Shri Vankal Mata Viratra

वीरातरा की श्री वांकल माता – Shri Vankal Mata Viratra

Shri Vankal Mata Viratra
Shri Vankal Mata Viratra

Vankal Mata Viratra History in Hindi : श्री वांकल माता का मन्दिर बाड़मेर से लगभग 48 कि.मी. तथा चौहटन तहसील से लगभग 10 कि.मी. उत्तर में स्थित है । जो लगभग 400 वर्षों से अधिक पुराना है । विरातरामाता भोपों की कुलदेवी मानी जाती है ।  यह मन्दिर पर्वत की तलहटी में है जो एक ओर पर्वत श्रेणी से और दूसरी ओर बालुका राशि के पर्वताकार टीले से घिरा हुआ है इन दोनों के बीच में वांकल माता का मन्दिर स्थित है । सुदूर पश्चिम में बलूचिस्तान के पास बेला क्षेत्र में मकरान पर्वतमाला की एक गुफा हिंगुलाज के नाम से सुविख्यात है । भारत में हिंगुलाज माता की सर्वाधिक मान्यता रही है। इसी आदि शक्तिपीठ से वीरातरा माता का जुड़ाव रहा है ।

वीर विक्रमादित्य के साथ आई थी वांकल माता

ऐसी मान्यता है कि वीर विक्रमादित्य जब बलूचिस्तान के अभियान में गया तब उसने हिंगलाज माता से प्रार्थना करते हुए कहा कि यदि वह विजयी रहा तो आराधना करने के लिए उसे (माता) अपने साथ ले जाएगा । हिंगुलाज माता की कृपा से उसकी विजय हुई । तब उसने हिंगुलाज माता को साथ ले चलने के लिए अनुरोध किया । माता ने उसकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा कि मैं तुम्हारे पीछे पीछे चलती हूँ तुम मुड़कर मत देखना । अगर तुमने पीछे देखा तो मैं वही लोप हो जाउंगी । विक्रमादित्य ने अपनी सेना के साथ उज्जैन के लिए प्रस्थान किया । वह गोरणा में रुका । अनन्तर पर्वतमाला जहाँ अब देवी का मन्दिर है के निकट पहुँचते अंधेरा होने के कारण वह भ्रमित हो गया और उसने चारों ओर अपनी दृष्टि दौड़ाई इस पर देवी (हिंगलाज माता) वहीं लोप हो गई ।

इस कारण पड़ा नाम ‘ वांकल वीरातरा ‘

रात्रि को वीर विक्रमादित्य वहाँ रुका इसलिए इसका नाम वीरातरा पड़ा । कालान्तर में इस पहाड़ की चोटी पर देवी का मन्दिर बनाया गया।भक्तजनों को इस पहाड़ पर चढ़ने में कठिनाई होती थी । भक्तों द्वारा प्रार्थना  करने पर वीरातरा माता की मूर्ति जो विशाल पत्थर के साथ जुड़ी हुई थी लुढ़ककर नीचे आ गई वहीं नया मन्दिर बनाया गया है । देवी की गर्दन टेढ़ी होने के कारण इसका नाम वांकल वीरातरा माता पड़ गया ।

इस मन्दिर में वर्ष में तीन बार चैत्र, भादवा, माघ मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मेले लगते हैं । यह मेले 3 दिन तक चलते हैं । भारत के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा नेपाल से श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं।

Vankal Mata Temple Viratra
Vankal Mata Temple Viratra

ज्ञातव्य है कि इस देवी के प्रति असीम श्रद्धा जैसलमेर राजघराने की भी रही थी । वि.सं.1752 में महारावल अमरसिंह ने इस मन्दिर में वीरघंटा चढ़ाई थी जो अब भी यहा विद्यमान है । मन्दिर के स्थान पर अन्य कुण्ड, पूजनीय स्थान एवं विश्रामगृह बने हैं ।  

13 thoughts on “वीरातरा की श्री वांकल माता – Shri Vankal Mata Viratra”

  1. मुझे लगता है कि माताजी को गरदन टेढी होना उनका नाम वांकुल होने का तर्क ठीक नहीं है । वाणी जिनका कुल है वह विधा की देवी सरस्वती वांकुल है ।

