, कहीं वैश्य, कहीं शुद्र कहलाया । बाद में जन्म के आधार पर जाति स्थिर हो गई । यही वजह है कौशिक ब्राह्मण भी हंै और क्षत्रिय भी । कश्यप गोत्रिय ब्राह्मण भी हैं, राजपूत भी हं,ै वैश्य भी हैं ।
    गोत्र मूल रूप से ब्राह्मणों के उन सात वंशो से संबंधित होता है जो अपनी उत्पत्ति सात ऋषियों से मानते हंै। ये सात ऋषि हैं – 1 अत्रि, 2 भारद्वाज, 3 भृगु, 4 गौतम, 5 कश्यप, 6 वशिष्ठ, 7 विश्वामित्र ।
    बाद में इसमें आठवां गोत्र अगस्त्य भी जोड़ा गया । गोत्रों की संख्या बढ़ती गई है । जैन गं्रथों में सात गोत्रों का उल्लेख है कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मण्डव्य और वशिष्ठ । लेकिन छोटे स्तर पर साधुओं को जोड़ कर हमारे देश में 115 गोत्र हंै । गैर ब्राह्मण समुदायों ने भी इसी प्रथा को अपनाया। क्षत्रिय, वैश्यों ने भी इसे अपनाया । इसके लिए उन्होंने अपने निकट के ब्राह्मणों या गुरूओं के गोत्रों को अपना गोत्र बना लिया । प्रयाग राज के धार्मिक विद्वान राम नरेश त्रिपाठी कहते हंै कि हिन्दू परम्पराओं और मान्यताओं के अनुसार पिता का गोत्र ही पुत्र को मिलता है । अगर किसी ने किसी को दत्तक पुत्र के रूप मंे स्वीकार किया हो तो उसे उसका गोत्र मिल जाता है ।
    ब्राह्मणों के अलावा अन्य जातियों में भी गोत्र सुनिश्चित किये जाते हंै । इनकी प्रवर व अटकंे होती हैं और गोत्र भी जिन ऋषियों के भी साथ ब्राह्मणों का संबंध था उनके अनुसार तथा सभ्य समाज का हिस्सा बनने पर वंशानुगत पहचान के लिए गोत्र अंगीकार कर लिये गये । कई परिवारांे द्वारा जैन धर्म अंगीकार कर लिया गया और इस तरह अपने पूरे वंश के गोत्र सूचक नाम उस अनुसार अंगीकार कर लिये गये ।
    कुम्भलगढ़ के व्यास डिबलिया मेहरखजी की पत्नी ललिता की वर्षी पर इकट्ठे श्रीमाली ब्राह्मणों ने कन्या विक्रम बन्द करने का प्रस्ताव किया । प्रस्तावक पुंजाजी सहित चार व्यक्ति जो समर्थन में थे उनमें से एक संशय में रहा । इसलिए वे साढे तीन पुड़ तथा संशय वाला आधा पुड़ कहलाया और जो नौ व्यक्ति इस प्रस्ताव के
    विरोध में थे वे नौ पु़ड़ी कहलाए। पुड़ की तरह ही कुछ अन्य घटनाओं को लेकर श्रीमाली ब्राह्मणों में दशा बिसा इत्यादि छोटे छोटे घटक बनते गए जो जातीय एकरूपता में बाधक सिद्ध हुए । नवीन घटकों के उदय एवं उनकी रूढ़ तथा संकीर्ण मनोवृत्ति के परिपेक्ष्य में इस जातीय समुदाय की पहचान ’श्रीमाली शब्द’ के व्यापक बोध में ही सुरक्षित बनी हुई है। चूृृंकि वैश्य बाह्मणों के ही अनुचर थे अतः ये भी इन्ही घटक के रूप में जाने जाने लगे ।
    दसा श्रीमाली वेलफयर सोसायटी, खरगोन (मध्यप्रदेश)

