कुलदेवी का महत्त्व – प्रभात मुकुल भार्गव

              डॉ. मनहर गोपाल भार्गव, मिर्जापुर का लेख “भार्गव गोत्र व कुलदेवी” मैंने कुछ समय पूर्व पढ़ा था। उसी से ज्ञात हुआ कि भार्गवों की कुल छः गोत्र होते हैं। परन्तु कुलदेवी अनेक हैं। मेरे मन में यह जिज्ञासा तब और भी अधिक जाग्रत हुई जब यह ज्ञात हुआ कि मेरे वंश की कुलदेवी अर्चट है जिसका प्राचीन मंदिर बादलगढ़ की खोली, ग्राम बम्बोरा, तहसील किशनगढ़बास, जिला अलवर (राजस्थान) में स्थित है। यह ग्राम अलवर से 30 किमी. दूर अलवर भिवाड़ी रोड पर है।

मैंने जब इस मंदिर के विकास के लिए बनाई समिति के निर्णयानुसार धन एकत्र करने के लिए जयपुर, अजमेर, आगरा, मथुरा, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद आदि शहरों में कश्यप गोत्र व अर्चट कुलदेवी वाले भार्गव परिवारों से सम्पर्क साधा तो अनेकों ने मुझसे एक ही प्रश्न किया कि कुलदेवी का महत्त्व क्या होता है? अतः मैंने जयपुर में सनातन भारतीय संस्कृति संस्था से सम्पर्क साधा और उनके कुछ ग्रंथों जैसे “नाम संकीर्तन योग व मंत्र योग” एवं “गुरुकृपा योगानुसार साधना” इत्यादि में वर्णित विचारों को पढ़ा जिनका मैं यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ।

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हमें ईश्वर ने ऐसे कुल में जन्म दिया है, जिसके देवता (कुलदेवी या कुलदेव) हमारी आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं। कुलदेवता की उपासना का महत्त्व इस प्रकार है। ब्रह्माण्ड में पांच तत्व हैं- प्रजापति, ब्रह्मा, शिव, विष्णु व मीनाक्षी। “ब्रह्माण्ड से पिंड में”,अर्थात् ब्रह्माण्ड के ये पांचों तत्व जब हममें आ जाते हैं, तब ही ईश्वर से हम एकरूप होते हैं; हमें मोक्ष प्राप्ति होती है। मान लीजिए, किसी में विटामिन “ए” की कमी है और वह विटामिन “बी” लेता रहे, तो उसे कोई लाभ नहीं होगा। ब्रह्माण्ड के पांच तत्वों में से हममें किसकी कमी है, यह केवल संत ही बता सकते हैं; परंतु जब तक हमारा तन, मन, धन का त्याग एक स्तर तक नहीं पहुँच जाता, तब तक संत हमें अपने निकट ही नहीं आने देते। जब आप कुलदेवता की उपासना करते हैं, तब ब्रह्माण्ड के पांचों तत्व आप में बढ़ने लगते हैं। जिस तत्व की आप में कमी वह अपने आप ही पूरी होने लगती है।

कुलदेवता का नाम जपने की पद्धति :

कुलदेवता के नाम के आगे ‘श्री’ लगाना चाहिए व नाम को संस्कृत भाषानुसार चतुर्थी (य, वे, व्यै) का प्रत्यय लगाकर अंत में ‘नमः’ बोलना चाहिए, उदाहरणार्थ यदि कुलदेवता गणेश हैं, तो ‘श्री गणेशाय नमः’ कुलदेवी भवानीमां हैं, तो ‘श्री भवानीदेव्यै नमः’ बोलना चाहिए। चतुर्थी के प्रत्यय का अर्थ है ‘को’। अधिकांश लोगों के पूजाघरों में आठ-दस देवता होते हैं। इतने देवताओं की आवश्यकता नहीं होती। देवताओं की संख्या को कम करें, उनका नियोजन करें। कुलदेव, कुलदेवी, गणपति व कुछ घरों में कुलाचारानुसार बालगोपाल,मारुति (हनुमान) व अन्नपूर्णा देवी, इतने देवता पर्याप्त हैं। हम मनुष्य प्राणियों का बोलना शब्दों में होता है, जिसे नादभाषा कहते हैं; जबकि देवताओं की भाषा प्रकाश भाषा होती है। नाद भाषा को देवताओं की प्रकाश भाषा में व देवताओं की प्रकाश भाषा को हमारी नाद भाषा में रूपांतर करने का कार्य गणपति करते हैं, इसलिए गणपति अपने पूजा घर में होने चाहिए।

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गणपति की स्थापना मध्य में करें। गणपति के दाहिनी ओर कुलदेव व बाईंओर कुलदेवी रखें। बालकृष्ण व हनुमान इत्यादि पुरुष देवता हों, तो उन्हें कुलदेव की दाहिनी ओर व अन्नपूर्णा इत्यादि स्त्री देवता हों, तो उन्हें कुलदेवी की बाईं ओर, इस प्रकार  करें। इन चार-पांच देवताओं के अतिरिक्त आपके पूजा घर में अधिक मूर्तियां हों, तो किसी मंदिर में दान दें अथवा उनका विसर्जन किसी कुएँ, नदी या समुद्र में करें।