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  2. श्री वांकल माता का जन्म गुजरात मे ‘अवसुरा’ वंश के ‘मादा’ शाखा के चारणों में हुआ। माताजी की कमर झुकी हुई थी यह बात सच है, इसीलिए वो ‘कूबड़’ ‘खूबड़’ नाम से जानी गयी । जब वह मारवाड़ आई तो झुकी कमर होने के कारण यहाँ की भाषा मे उन्हे ‘वांकल माँ’ कहा गया । इन सभी नामो का अर्थ यही है झुकी कमर वाली । इन्हे श्री आदि शक्ति हिंगलाज का आंशिक अवतार माना गया है। आज भी ‘मादा का वास’ नाम के गाँव को वांकल-कूबड़ का जन्म स्थान माना जाता है । वांकल का जन्म संवत 838 या 831 होने का प्रमाण इन प्राचीन दोहों के आधार पर मानते हैं।

    मादा घर जलमी मुदै। वांकल नाम वरतंत। ।
    सकाल काला सुरसती। कथूँ तिहारा कृत । । 1 । ।
    आठे सवंत अड़तीस में। आसू मास अगवाण। ।
    सुक्ल पक्ष तेरस सही। सुक्रवार सही आण। । 2। ।

    अर्थ– मादा चारण के घर वांकल नाम से हिंगलाज आपका अवतार हुआ है । आप सर्व कला युक्त है इसलिए सरस्वती देवी मुझे आपकी कीर्ति का वर्णन करने के लिए श्रेष्ठ वाणी प्रदान करे ।। 1। ।
    अर्थ– सवंत आठ सौ अड़तीस के आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की तेरस शुक्रवार को वांकल जी आपका जन्म हुआ ॥ 2। ।

    इतना ही नहीं यही वांकल देवी, माँ आवड़ की सगी भुआ थी । माँ आवड़ हिंगलाज की पूर्ण अवतार थी जिन्होने सिंध के अन्यायी क्रूर शाशक ‘उमर सुमरा’ का वाढ कर उसके साम्राज्य का अंत किया ओर उसका आधा आधा भाग कर सम्मा और भाटी राजपूतो मे बांटा। इसलिए सम्मा राजपूतो ने देवी आवड़ को आशापूर्णा के नाम से पुजा । और यदुवंशी भाटी राजपूतों और रतनु चारणों की कुलदेवी भी श्री आवड़ है। श्री आवड़ के अनेकों चमत्कारों के कारण उन्हे उनके भक्त कई नामो से पूजते है ।
    जैसे:–
    1) श्री तेमड़ेराय:= तेमड़ा राक्षस, जैसलमेर की पहाड़ियो में जो अंतिम 52 हूणो का सेनापति था, वह आमजन पर अत्याचार करता था, जिसका अंत श्री आवड़ जी ने किया ओर उन सब को नष्ट कर दिया। इस कारण तेमड़े राय कहलाई ।
    2) श्री स्वांगीया जी := जब तणु भाटी ने उमर सुमरा पर विजय के बाद अपनी राजधानी तनोट में श्री आवड़ जी का स्वागत किया और सिंहासन( स्वांग ) पर आवड़ जी विराजीं, इस रूप को स्वांगीया जी के नाम से पुजा जाता है।
    3) श्री आशापूर्णा := युद्ध विजय के बाद सम्मा राजपूतो ने आवड़ जी को इस नाम से पुजा ।
    4) श्री तनोट राय := श्री आवड़ जी का मंदिर राव तणु भाटी ने अपनी राजधानी तनोट में बनाया, जिसका नाम तनोट राय है।
    5)श्री देगराय := शाक्त धर्म मे बलि प्राचीन काल से चढ़ाई जाती है, जब आवड़ जी व सातों बहनों के लिए एक विशाल देग में बलि को पकाकर चढ़ाया गया इसलिए एक नाम श्री देगराय भी है। यह मंदिर देवीकोट – सेत्रावा रोड पर जैसलमर से 50km दूर है। स्वयं श्री आवड़ जी ने पड़िहार राजपूतो को इस मंदिर मे पूजा करने का अधिकार दिया है।
    अन्य नाम भी है जैसे:

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