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    • Meri madad karo* सिसोदिया दर्पण *
      ________________________________
      सिसोदिया राजपूत
      वनाम
      * बंगी वैश्य *
      वैश्य (VAISH/VAISHYA), मोदी MODI / साह SAH / गुप्ता GUPTA / साहा SAHA / सरकार SARKAR / लाल LAL / प्रसाद PRASAD / राय RAI / ROY / सिंह SINGH / राणा RANA / सिसोदिया SISODIA / SISODIYA वैगेरह टाइटिलों से अपने को संबोधित करते हैं।
      ——————————————————–
      ** सिसोदिया दर्पण **
      बंगाल बनियां / बंगाली बनियां / बंगार बनिया / बंग वैश्य / बंगी वैश्य कहलाने वाले इस समाज के लोग अपना गोत्र कोई -कोई – अनुमान / अलुमान / अल्युमान / हनुमान बताते हैं असल में इनके पुर्वजों ने जब मेवाड़ से महाराणा प्रताप जी को अकबर से युद्ध के बाद जंगलों​ की खाक छाननी पड़ गई और सारे सेना तितर बितर हो गये सिसोदिया राजपूतों ने मुंगलो के साथ अपना रिस्ता करना नहीं स्वीकार किया तो उसमें से बहुत परिवार वालों ने मेवाड़ छोड़ कर देश के अलग-अलग हिस्सों में पलायन कर गए अपना जाति-गोत्र को छिपाने काम काम किए क्योंकि मुगल सेना सघन खोज कर रहे थे सिसोदिया राजपूतों को उन्हें इस्लाम कबूल करवाने उनके बहन/बेटियों से विवाह करने पर विवश करना अन्यथा जान मारा जाना।ऐस में कुछ परिवारों / टोलियों के लोगों​ ने वहां पलायन कर बंगाल के मुर्शिदाबाद में आए फिर वहां से फिर अलग-अलग जगहों पर बिखर गए उन गांवों और शहरों की सूची अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा। गजब की बात तो यह भी है कि ये लोग किसी दूसरे जाति से वैवाहिक संबंध नहीं स्वीकार किया और आपस में समगोत्री विवाह भी करते आ रहे हैं उस दौरान इन सभी के पुर्वजों पहचान के लिए अपना गोत्र : “अनुमान” बताया ताकि अपने जाति को पहचान सकें।
      आश्चर्य की बात तो यह है कि कितने तो इस जाति के परिवार वालों ने अपने को “गंर्दव” जो पिछड़ी जाति एनेक्शर एक में आता है का जाति प्रमाण पत्र धोखे से बनाने में सफल हुए वे लोग सरकारी नौकरियां भी पाने में सफल भी हुए और लाभांवित हो रहें हैं वैसे परिवार के लोग नहीं​ चाहते हैं कि सत्य उजागर हो क्योंकि उन्हें इस धोखेबाजी​ का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
      मूलतः यह जाति सिसोदिया राजपूत है ।
      जाति : सिसोदिया राजपूत
      गोत्र : कश्यप
      बिहार में इस जाति के लोग किन-किन गांवों-शहरों में हैं उसकी सूची अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा।

      (पुनः अगले अंक में)

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    • मेरा नाम विकास श्रीमाली है मैं उत्तर प्रदेश का रहने बाला हूँ हमारे यहाँ बहुत सारे श्रीमाली हैं लेकिन अधिकतर सैनी शव्द का प्रयोग करते हैं क्या श्रीमाली सैनी भी होते हैं?

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  18. Namaste, Mera name Shitalkumar D. Shekhalia hai. Mein Gujarat se hu.. mere purkhe ujjain se Gujarat me aye the aisa mere bade buzurg ka kahena hai. Ham log ” Dhareva Parmar ” hai aisa mere bade buzurgo ka kahena hai.. to mein meri Kuldevi and Kuldevata ke bare me jankari kaise prapt karu..?
    Kripa karke margdarshan dijie.. Jay Mataji…

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  19. Shreeman namaste me sheermali swarnkar hu mera gotra kashyap h kripa krke hamari kuldevi vyaghreshwari yogi ya yogeshwari batae

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    • वरुणाची देवी , संकस गोत्र, श्रीमाली ब्राह्मण के नैवेद्य /भोगआदि साल में कितनी बार और कैसे होते है

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  20. गौत्र, श्री श्री कोकाशाही श्रीमाली
    सोनी की कुलदेवी कोन है
    9521343050

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