अध्यात्म में एकनिष्ठा चाहिए। अपने कुलदेवता के ही मंदिर जाएँ। यदि कुलदेवता का मंदिर पास में न हो, तो किसी भी एक देवी अथवा देव को कुलदेवी अथवा कुलदेव का रूप समझ कर, उसी भाव से, उसी श्रद्धा से एक ही मंदिर में जाते रहें। उसी से आपको लाभ होगा। ‘जहां भाव है, वहीं ईश्वर होते हैं।’

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कुलदेवता ; यदि नाम देने वाले किसी योग्य गुरु से भेंट न हुई हो तो अपने कुलदेवता का (अर्थात् अपनी कुलदेवी का कुलदेव का) जप करना चाहिए।

व्युत्पत्ति व अर्थ ; कुल यानी मूलाधार चक्र, शक्ति या कुंडलिनी। कुल+देवता, यानी जिस देवता की उपासना से मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, अर्थात् आध्यात्मिक प्रगति आरम्भ होती है, उसे कुलदेवता कहते हैं अर्थात् कुलदेव या कुलदेवी, दोनों ही।

कुलदेवता पृथ्वी तत्व के कुलदेवता हैं, इसलिए उन्हीं से साधना आरम्भ करने पर कुछ भी अनिष्ट नहीं होता। क्षमता न होते हुए सीधे ही तेज तत्व की उपासना (उदा. गायत्री मंत्र) करने से कष्ट हो सकता है। कुलदेवता की उपासना से ऐसा नहीं होता।

किसका नाम जपना चाहिए – कुलदेव का या कुलदेवी का?

अ. केवल कुलदेव के होने पर उन्हीं का व केवल कुलदेवी होने पर कुलदेवी का नाम स्मरण करना चाहिए।

आ. यदि किसी के कुलदेव या कुलदेवी दोनों हो तो उन्हें कुलदेवी का जाप करना चाहिए। इसके निम्नलिखित कारण हैं –

  1. बचपन में माता-पिता दोनों के होते हुए हम माता के साथ ही अधिक हठ करते हैं क्योंकि माँ जिद को जल्द पूरी कर देती है। उसी प्रकार, कुलदेव की अपेक्षा कुलदेवी जल्द प्रसन्न होती हैं।
  2. कुलदेव की अपेक्षा कुलदेवी का सम्बन्ध पृथ्वी तत्व से अधिक रहता है।
  3. आध्यात्मिक प्रगति के लिए परात्पर गुरु का दिया हुआ नाम 100 प्रतिशत, कुलदेवी का 30 प्रतिशत तो कुलदेव का नाम 25 प्रतिशत पूरा है।

साधारणतः विवाहोपरांत कभी कभी स्त्री का नाम बदल जाता है। मायके का सभी कुछ त्याग कर वह स्त्री ससुराल आती है। एक अर्थ से वह उसका पुनर्जन्म ही होता है; इसलिए विवाहित स्त्री को अपने ससुराल के कुलदेवता का जप करना चाहिए। यदि कोई स्त्री बचपन से नाम स्मरण करती हो व प्रगत साधक हो तो विवाह के पश्चात् भी वह नाम स्मरण ही जारी रखने में कोई हर्ज नहीं है। यदि गुरु ने किसी स्त्री को उसके विवाह पूर्व ‘नाम’ दिया हो, तो उसे वही नाम जपना चाहिए।

‘कुलदेवी ज्ञान चर्चा संगम’ से साभार, लेखक- श्रीप्रभात मुकुल भार्गव

Note – आप भी कुलदेवी, कुलदेवता, शक्ति महिमा, देवी महिमा, समाज विशेष आदि से सम्बंधित अपने लेख Mission Kuldevi में भेज सकते हैं – Submit Article 

5 thoughts on “कुलदेवी का महत्त्व – प्रभात मुकुल भार्गव”

  1. Rajgor brahmin jo vartman me charno ke kul guru mane jate he. Ye bhi odichy brahmin he parantu enki boli rivaj aadi charno ke saman he kripya enke bare me jankari dene ki kripa kare

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  2. Dear sir ji aapse ek request hai Bhriguvanshi shandilya gotra ki kulddvi ka name kya hai kyon hai bhriguvanshi shandilya gotra ki kul Devi maata please batana mujhe jai maharishi bhrigu jai bhriguvanshi parashurama jai shukrachaeya jai chyavan

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  3. गुरु जी प्रणाम। मेरा नाम अजय कुमार है, मेरा गौत्र भाटी राजपूत है। मै अपनी कुल देवी का नाम,मंत्र जाप, और अति शीघ्र कुल देवी को प्रसन्न करने की विधि जानना चाहता हुँ।
    ग्राम व पोस्ट ….ककडीपुर
    जनपद….बागपत
    उत्तर प्रदेश
    8755415549

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